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विदाई

18 नवम्बर 2024

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सुबह के पाँच बजे का समय। आसमान में तारे अब भी चमक रहे थे, और हल्की ठंडक ने वातावरण को और भावुक बना दिया था। अरुणिमा की विदाई का समय आ चुका था। जैसे ही अरुणिमा अपनी माँ के पास आई, उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा, "माँ, जब पापा नहीं रहे, तब आपने हमें माँ और पापा दोनों बनकर पाला। आपसे दूर जाना बहुत मुश्किल है। पता नहीं, मैं आपके बिना वहाँ कैसे रहूँगी।"

अरुणिमा की माँ ने उसकी आँखें पोंछते हुए कहा, "बेटी, हर माँ के लिए यह पल मुश्किल होता है। लेकिन मुझे यकीन है कि तुम जहाँ भी जाओगी, अपने घर को खुशियों से भर दोगी। प्रभात एक अच्छा लड़का है, और उसके साथ तुम्हारी जिंदगी खूबसूरत बनेगी। बस, अपनी माँ को भूलना मत। जब भी मन करे, मेरे पास चली आना।"

यह सुनकर अरुणिमा ने अपनी माँ को गले लगा लिया। दोनों की आँखों से आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

थोड़ी ही देर में प्रभात अरुणिमा की माँ के पास आया। उसने हाथ जोड़कर कहा, "माँ, मैं वादा करता हूँ कि अरुणिमा को हमेशा खुश रखूँगा। उसे कभी यह महसूस नहीं होने दूँगा कि वह अपने घर से दूर है। वह अब मेरे जीवन का सबसे अहम हिस्सा है, और उसकी हर खुशी मेरी जिम्मेदारी होगी।"

अरुणिमा की माँ ने प्रभात के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "बेटा, मुझे तुम पर भरोसा है। अरुणिमा ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला तुम पर भरोसा करके लिया है। उसे हमेशा संभालकर रखना।"

उसी समय प्रभात के पिता ने आगे बढ़कर अरुणिमा की माँ से कहा, "बहनजी, आज से अरुणिमा हमारी बेटी है। उसकी खुशी और उसकी सुरक्षा अब हमारी जिम्मेदारी है। आपने उसे जिस संस्कारों के साथ बड़ा किया है, वह अब हमारे परिवार को भी समृद्ध करेगी। आप निश्चिंत रहें।"

यह सब सुनकर माहौल और भी भावुक हो गया। रिया, जो अब तक चुपचाप यह सब देख रही थी, प्रभात के पास आई। उसकी आँखें भीगी हुई थीं। उसने मासूमियत से पूछा, "भैया, क्या मेरी विदाई भी ऐसे ही होगी? क्या मुझे भी आप सबको छोड़कर जाना होगा? क्या तब आप भी ऐसे ही रोएंगे?"

प्रभात रिया के भोलेपन को देखकर भावुक हो गया। उसने रिया को गले लगाते हुए कहा, "पगली, तेरा भाई कभी तुझे रोने नहीं देगा। और जब तेरी विदाई होगी, मैं तुझे सबसे ज्यादा हंसते हुए विदा करूँगा। लेकिन अभी उस दिन की चिंता मत कर। तू हमेशा मेरी छोटी बहन रहेगी, चाहे कुछ भी हो जाए।"

रिया ने आँसू पोंछते हुए कहा, "भैया, मैं आपसे वादा करती हूँ कि मैं भी हमेशा आपके लिए खड़ी रहूँगी। और भाभी को भी मुझसे कभी शिकायत नहीं होगी।"

थोड़ी देर बाद अरुणिमा को गाड़ी में बैठाने का समय आ गया। उसकी माँ ने उसका माथा चूमा और आशीर्वाद दिया। अरुणिमा की सहेलियों ने अरुणिमा को गले लगाया और कहा, "तुम हमेशा खुश रहना और जीजू से फुर्सत मिले तो हमको भी याद कर लेना।"

 अरूणिमा और प्रभात को एक गाड़ी में बिठाया गया, और  बाकी के अन्य रिश्तेदार अलग अलग गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी के धीरे-धीरे चलते ही पूरे परिवार की आँखों में आँसू थे। अरुणिमा ने पीछे मुड़कर अपनी माँ और परिवार को आखिरी बार देखा, और प्रभात ने उसके हाथ को थामे रखा, यह जताते हुए कि वह हमेशा उसके साथ रहेगा।

दूसरी तरफ, प्रभात की माँ गृहप्रवेश की तैयारी कर रही थी, लेकिन उनके दिल में अजीब-सी बेचैनी थी। पंडित जी की बातों ने उनका मन अशांत कर रखा था। उन्होंने पूजा के कमरे में जाकर भगवान से प्रार्थना की, "हे भगवान, मेरे बेटे और बहू को हमेशा खुश रखना। पंडित जी ने जो कहा, उससे मैं घबराई हुई हूँ। लेकिन आपका आशीर्वाद हो तो सबकुछ ठीक होगा। मेरी अरुणिमा को एक नई जिंदगी में सिर्फ सुख मिले।"

उनकी आँखों से आँसू निकल आए, लेकिन उन्होंने खुद को संभालते हुए आगे की तैयारियों में लगने का फैसला किया। घर में प्रभात और अरुणिमा के स्वागत का उत्साह था, लेकिन माँ का दिल अभी भी भगवान से उनके सुखद भविष्य की दुआ कर रहा था।

जिस गाड़ी से अरुणिमा और प्रभात जा रहे थे वो गाड़ी प्रभात के मामा का लड़का (अनुज) चला रहा था, लेकिन अचानक से उसकी तबियत खराब हो गई और जिस वजह से प्रभात ने अनुज से कहा "तुम एक काम करो तुम थोड़ी देर आराम करो मैं गाड़ी चला लूंगा।"  

जिसके बाद प्रभात ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और अरुणिमा भी उसके साथ बगल वाली सीट पर बैठ गई,और अनुज पीछे की सीट पर जाकर सो गया।

सुबह की हल्की ठंडक और कोहरे के बीच अरुणिमा और प्रभात अपनी नई जिंदगी की शुरुआत के सपनों में खोए हुए कार में सवार थे। अरुणिमा ने सिर पर दुपट्टा संभालते हुए कहा, "प्रभात, तुम्हें पता है, आज पहली बार मुझे ऐसा लग रहा है कि अब सबकुछ सही हो जाएगा। हमारे सारे संघर्ष, वादे, और इंतजार अब खत्म हो गए हैं। अब बस तुम्हारे साथ जिंदगी को हर पल जीना है।"

प्रभात ने मुस्कुराते हुए अरुणिमा का हाथ थामा और कहा, "हां, अरुणिमा। मैंने हमेशा यही सपना देखा था कि तुम मेरे साथ हो, और मैं तुम्हें हमेशा खुश रखूं। अब मुझे कुछ और नहीं चाहिए। बस इतना वादा करो कि तुम हमेशा अपनी मुस्कान को बनाए रखोगी।"

अरुणिमा ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "और तुम वादा करो कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ोगे। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे।"

प्रभात ने हल्के से हंसते हुए कहा, "ये सवाल ही क्यों? मैं तुम्हारा हिस्सा हूं, अरुणिमा। तुम्हारी हंसी, तुम्हारे आंसू, सब मेरे हैं। तुम्हें अकेला छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता।"

अचानक कार एक सुनसान सड़क पर आ गई। सामने घना कोहरा छा गया था, और दृश्यता कम हो गई थी। प्रभात ने ध्यान से गाड़ी चलाते हुए कहा, "यह सड़क कितनी अजीब है न, अरुणिमा? जीवन की तरह। कभी साफ, कभी धुंधली। लेकिन अगर साथ हो, तो हर रास्ता पार हो सकता है।"

अरुणिमा ने हंसते हुए कहा, "तुम्हें हर बात में दर्शन करना आता है। लेकिन मुझे भरोसा है, जब तक तुम साथ हो, मैं हर मुश्किल का सामना कर सकती हूं।"

प्रभात ने हल्के से उसकी तरफ देखा और कहा, "तुमसे एक बात कहनी है, अरुणिमा। अगर कभी मैं तुम्हारे साथ न रहूं, तो तुम्हें हमेशा मजबूत रहना है।"

अरुणिमा ने उसे डांटते हुए कहा, "ऐसी बातें मत करो। हमारी शादी हुए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं, और तुम ऐसी बातें कर रहे हो?"

प्रभात ने उसकी बात पर मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, मेरी गलती। चलो, एक वादा करो। अगर कभी मैं तुमसे दूर हो जाऊं, तो तुम मेरी यादों के सहारे अपना जीवन जीओगी। मुझे दुख होगा अगर तुम मेरी वजह से दुखी रहोगी।"

अरुणिमा ने हल्के से गुस्से में कहा, "तुम्हें मेरी कसम, ऐसी बातें अब कभी मत करना। मैं तुम्हें खोने की कल्पना भी नहीं कर सकती। तुम मेरे जीवन का हिस्सा हो, और हमेशा रहोगे।"

प्रभात ने उसका हाथ थाम लिया। "ठीक है, मैं वादा करता हूं कि अब ऐसी बातें नहीं करूंगा। लेकिन अगर तुमसे कुछ छूट जाए, तो मुझे याद करना। मैं हमेशा तुम्हारे पास रहूंगा।"


बाकी की कहानी अगले भाग में......


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रचनाएँ
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