त्रिपुरासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने तीनों को देवताओं से परास्त न होने का वरदान दिया। उस समय त्रिपुरासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। यह देख स्वर्ग के देवता ब्रह्मा जी के पास गए। उन्हें स्थिति से अवगत कराया। तब ब्रह्मा जी बोले- त्रिपुरासुर को रोकने के लिए आप सभी को भगवान शिव से सहायता लेनी होगी।
जानें, कब और क्यों मनाई जाती है देव दीपावली और क्या है इसका धार्मिक महत्व?
हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है। तदनुसार, इस वर्ष 26 नवंबर को देव दीपावली मनाई जाएगी। शास्त्रों में निहित है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर देवता पृथ्वी पर आते हैं और दीये जलाकर दीपावली मनाते हैं। इस विशेष दिन पर काशी में विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु देव दीपावली देखने काशी आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों हर वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है ? आइए, इसकी कथा जानते हैं-
देव दीपावली की कथा
सनातन शास्त्रों के अनुसार, चिरकाल में त्रिपुरासुर नामक राक्षस के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। त्रिपुरासुर, असुर तारकासुर के बेटे थे। ये एक नहीं, बल्कि तीन थे। तीनों ने देवताओं को परास्त करने का प्रण लिया था। लंबे समय तक तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या की। त्रिपुरासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने तीनों को देवताओं से परास्त न होने का वरदान दिया। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तीनों शक्तिशाली हो गए।
उस समय त्रिपुरासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। यह देख स्वर्ग के देवता ब्रह्मा जी के पास गए। उन्हें स्थिति से अवगत कराया। तब ब्रह्मा जी बोले-वरदान तो मैंने ही उन्हें दिया है। त्रिपुरासुर को रोकने के लिए आप सभी को भगवान शिव से सहायता लेनी होगी। भोलेनाथ ही आप सबकी रक्षा कर सकते हैं। यह सुनने के बाद सभी देवता कैलाश पहुंचे और महादेव से रक्षा की कामना की।
कालांतर में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। इस उपलक्ष्य पर देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दीपावली मनाई। शास्त्रों में निहित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। अतः हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली मनाई जाती है।