(फोटो सौजन्य से जागरण न्यूज)
सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज का किस्सा राज परिवार से है। ये कहानी है राजस्थान की उस मुख्यमंत्री की जिसकी परवरिश ही सियासत के बीच हुई। जब सियासत में आईं तो सूबे की जनता ने मान-सम्मान दिया पलकों पर बिठाया और राज्य की पहली महिला सीएम बनाया। पढ़िए राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े किस्से...
सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज का किस्सा राज परिवार से है। ये कहानी है राजस्थान की उस मुख्यमंत्री की, जिसकी परवरिश ही सियासत के बीच हुई। जब खुद सियासत में आईं तो सूबे की जनता ने मान-सम्मान दिया, पलकों पर बिठाया और राज्य की पहली महिला सीएम भी बनाया।
शह और मात के खेल की मंझी हुई खिलाड़ी ने राजनीति में अपने विरोधियों के मंसूबे बिगाड़े तो पार्टी हाईकमान को गुस्सा दिखाने से भी पीछे नहीं हटीं। दो बार राजस्थान की सीएम बनीं। चार बार विधायक और पांच बार सांसद बनीं। उनके पूजा-पाठ और शुभ मुहूर्त पर काम करने के किस्से भी काफी चर्चित हैं। राजपूतों की बेटी, जाटों की बहू और गुज्जरों की समधन भी बुलाया जाता है।
पढ़िए, ग्वालियर की राजकुमारी, धौलपुर की महारानी, मैडम वसु और राजस्थान की पहली व इकलौती महिला मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े किस्से...
8 दिसंबर, 2003 को वसुंधरा पहली बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं थीं। ''मैं वसुंधरा राजे ईश्वर की शपथ लेती हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगी...'' इस शपथ के साथ राजस्थान को पहली महिला मुख्यमंत्री मिली। चुनावी पंडितों को उम्मीद नहीं थी कि वो सीएम बन पाएंगी। लेकिन उनके सभी आकलन गलत साबित हुए।
वसुंधरा राजे का शपथ समारोह कई मायने में ऐतिहासिक था। सूबे में पहली बार राजभवन के बाहर नवनिर्मित विधानसभा भवन के सामने जनपथ पर राज्य की पहली महिला सीएम को शपथ दिलाई गई।
राज्यपाल करते रहे इंतजार, शुभ मुहूर्त पर ही पहुंचीं वसुंधरा
बताया जाता है कि वसुंधरा राजे किसी भी काम से पहले विधिवत पूजा करती हैं और शुभ मुहूर्त पर ही अहम फैसले लेती हैं। पहली बार सीएम बनने के दौरान का एक ऐसा ही किस्सा चर्चित हुआ।
बताया जाता है कि शपथ ग्रहण से पहले पंडित ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा अर्चना की थी और शुभ मुहूर्त दिन में 12:15 बजे का था।
शपथ दिलाने के लिए पहुंचे राज्यपाल और सीएम के साथ शपथ लेने वाले मनोनीत मंत्री मंच पर खड़े वसुंधरा राजे का इंतजार करते रहे। 12:15 बजे केसरिया बाना पहने वसुंधरा राजे मंच पर पहुंचीं। फिर वैदिक मंत्रोच्चार, पूजा-अर्चना के साथ शुभ मुहूर्त में शपथ समारोह संपन्न हुआ।
यह भी पहली बार था कि शपथ ग्रहण के तुरंत बाद सचिवालय में मंत्रिमंडल की बैठक नहीं हुई थी। मंत्रिमंडल की बैठक शुभ मुहूर्त के अनुसार तीसरे पहर में की गई थी। बैठक से पहले सीएम की कुर्सी की पूजा की गई और फिर उस पर मुहूर्त के अनुसार वसुंधरा राजे बैठीं।
उल्लेखनीय है कि आमतौर पर शपथ ग्रहण के बाद मंत्रिमंडल की बैठक होती है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ था।
राजनीतिक सफर से पहले...
वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च, 1953 को ग्वालियर राजघराने में हुआ। वह राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया की चौथी संतान हैं। वसुंधरा बचपन से ही अपने घर से दूर रहीं। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई-लिखाई तमिलनाडु के कोडाईकनाल स्थित प्रेसेंटेशन कॉन्वेंट स्कूल से की।
फिर कॉलेज की पढ़ाई मुंबई के सोफिया कॉलेज से पूरी की। यहां से वसुंधरा ने इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्रियां लीं।
नवंबर, 1972 में ग्वालियर की राजकुमारी वसुंधरा की शादी धौलपुर के महाराज हेमंत सिंह से हो गई। यह शादी एक साल ही चली। जिस वक्त दोनों का तलाक हुआ, उस वक्त वसुंधरा की उम्र 20 साल थी और वह गर्भवती थीं। तलाक के बाद वह ग्वालियर लौट आईं। यहां उन्होंने बेटे दुष्यंत को जन्म दिया।
नानी ने दिलाया नाती को संपत्ति में हिस्सा
दुष्यंत जब पांच साल के हुए तो उनकी नानी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपने नाती की ओर से संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए हेमंत सिंह के खिलाफ अदालत में मामला दर्ज कराया। करीब तीन दशक बाद मई, 2007 में हेमंत सिंह और दुष्यंत सिंह बीच कोर्ट में एक समझौता हुआ। इसके मुताबिक, धौलपुर महल का मालिक दुष्यंत सिंह बन गए।
भिंड से की सियासी पारी की शुरुआत
साल 1984 के लोकसभा चुनाव से वसुंधरा ने अपनी सियासी पारी का आगाज किया। मध्य प्रदेश की भिंड लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरीं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में भाजपा के ज्यादातर उम्मीदवारों की तरह ही वसुंधरा भी हार गईं।
भिंड यूं तो कभी ग्वालियर रियासत का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन जनता ने राजकुमारी को खारिज कर दिया, जिससे राजमाता की चिंता बढ़ गई।
इन्हीं दिनों विजयाराजे की दिल्ली में भैरोंसिंह शेखावत से मुलाकात हुई और उन्होंने वसुंधरा की हार का जिक्र उनके सामने किया। उस समय शेखावत राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष हुआ करते थे। भैरोंसिंह शेखावत ने राजमाता को सुझाव दिया कि वह बिटिया का सुसराल दें। घर-गृहस्थी बसाने के लिए नहीं, राजनीति में जगह बनाने और सियासत चमकाने के लिए।
धौलपुर ने बहू को जिताया
राजमाता को यह बात तार्किक लगी। फिर क्या था उन्होंने बेटी वसुंधरा का विदा कर राजस्थान भेज दिया। यहां वसुंधरा ने 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर अपने ससुराल धौलपुर सीट से चुनाव लड़ा और करीब 23 हजार वोटों से जीत दर्ज की। फिर जयपुर पहुंची। यह जीत राजमाता की बेटी की नहीं, धौलपुर की बहू की थी।
राजस्थान में वसुंधरा को एक के बाद सफलता मिलती गई। तब से अब तक वह चार बार विधानसभा की सदस्य रहीं। दो बार मुख्यमंत्री रहीं। पांच बार लोकसभा चुनाव जीता और केंद्र में मंत्री पद भी संभाला। इस बार के चुनाव में भी वह अपने गढ़ झालावाड़ से ही चुनावी मैदान में उतरी हैं।
बेटी, बहू और समधन बन साधे जातीय समीकरण
बताया जाता है कि जब भैरोंसिंह शेखावत ने राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा को बड़ी जिम्मेदारी देने की सिफारिश की थी, तब उन्होंने कहा था कि वसु राजपूत पृष्ठभूमि से हैं। जाट घराने में शादी हुई और उनकी बहू निहारिका ठाकुर गुर्जर हैं।
यानी कि वसुंधरा राजे को राजपूतों की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों की समधन हैं तो ऐसे में तीनों समुदाय के बीच उनका खासा प्रभाव है। इसके बाद ही वाजपेयी ने उन्हें राजस्थान भाजपा की कमान सौंप कर राजस्थान भेजा था, जबकि इससे पहले वह केंद्र मंत्री थीं।