मैं;
रोज
देखता हूँ
सरसोई
फ्राक में
घूंघराले बालो वाली
उस;
नन्ही
लड़की को
जो;
सरगोशी के साथ
भीड़ भरे बाज़ार में
गुब्बारों का
गुलदस्ता लिए
कभी रोड की
इस पटरी पर
तो कभी
रोड की
उस पटरी पर
बेचती है
रंग-बिरंगे
गुब्बारे
अपनी ही
उम्र के
उन
नन्हें-मुन्नों को
जो;
लकदक करती
गाड़ियों से उतर
राजा बाबू बन
रुआब से
खरीदते है
गुब्बारे
और;
वह
कभी
अचम्भित नजरों से
तो कभी
विस्फारित नज़रो से
देखती है उन्हें
उसका मूक स्वर
स्फूटित हो
मुखरित
हो जाता है
कुछ;
न कहते हुए भी
बहुत कुछ
कह जाती है
वह सयानी
लड़की !!