एक
व्यस्तम
चौराहे के
घूर पर
कुत्तो के
झुण्ड के बीच
पड़ी ;
नवजात बच्ची !
उनकी
गुर्राहट सुन
कभी
अपनी
सामर्थ्य अनुसार
चित्कार रही है
तो ;
कभी
हाँथ-पाँव
चलाकर
अपने
जीवित होने का
प्रमाण दे रही है !
और ;
स्वानों का झुण्ड
खूनी आंखों से
यमदूत की भाँति
गोश्त के
लोथड़े को देख
उसको
नोचने खसोटने को
तत्पर है !
तभी
कुछ अपरिचित हाँथ
उसे लपककर
सरकारी
अनाथालय में
सुपुर्द करते हैं
जहाँ ;
अल्पायु में ही
वह ;
जवान हो
अपने आपको
उसी
दोराहे पर
फिर ;
पाती है !
आज भी
वह ;
हिंशक
कुत्तो और भेड़ियों से
से घिरकर
अपने स्वाभिमान
व
आस्तित्व की सुरक्षा
के लिए
कर रही है
संघर्ष !
जबकि ;
उसके शरीर को
हर कोणों से
निहार
उसकी
सुगन्ध से
मदहोश हो चुके
भेड़िये
उसे
दबोचने को
आतुर हैं !!