आधुनिक सभ्य समाज में अब भी हो रही है भूख से मौतें ...
इलाहाबाद मुख्यालय से 40 किमी दूर जसरा विकासखण्ड अन्तर्गत स्थित गीज गाँव में भूख से हुई दोना- पत्तल बनाने वाले पिता समरजीत व पुत्री राधा की आकस्मिक मौत आधुनिक सभ्य समाज व शासन सत्ता के मुख पर तमाचा है। कहने को गरीब / निर्बलों के लिए तमाम सामाजिक सुरक्षा की योजनाएँ है | केन्द्र सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाया जा चुका है | मनरेगा से रोजगार गारन्टी दी जा रही है | इसके अतिरिक्त तमाम पेंशन योजनाएँ, स्वास्थ्य योजनाएँ और न जाने कौन कौन सी योजनाएँ निर्बल वर्ग के लिए संचालित है पर निर्बलों का चिन्हाकन किस आधार पर हो रहा है कि भूख से अब भी मौतें हो रही हैं | दीगर है इसी परिक्षेत्र में कुछ वर्ष पूर्व भी बालक मिट्टी खाते पाए गए थे जिसकी सहायता प्रशासन ने कर उन्हें कई सुविधाएँ प्रदान कर समाज में समायोजित किया था फिर चूक कहा हो गयी इस परिवार को समय से मदद प्राप्त नही हो सकी। कमोवेश यह स्थिती केवल इलाहाबाद की नही है बल्कि सूखे की मार झेल रहे सम्पूर्ण हिन्दुस्तान की bhहै |
बुन्देलखण्ड के किसान भूख व सूदखोरों के आंतक से मुक्ति हेतु आत्महत्या करते ही रहते हैं। यहाँ तक कि राजस्थान के गजेन्द्र सिंह ने तो एक दल विशेष के कार्यक्रम के दौरान ही आत्महत्या कर ली थी, तो फिर हम अपने आप को सभ्य व सुशिक्षित कैसे कह सकते है |
सरकारी आंकड़े कहते हैं कि हमारी क्रय शक्ति बढ़ी है | विकास की दर बढ़ी है। विश्व में हमारी साख बढ़ी है परन्तु वास्तविकता में देश के आम नागरिक अब भी भूख से मौत का शिकार हो रहे हैं।
जब तक देश के किसी भी नागरिक की मौत भूख से होती है। आम जनसंख्या को बुनियादी सुविधाएँ प्राप्त नही होती है तब तक विकास संबंधी हमारे यह आंकड़े झूठे व अर्थ विहिन है। अतः जरूरत है ऐसी नीतियों के निर्धारण व क्रियान्वयन की जिससे समाज का उपेक्षित व वंचित तबका भी लाभान्वित हो देश की मुख्यधारा में शामिल हो सके |