MONDAY, 5 OCTOBER 2015
इतिहास के
खंडहरों को
खंगालने की
जद्दोजहद में
वर्तमान की
जर्जर
इमारतो में
झाँकना
पड़ता है
उसकी
हिलती चूलो
को नापना
पड़ता है
तब;
जाकर कहीं
भविष्य की
सुनहली
चटकदार
जीवनदायी
सभ्यता के
दर्शन होते हैं
जिनकी महक से
सुगन्धित हो
पल्लवित
हो उठता है
मानव समाज !!
* "दीपक श्रीवास्तव" *
"2015/05/10"