पाषाण खण्ड की भाँति
अडिग
दृण - निश्चयी
एवं;
कठोर
चट्टाने भी
जल की
सरलता
शालीनता
एवं;
निरन्तरता के सम्मुख
नतमस्तक हो
छोड़ देती है रास्ता
प्रवाहित होने हेतु
क्योंकि;
चट्टाने
दर्प में
सीना ताने
खड़ी हैं
वे ख़ौफ
जबकि;
कोमल जल
अपने स्वभावगत
चंचल निर्मलता से
कण-कण में
विभक्त होने पर भी
सामूहिक प्रयास से
सहस्त्र
जल रश्मियों में
परिवर्तित हो
चट्टानों को काट
अटखेलिया करते हुए
अपना रास्ता बना
दूर सागर की गोद में
गुम हो
स्थायित्व प्राप्त कर लेती है !!