चलो गाँव की ओर
आज मेरी डियूटी सदस्य जिला पंचायत एवं सदस्य क्षेत्र पंचायत का निर्वाचन सम्पन्न कराने हेतु जनपद इलाहाबाद से 35 किमी दूर फूलपुर तहसील के बहरिया विकासखण्ड अन्तर्गत दलीपुर ग्राम में लगी | इलाहाबाद से 30 किमी व सिकन्दरा बाज़ार से केवल दो किमी दूर दलीपुर ग्राम का वातावरण अत्यन्त मोहक व सुरम्य प्रतीत हुवा | खेतों व बागों के मध्य स्थित साफ सुथरा प्राथमिक विद्यालय में वितायी गयी बिना मच्छर व लाईट पंखे वाली यह एक यादगार रात थी | प्रतीत हुवा कि बिना लाईट की यह रात बड़ी हो गयी है क्योंकि हम लोग रात्रि के आठ बजे ही भोजन आदि से निवृत्त हो गए तथा सोने के उपक्रम में सलग्न हो गए | यह दूसरी बात थी कि कही अंधेरे को चीरती हुई रामलीला मंचन व नौटकी की आवाज बरबस हमारा ध्यान आकर्षित कर ले रही थी | सुबाह मुॅह अंधेरे ही महिलाओं का कोलाहाल व उनका खेतों की तरफ दौड़ना बता रहा था कि विकास अभी उनसे कोसो दूर है | चापाकल पर लगी कतार समाजवाद का पाठ पढ़ा रही थी। चाय की दुकान पर एक ही पेपर की खिंचातानी व जगह जगह लोगों के गपशप करते झुण्ड समुदाय की वृहत अवधारणा को साकार रूप प्रदान कर रहे थे |सोंधी मिट्टी की खुश्बू व चूल्हे पर पकते भोजन की सुगन्ध वातावरण को नई आभा प्रदान कर रही थी साथ ही कच्चे लिपेपुते खपरैल के मकान एक नया लुक प्रदान कर रहे थे |
मतदान प्रारम्भ होने पर यह प्रतीत हुवा कि इस आयोजन का महत्व उनके लिए किसी पर्व से कम नही है | महिलाए अपने बच्चों के साथ बकायदे बन संवर कर मतदान के लिए आ रही थी तथा देरो कतारों में लग गपशप में मशगूल थी। जहाँ एक तरफ उनके कठिन व संघर्ष मयी जीवन के लिए मन द्रवित हुवा वहीं दूसरी तरफ यह स्पष्ट हुवा कि लोकतंत्र के असली प्रहरी यह ग्रामीण ही तो हैं जहाँ जनतंत्र फलता फूलता है।