रोज
रात को
पसर जाता है
आकाश
छत की
मुण्डेर पर
लिए हुए
तारो के
गुलदस्ते
अपने आँचल में
टंके हुए
कंदील की भाँति
जिनकी
टिम टिमाहट से
प्रकाशित होती हैं
दिशाएँ
पथिक को
सूनी पगडण्डियों पर
राह
दिखाने हेतु !!
7 अक्टूबर 2015
रोज
रात को
पसर जाता है
आकाश
छत की
मुण्डेर पर
लिए हुए
तारो के
गुलदस्ते
अपने आँचल में
टंके हुए
कंदील की भाँति
जिनकी
टिम टिमाहट से
प्रकाशित होती हैं
दिशाएँ
पथिक को
सूनी पगडण्डियों पर
राह
दिखाने हेतु !!
छत की मुण्डेर पर लिए हुए तारो के गुलदस्ते अपने आँचल में टंके हुए कंदील की भाँति जिनकी, बहुत सुन्दर ,सुखद अनुभूति की कविता !
8 अक्टूबर 2015