माँ में छिपी होती है संस्कार की पूरी पाठशाला
"माँ " एक सम्पूर्ण विश्वविद्यालय हैं जो बिना किसी प्रशिक्षण के न केवल शिशु को जैवकीय आकार ही देती है बल्कि उसके लालन पालन में भी अहम भूमिका का निर्वाह करती है | माँ शिशु की प्रथम शिक्षक होती है और घर शिशु की प्रथम पाठशाला जहाँ घर के अन्य सदस्य सहपाठी की भूमिका का निर्वाह कर बालक को संस्कार की घुट्टी पिलाते है तथा अनुशासन को मूर्तरूप प्रदान करते हैं | यदि माँ संस्कारवान होगी सुशिक्षित होगी तो वह निश्चित ही अपने शिशु में आदर्श नैतिक शिक्षा के बीज रोपने में सफल होगी किन्तु यदि घर का वातावरण दोषपूर्ण है तो उसका प्रभाव शिशु पर नकारात्मक पड़ेगा जिसका दूरगामी प्रभाव भविष्य में दृष्टिगोचर होगा इसलिए यह जरूरी है कि घर का वातावरण स्वस्थ्य होना चाहिए |