अन्तर्राष्ट्रीय विश्व महिला दिवस पर विशेष - एक तथ्य यह भी ......
मैने महिला सशक्तिकरण पर हुए कई सेमीनार में प्रतिभाग किया है तथा पाया है कि जिस भी वक्ता ने पुरुष बर्चस्वादी समाज की आलोचना करते हुए पुरूषो को धिक्कारा है उसने ज्यादा तालियाँ बटोरी है, पर ऐसे वक्ताओं ने महिलाओं की मूलभूत समस्याओं को नज़र अन्दाज कर अपनी विवेचना में न तो उनके मनोविज्ञान को ही जाँचा परखा है और न ही उनकी शारीरिक क्षमताओं का ही आंकलन किया है।
यदि भारतीय परिपेक्ष्य में नारी की दयनीय स्थिती का आंकलन करे तो संयुक्त परिवार में अधिकांश विवाद का कारण माँ-पत्नी और वहन के बीच अर्न्तकलाह का कारण अपना-अपना बर्चस्व बनाते हुए अधिकारों को प्राप्त करना होता है जिसमें पुरूष चक्की के दो पाटों के बीच पिसता रहता है | क्या आपने कभी मनन किया है?
** सामान्य संयुक्त परिवार में सास-बहू व ननद के बीच रोजाना चक चक में पुरूष का हाँथ नही होता है।
** दहेज कम मिलने की शिकायत व बहू के गुण अवगुण का आंकलन प्रायः परिवार की महिलाओं द्वारा ही किया जाता है।
** प्रायः महिलाओं द्वारा ही कमी निकालकर उलाहना देने तथा बेटी जन्मने पर प्रताड़ित करने का कार्य किया जाता है जिससे लिंगीय भ्रूणहत्या को प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
** अन्तर धर्म व अन्तर जातीय विवाह का सबसे अधिक विरोध महिलाओं द्वारा ही किया जाता है जो आनर किलिंग का कारण बनता है |
** प्राय: महिलाओं द्वारा ही महिलाओं को डायन के रूप में निरूपित करने का कार्य किया जाता है जो भविष्य में उनकी हत्या का कारण बनता है।
(कृपया महिलाएँ नाराज न होकर इन बातों पर भी चिन्तन मनन करें।)