कुछ गज़ले ..........
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |
कभी मंजिले तुम्हारी राह से होकर गुज़रती थी आज़ हमारी कब्र पर ठिकाना है तुम्हारा |
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |
कौन कहता है कि तुम बेवफा हो? वेवफा तो हम हैं जो साथ निभा न सके।
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |
तुम्हारी यादों को तो अलविदा कह दिया था हमने फिर यह खनकती हँसी कहाँ से चली आती है?
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |
सोचता था कि तुम रोज़ ख्वाबो में आओगी पर यह क्या तुम्हें देखे तो अर्सा गुज़र गया।
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |
लोग कहते है कि तन्हाई उन्हे काटती है पर तुम्हारी यादों का क्या करूँ वह तन्हा छोड़ती ही नही मुझे |
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |
हमने दोस्ती कर ली है खामोशियों से
पर तुम्हारा मौन अब भी अवाज़े देता है।
तर्जुबे की नज़ाकत ने रोशन कर दी जिंदगी .... मेरे दोस्त। वरना अन्धेरी नगरी में आशियाना था हमारा |