निगहबानी
........
सिमट-सिमट कर
सूक्ष्म होते
दायरों की
निगहबानी!
घिसट-घिसट कर
जी रहे
इंसानों की
निगहबानी!
अटक-अटक कर
चल रहे
पथिक की
निगहबानी!
दौड़-दौड़ कर
थक कर
चूर हो
हाँफ रहे
समाज की
निगहबानी!
और; कुछ नही
सिर्फ और सिर्फ
वह अंकुश है
जिससे;
एक बिगड़ैल
हाँथी को भी
नियान्त्रित कर
काबू में
लाया जा सकता है !!