मटमैले
चादरों की
सिलवटों से
लिपटी
विस्मृत हो चुकी
स्मृतियों से
चिपककर
अतीत की
अनन्त गहराईयों में
झाँक;
बोझिल हो रही
पलकों के
कपाट को
खोलने
बंद करने
कि;
जद्दोजहद में
बमुश्किल
रोज़
बीत जाती है
रातें
और;
सुबह
शेष रहते है
तकियों के
गिलाफ़ों पर
आँसू की
मोटी मोटी
बून्दों की
छाप
जो;
वयां करते है
रात्रि के
सफर की
दर्द भरी
कहानी !!