जब मैं
आइने में
देखता हूँ
अपना
प्रतिबिम्ब
तो ;
देखता हूँ
अतीत के
गर्भ में
पल रही
कुछ
बनती-बिगड़ती
सभ्यताएँ !
सामाजिक
तानेबाने में
उलझकर
बिखर कर
खण्ड-खण्ड
होते
रिश्ते !
स्याह काली
आदमकद
परछाईयों पर
चस्पा
मुखौटे
जो
सम्पूर्ण
मानव जाति को
अपने
क्रूर पंजों में
दबोचने को
आतुर है !
और ;
सुनहली
यादो की
डोर पर
सवार
मेरे भबिष्य की
पंतग
जो ;
सम्पूर्ण आकाश में
कुलांचे भर
चारो दिशाओं में
विजय पताका
फहराने को
दृण संकल्पित है !!