अक्शर
समाज में
दिख जाते हैं
वह क्रूर चेहरे
जो;
मानवता को
नोचते हैं
खसोटते हैं
और;
उसकी
एक-एक
खून की बूद
निचोड़ कर
चूस लेते हैं
उसका मज्जा तक!
में;
देखता हूँ
समाज में
वह;
हसीन चेहरे
जिनकी शोखियों में
छुपा होता है
छल
कपट
और
प्रपंच
जिसमें फसकर
पतंगे की भाँति
निरीह
तोड़ देते हैं
दम!
में;
देखता हूँ
वह अक्श
जो;
इंसान के
कतरा कतरा
रक्त का
रसास्वादन कर
करते है
अट्हास!
में
देखता हूँ
रोज
आड़े तिरछे
अज़ीब चेहरे
जिनकी खूखार
आंखों में
नाचती है
मौत
जिससे
सहम कर
मानवता
कर उठती है
चित्कार!
मैं
देखता हू
रोज
इंसानियत को
तार-तार
करने वाले
चेहरे
चेहरे
और
बदरंग
चेहरे !!