हिज्र में तेरे
ओ दिलबर
ऊल्फ़तों ने
रूसवा है किया
कभी शोला बने हम
तो कभी शबनम बन जिया
हिज्र में तेरे!
हिज्र में तेरे
ओ दिलवर
हमने
गुस्ताखिया है किया
कभी ओठो को छुआ
तो कभी गेसुओं में जिया
हिज्र में तेरे!
हिज्र में तेरे
ओ दिलवर
तेरी
रूह को महसूस है किया
कभी तब्बसुम को पिया
तो कभी ख्यालों में जिया
हिज्र में तेरे! !