हल्की बारिश हो रही थी और रात के करीब आठ बज रहे थे ,भार्गव अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहा था,भीगी सड़क ऊपर से अँधेरा क्योकिं कहीं-कहीं की स्ट्रीट लाइट्स भी नहीं जल रहीं थीं,तभी एकाएक बारिश की रफ्तार बढ़ गई,तो भार्गव को मजबूर होकर अपनी मोटरसाइकिल रोकनी पड़ी फिर वो सड़क के किनारे लगें एक बस-स्टाँप के शेड के नीचे आकर खड़ा हो गया,हेलमेट सिर से उतार कर उसने अपने हाथों में ले लिया,वहाँ दो लोंग और भी खड़े थे,अँधेरा था इसलिए ठीक से दिख नहीं रहा था,शायद कोई बूढ़ा था और एक औरत जिसने साड़ी पहनी थी।।
तभी जोर की बिजली कड़की और भार्गव ने उस औरत का चेहरा देख लिया,वो उसके पास जाकर बोला....
ज्योत्सना ! तुम हो यहाँ पर।।
नहीं कोई चुड़ैल खड़ी है,ज्योत्सना बोली।।
मज़ाक कर रही हो,भार्गव बोला।।
जब पता चल ही गया है कि मैं ही हूँ तो क्यों पूछ रहे हो? ज्योत्सना बोली।।
इतने साल हो गए लेकिन तुम्हारा स्वाभाव नहीं बदला,भार्गव बोला।।
स्वाभाव तो नहीं बदलता लेकिन लोंग जरूर बदल जाते हैं,ज्योत्सना बोली।।
शायद तुम सही कह रही हो,भार्गव बोला।।
और फिर इतनी बातों के बाद दोनों के बीच खामोश़ी पसर गई,खामोश़ी से भार्गव को अकुलाहट होने लगी तो उसने फिर चुप्पी तोड़ते हुए ज्योत्सना से सवाल किया....
कहाँ जा रही हो? कहो तो छोड़ दूँ।।
छोड़ तो दिया है,ज्योत्सना ऐसा बोली तो भार्गव के कलेजे में तीर की तरह उसके शब्द चुभ गए ज्योत्सना की बात सुनकर फिर वो बोला....
मैने नहीं तुमने छोड़ा था मुझे,
तुम रोक भी तो सकते थे मुझे जाने से,ज्योत्सना बोली।।
गलती तुम्हारी थी तो मैं क्यों रोकता भला? भार्गव बोला।।
इसका मतलब तुम्हें मेरे जाने का कोई पछतावा नहीं,ज्योत्सना बोली।।
वो तो मेरा ईश्वर ही जानता होगा,भार्गव बोला।।
ईश्वर पर अपना किया मत डालो,ज्योत्सना बोली।।
मैने तुम्हें कितना खोजा तब जाके पता चला कि तुम अपनी बड़ी बहन के घर रह रही हो और किसी पार्लर में काम करने लगी हो,भार्गव बोला।।
इतनी खोज-खबर कर ही ली थी तो आ जाते मुझे लिवाने,ज्योत्सना बोली।।
रूठकर तो तुम गई थी वो भी जरा सी बात पर,भार्गव बोला।।
वो जरा सी बात थी,ज्योत्सना बोली।।
तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि तुमने अपने सोने के कंगन बेच दिए थे,भार्गव बोला।।
मैं सोच रही थी कि उन्हें बेचकर तुम्हारे लिए तोहफा लाऊँगी तो तुम्हें खुशी होगी,लेकिन तुम मुझ पर चिल्ला पड़े,ज्योत्सना बोली।।
जब तुम्हें पता था कि मैं इतना नहीं कमा सकता,छोटी सी नौकरी थी मेरी, मैं तुम्हें आज तक एक सोने की एक अँगूठी तक नहीं दिला सका और तुम्हारे पास जो सोने के कंगन थे वो भी तुमने बेच दिए,तुम्हारी सूनी कलाइयाँ देखकर मुझे बहुत बुरा लगा था,भार्गव बोला।।
मैने तुमसे कभी कुछ माँगा,ज्योत्सना ने पूछा।।
नहीं! कभी नहीं,भार्गव बोला।।
जब हम दोनों ने अपने अपने घरवालों के विरूद्ध जाकर लवमैरिज की थी तो एक दूसरे से वादा भी किया था कि हम कभी भी एक दूसरे का दिल नहीं दुखाऐगे और तुमने उस रात वही किया था,ऐसी ही बारिश की रात थी और भीगी सड़क थी जब मैं घर से निकल आई थी और तुमनें मुझे रोका भी नहीं,ज्योत्सना बोली।
तुमने काम ही ऐसा किया था,भार्गव बोला।।
ऐसा क्या कर दिया था मैने ,अपने सोने के कंगन बेचकर तुम्हारे लिए लैपटॉप ही तो खरीदा था,तुम्हें बिना लैपटाँप के काम करने में और पढ़ाई करने में कितनी दिक्कत होती थी इसलिए मैने सोचा कि तुम्हें तोहफे में लैपटॉप दे दूँ,लेकिन तुम तो लैपटॉप देखकर मुझ पर बिगड़ पड़े,ज्योत्सना बोली।।
पागल औरत !कोई अपने कंगन बेचकर लैपटॉप तोहफे में नहीं देता,भार्गव बोला।।
तुम फिर गुस्सा कर रहे हों,ज्योत्सना बोली।।
अच्छा!अब गुस्सा नहीं करूँगा,मेरे साथ चलो ना!,भार्गव बोला।।
वो क्यों भला?नहीं जाती साथ,क्या कर लोगें?ज्योत्सना बोली।।
उठा ले जाऊँगा? अभी हमारा तलाक नहीं हुआ है समझी!भार्गव बोला।।
पता है इतने दिन मैनें कैसे गुजारे तुम्हारे बिन! ज्योत्सना बोली।।
हाँ! जानता हूँ,रो-रोकर,भार्गव बोली।।
जब जानते थे तो रुलाया क्यों?ज्योत्सना बोली।
गलती हो गई,माँफ कर दो,चलो ना घर,भार्गव बोला।।
अब तो नहीं झगडो़गे,ज्योत्सना ने पूछा।।
नहीं...कभी नहीं..,भार्गव बोला।।
और तब तक बारिश थम चुकी थी फिर ज्योत्सना,भार्गव के साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर चल पड़ी,अब उनके बीच दूरियाँ मिट चुकीं थीं,अब दोनों फिर से एक बार एक दूसरे के मन के मीत बन चुके थे।
समाप्त.....
सरोज वर्मा....