मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है, शिकायत तो तब होगी ना,जब कोई सुनने वाला होगा,अब कोई भाव ही नहीं उठते,ना खुशी के ना ही गम के,जीवन बोझ सा लगने लगा,जिसे अब तक ढों रही थी,क्या करूं?सारी संवेदनाएं और भावनाएं ही मर गई जीवन से संघर्ष करते-करते बहुत थक गई हूं,अब आराम करना चाहती हूं, हमेशा के लिए।।
कितना बड़ा पाप हो जाता है ना हम बेटियो से इस दुनिया में आकर, सबसे पहले लोगों के मुंह से यही शब्द निकलता है कि हाय राम!!बेटी हुई है, पैदा होते ही मां बाप को चिंता सताने लगती है, मां सोते-जागते बस यही सोचती है कि बेटी है इसे तो पराये घर जाना है इसका दहेज जुटाना है,
मां जो सोचती है वहीं विचार दूध के साथ घुल-घुल कर बेटी के शरीर और मन में जातें हैं,उसे बात बात पर कहा जाता है,तुझे तो पराए घर जाना है, कैसे खा रही, कैसे बैठ रही है, अभी सीख ले कल को पराये घर जाना है और पराए घर जाकर वहां भी उसे कोई भी अपना नहीं बनाता तो इसका मतलब बेटी का तो कोई घर ही नहीं होता।।
सयानी होने पर अगर राह चलते किसी ने कोई अभद्र टिप्पणी कर दी तो मां को बताने पर मां ने कहा तू अब बड़ी हो गई है दुपट्टा डाला कर,सूट पहना कर, किसी से उलझना नही तुम लड़की हो अगर दादी को पता चल गया तो तेरी पढ़ाई बंद करवा देंगी, मां ने पहली सीख देदी क्योंकि तुम बेटी हो तो सहो,
मतलब अभद्र टिप्पणी करें कोई और हमें चुप इसलिए रहना कि हम लड़कियां हैं,भाई चाहे छोटा ही क्यो ना हो लेकिन उसे हक होता है हमसे कहने का कि बालकनी में खड़ी मत हो, अकेले मत जाना मैं छोड़ आऊंगा, आखिर क्यों?मां-बाप की हिम्मत ही नहीं होती कि बेटी को बाहर पढ़ने के लिए भेंज दें, यहीं डर रहता कि कोई ऊंच-नीच हो गई तो और लड़के चाहे बाहर रहकर अय्याशी करें, मां-बाप का पैसा उड़ाए क्योंकि वो तो लड़के हैं, उनसे तो वंश बढ़ेगा, खानदान का नाम बढ़ेगा फिर बाद में बहु आने के बाद वो चाहे खाने को भी ना पूछे।।
शादी के लिए भी कोई पसंद भी नहीं पूछता, सबसे बड़ी बात बेटी की शादी करने के बाद लोग तो गंगा नहाने जाते हैं,घर का कचरा थी उसके रहने से हम अपवित्र हो गये थे तो उसकी शादी करके गंगा नहा आते हैं और लड़कों को बेटा ये लड़की पसंद है पूछने पर अगर उसने मना कर दिया तो फिर दूसरी लड़की देखी जाएगी और कहीं पचासों लड़कियां देखने के बाद शादी होगी।।अरे भाई!!कभी हम लड़कियों से भी पूछ लो कि हमें लड़का पसंद है कि नहीं!।
शादी के बाद ससुराल में सबकुछ करने के बाद भी तुम्हारे मम्मी-पापा ने कुछ नहीं सिखाया,यही सुनने को मिलता है,पति से बोलो तो___
अरे! मां है, बड़ी है कह दिया होगा, बड़ो के बोलने को आशीर्वाद समझा करो,पति बिना बताए घर वालों को कितना पैसा दे रहा तो पूछने पर___
तुम्हारी जरूरतें पूरी हो रही है ना!! तो फिर क्यो बोल रही हो,मैं कमा रहा हूं तुम्हें पूछने की कोई जरूरत नहीं है,
मायके वालों से कहो तो कहते हैं, बेटा ससुराल है सब सहना पड़ता है, मायके वाले सोचते हैं कि ऐसा ना हो कि बेटी आवाज उठाने लगे तो उसे ससुराल से निकाल दिया जाए, मायके में ना आ जाए रहने के लिए तो चार लोग क्या कहेंगे, मतलब बेटी अगर मर रही है तो बेटी की जिंदगी का फैसला चार लोग करेंगे, आखिर कौन है ये चार लोग?
इतनी घुटन सहने के बाद अब तो ऐसा लगता है कि दुनिया वालों से कह दो कि मुझे जलाने के बाद बस मेरी राख को ऐसे ही उड़ने देना, मैं जीते जी तो नहीं लेकिन मरने के बाद आजादी को महसूस करना चाहती हूं,धरती छूना चाहती हूं, आसमां छूना चाहती हूं,जल,थल और वायु में स्वच्छंद उड़ना चाहती हूं, आजादी का मतलब समझना चाहती हूं,अपनी मन मर्जी से सिर्फ उसके पैर पर लगूंगी जिसके पैरो में वाकई लगना चाहती हू़ं, उड़कर खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं ,वो करना चाहती हूँ ,जो जीते जी ना कर सकी क्योंकि अनचाही बेटी जो थी।।
समाप्त....
सरोज वर्मा___