वृक्ष का संबंध मनुष्य के आरंभिक जीवन से है, मनुष्य की सभ्यता इन वृक्षों के साथ ही विकसित हुई है, वृक्षों ने मनुष्य को पहनने के लिए वस्त्र दिए,खाने को फल दिए और श्वास लेने के लिए वायु प्रदान की, धीरे-धीरे जब मनुष्य में बौद्धिक समझ विकसित हुई उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों को पहचाना और उसकी प्रमुखता को भी जाना,यही कारण है कि आदिकाल में प्रकृति की पूजा की जाती थी,
उन्होंने अपने देवी देवता भी इन्हीं को माना था,यही परंपरा आज भी चली आ रही है किंतु लोगों ने वृक्षो से धीरे-धीरे दूरी बना लिया है,आज उन्होंने केवल भौतिकवादी मानसिकता को अपनाकर निरंतर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है,अपने सुख-सुविधाओं और वैभव पूर्ण जीवन के लिए वृक्षों की कटाई की,
यही वृक्ष जो आदिकाल से मनुष्य का भरण पोषण किया करते थे ,उनकी हालत दयनीय कर दी है, जिसका दुष्प्रभाव भी हमें बड़ी मात्रा में देखने को मिल रहे हैं, ताप वृद्धि,सूखा ,बाढ़, वर्षा का ना होना यह सभी वृक्षों के साथ बुरा बर्ताव करने से हो रहा है,इसलिए व्यक्ति को अपने प्रकृति के संबंध को पुनः याद करना होगा और बड़ी मात्रा में वृक्षों को लगाकर उसके संरक्षण के लिए प्रण लेना होगा,अगर वृक्ष नहीं रहे तो मानव जीवन पृथ्वी पर संभव नहीं रहेगा।
”यदि मैं जान जाऊँ कि कल इस संसार का अन्त हो जाएगा, तब भी मैं अपना सेब का पेड अवश्य लगाऊँगा ।” किंग मार्टिन लूथर
ये बात उन्होंने कही यह बात न सिर्फ वृक्षों की उपयोगिता का बखान करती है, बल्कि पेड-पौधों से उनके हार्दिक प्रेम को भी प्रदर्शित करती है ।
सन्त कबीर ने इनके महत्व को इस प्रकार व्यक्त किया ।।
”वृक्ष कबहुँ नहीं फल भखै, नदी न संचै नीर ।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर”
प्राचीन काल से ही मनुष्य और प्रकृति का संबंध बहुत घनिष्ठ रहा है,भोजन से लेकर आवास तक मनुष्य अपनी सभी जरूरतों के लिए पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर था, क्योकि वृक्षों ने मनुष्य को खाने के लिए फल, ईंधन के रूप में लकड़ी और शरीर को ढकने के लिए पत्ते दिये।
लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे जब मनुष्य का विकास होने लगा और वह आधुनिकता की ओर बढ़ने लगा,तब मानव विकास और आधुनिकता की दौड़ में पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान पहुचाने लगा, उसने अंधाधुंध पेड़ों को काटना शुरू कर दिया और कुछ ही समय में कई जंगलों को नष्ट कर दिया, लेकिन वृक्षो की कमी की कारण आज हमें कभी अकाल तो कभी सुनामी जैसे हालात देखने को मिलते है,ग्लोबल वार्मिंग जैसी खतरनाक घटनाएं भी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से ही होती है, इन सभी प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है।
१- औद्योगीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है, फलस्वरूप विश्व की जलवायु में प्रतिकूल परिवहन हुआ है , साथ ही समुद्र का जलस्तर उठ जाने के कारण आने वाले वर्षों में कई देशों एवं शहरों के समुद्र में जल-मग्न हो जाने की आशंका है ।
२- जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है, यदि इस पर नियन्त्रण नहीं किया गया, तो परिणाम अत्यन्त भयानक होंगे ।
३- इन्वायरन्मेण्टल डाटा सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, नागरिक एवं राष्ट्रों की सुरक्षा, भोजन, उर्जा, पानी एवं जलवायु इन चार स्तम्भों पर निर्भर है, ये चारों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है और ये सभी खतरे की सीमा को पार करने की कगार पर है ।
४- अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए मानव विश्व के संसाधनों का इतनी तीव्रता से दोहन कर रहा है कि पृथ्वी की जीवन को पोषित करने की क्षमता तेजी से कम होती जा रही है ,भोजन, ऊर्जा एवं जल की इस बढ़ी हुई माँग के फलस्वरूप उत्पन्न सकट के दुष्परिणाम भी भयंकर हो सकते हैं ।
विश्व में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू हो गया था, जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दी में अपनी चरम सीमा को पार कर गया, कुपरिणामस्वरूप विश्व की जलवायु पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया ।
भारत सरकार भी विभिन्न राज्यों में वृक्षारोपण के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं पर कार्य कर रही है, इसके अतिरिक्त, विभिन्न प्रकार के गैर-सरकारी संगठन भी वृक्षारोपण का कार्य करते हैं, वृक्षारोपण के कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देने के लिए लोगों को वृक्षों से होने वाले लाभ से अवगत कराकर पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना होगा,कुछ संस्थाएँ तो वृक्षों को गोद लेने की परम्परा भी कायम कर रही हैं,
ऋतु चक्र का संतुलित व्यवहारवृक्षों से हमने अनेकों लाभ तो प्राप्त ही किए,किंतु इसका एक अहम योगदान वातावरण को संतुलित करने में भी है, वृक्ष अपने आवरण से एक ऐसी परिधि का निर्माण करते हैं जो वायुमंडल में हानिकारक गैस तथा किरणों को घुसने नहीं देते,वृक्षों के माध्यम से प्रकृति का चक्र संतुलित बना रहता है,समय पर वर्षा इसी संतुलन के आधार पर हो पाता है।
पूर्व समय में यह चक्र बेहद संतुलित था,अपने समय के अनुसार यह सभी कार्य पूरे हुआ करते थे , आज वैसी स्थिति नहीं रही,प्रकृति का संतुलन बिगड़ने से कहीं अधिक वर्षा होती है,तो कहीं सूखाग्रस्त रहता है,समय पर वर्षा नहीं होने से फसल नहीं लग पाती तथा कहीं अत्यधिक वर्षा से फसलें बर्बाद हो जाती है,बाढ़ आदि तमाम प्रकृति के संतुलन बिगड़ने से घटनाएं हो रही है।
यह सही समय है जब लोगों को वृक्षारोपण के महत्व को पहचानना चाहिए और इसके लिए योगदान करना चाहिए,सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और अधिक से अधिक लोगों को इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए।
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सरोज वर्मा....