भारत माता ही मेरी माता है, मैं गंगा हूं।वह स्वर्ग-सी भारत भूमि मेरी जन्म भूमि ही नहीं कर्मभूमि भी है। मैं भारतीय संस्कृति का प्रवाहमान रूप हूं।मेरी लहर -लहर में भारतीय संस्कृति बसी है अतः यहां मुझे पूजा जाता है। कोटि-कोटि भक्तजन दर्शन का लाभ उठाकर अपना जन्म सफल मानते हैं,मैं पाप नाशिनी हूं। किसी ना किसी रूप में कहीं ना कहीं कवियों ने मेरी महिमा गाई है। भारतीय संस्कृति का सुदृढ़ आधार स्तम्भ हिमालय मेरा पिता है, मैं भी भारतीय संस्कृति का प्रतीक मानी जाती हूं।
मैं लोक मंगलकारिणी हूं, मेरी जन्म कथा पुराण साहित्य में गायी गई है, विष्णु पुराण और शिव पुराण भी मेरी गाथा गा रहे हैं, मैं विष्णु प्रिया हूं,विष्णु के चरण कमल नख से जन्मी हूं, भागीरथ के तपोबल से प्रसन्न होकर आई मैं भागीरथी हूं,ब्रह्मा जी के कमण्डल से निकली हूं, मेरे वेग को कौन धारण कर सकता है अतः मुझे शिव सिर पर मालती की माला के समान विचरण करना पड़ा,शिव जटाओं में रमणोपरांत मैं हिमालय के रम्य ,शान्त, एकान्त प्रदेश में होती हुई कपिल मुनि के आश्रम की ओर बढ़ी, जहां राजा भागीरथ के पूर्वज पड़े थे,जिनके उद्धारार्थ मेरा अवतरण हुआ था,बाद में हिमालय पर गोमुख बनाकर भक्तो ने गंगोत्री से मेरा अवतरण किया,हिम देश के प्रवेश द्वार 'हरिद्वार' को पार करती हुई, मैं आगे बहकर आई हूं।।
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां लिखी है गंगा के लिए कवि सन्त शर्मा जी ने__
"पावन सरिता राष्ट्र की, गंगा मेरा नाम।
सुरसरि औ भागीरथी, मैं जाह्नवी सकाम।।"
मैं जाह्नवी सकाम, सहस्र सुत सगर,तरे मेरे तट नेरे।।
'सन्त' सकल गुण गान कर, रहें ने रंच अपावन।
मैं सभ्यता प्रतीक देश की सरिता पावन।।"
कवि सन्त शर्मा___🌹