गणित के समीकरणों की तरह हमेशा रिश्तों को हल ही तो करती आई हूँ मैं!
मेरे मन के इतिहास को कोरैदे कोई तो ना जाने कितने आँसू,आशाएँ और इच्छाएंँ दफ्न होगीं दिल के किसी कोने मे।
मेरे तन के भूगोल को टटोले कोई मिलेंगे तीव्र,तीक्ष्ण गहरे घाव,वैसे सारा बवाल तन का ही तो है साहब !वर्ना अहिल्या पाषाण में क्यों बदलती भला!
हिन्दी मेरी अच्छी नहीं क्योंकि कटु नहीं बोल पाती,संस्कारों की घुट्टी जो घोलकर पिलाई है माँ बाप ने।।
अंग्रेजी बोलने पर सभी कहते हैं कि देखो तो अंग्रेजन बनती है।।
कितना हास्यकर होता है ना हम नारियों के लिए सभी विषयों का ज्ञान रखना।।
सरोज वर्मा....