कसूर मेरा ही हैं,
पुरूष प्रधान इस दुनिया में
जिस पुरुष को मैं ही तो लाई हूं!!
हर रिश्ते को बांधा मैंने
प्यार और दिल से निभाया
हमेशा रिश्तो का मान रखा
लेकिन फिर भी हर पुरुष के
लिए केवल एक खिलौना
वो चाहे पिता हो,भाई हो,
पति हो या फिर बेटा हो
खुद का अस्तित्व ही ना ढूंढ
पाई कभी, इतना आत्मविश्वास
ही ना जगा पाई कभी,
शायद मैं ही कमजोर थी
जो अपनी पहचान बनाने
घर से निकल ना पाई कभी
क्योंकि पुरुष की आंखों में
अपनी छवि देखकर घबरा जाती हूं
चाहते हैं मुझे सभी पढ़ना
अपने हाथों से छूकर क्योंकि
इनके लिए मैं शायद एक
ब्रेल-लिपि हूं!!
समाप्त___
सरोज वर्मा___