हमारे मुहल्ले में सावित्री अम्मा रहा करतीं थीं,वो हमारे मुहल्ले की सबसे बुजुर्ग महिला थीं, उनसे लोग तीज त्यौहार,व्रत, अमावस्या, पूर्णिमा के बारे में पूछा करते थे, क्योंकि उन्हें बहुत अनुभव था,उस समय उनकी उम्र यही कोई पचासी साल रही होगी।।
एकदम गोरा रंग, आंखों पर चश्मा और हाथ में छड़ी,वो अपनी बड़ी बेटी के यहां रहा करतीं थीं , उनकी केवल दो बेटियां ही थीं,छोटी बेटी थोड़ा गरीब थी तो सावित्री अम्मा ज्यादातर बड़ी के यहां ही रहतीं थीं।। क्योंकि मेरी उम्र उस समय यही कोई नौ दस साल रही होगी और मुझे बचपन से ही कहानियां सुनने का बहुत शौक़ था कोई भी बुजुर्ग मिल जाता तो उससे मेरी फरमाइश होती कि कहानी सुनाओ,
तब सावित्री अम्मा ने अपनी खुद की कहानी सुनाई।।
उन्होंने बताया कि वो एक गरीब परिवार से थीं, (अंग्रेजों)गोरों का शासन था तब,आते जाते कभी भी गोरे कुछ भी वसूल करके ले जाते,उस समय उनके अम्मा बाबूजी समोसे और चाट बेच कर गुजारा करते थे और कभी कभी शादी ब्याह वगैरह में भी खाना बनाने का काम भी मिल जाता,
उन्होंने बताया कि उनके बाबूजी के पास चांदी की दो ईंटें थी जो उनके दादा जी को वहां के राजा ने खुश होकर दी थीं क्योंकि उनके दादा जी महल में रसोइए का काम किया करते थे।।
लेकिन उनके बाबूजी को महल में खाना बनाना मंजूर नहीं था,राजा ने कई बार बुलवाया भी लेकिन बाबूजी नहीं गए,अब शासन नए राजा सम्भाल रहे थे, मतलब राजा के बेटे।।
घर में बहुत बुरे हालात थे, कभी बाबूजी को काम मिलता कभी नहीं,चाट की दुकान से कोई मुनाफा नहीं था,ऊपर से कुछ तो मुफ्त की चाट खाने वाले थे,थक हार कर मां के कहने पर बाबूजी महल में काम मांगने गए और उन्हें काम मिल भी गया।।
कुछ दिनों तक बाबूजी काम करते रहें फिर रानी बोली कि अपनी पत्नी को भी यहां ले आओ तो कोई ना कोई काम मिल ही जाएगा, हमारा श्रृंगार ही कर दिया करेंगी।।
और फिर एक दिन मैं अपनी मां के साथ उस महल पहुंची,तांगे वाले ने महल से बहुत दूर उतार दिया,हम कम से पूरा खेत जैसा मैदान पार करके गए,सामने लोहे का बहुत बड़ा गेट मिला, जहां अगल बगल दो दरबारी तैनात थे,वो बाबूजी को पहचानते थे इसलिए हमें अन्दर जाने दिया, मुझे लगा कि महल आ गया लेकिन अभी महल नहीं आया था,अभी आई थी फुलवारी,कम से कम एक डेढ़ कोस अभी और चलना था, मैं उस फूल फूलवारी वाले रास्ते को पार करते समय बहुत ही ललचाई नज़रों से देख रही थी,मन कर रहा था कि फूल तोड़कर माला गूंथ लूं अपनी गुड़िया के लिए।।
थोड़ी देर में महल आ गया,महल को देखकर मेरी तो आंखें खुली की खुली रह गई, मां और मैं रानी के पास पहुंचे,रानी इतनी सारे गहनों से लदी थी, इतना सुन्दर लहंगा, मैंने अपनी जिंदगी में कभी भी ना देखा था, मां को रानी ने देखा और पूछा___
श्रृंगार करना आता है,मेरा श्रृंगार करोगी।।
मां बोली,
थोड़ा बहुत आता है लेकिन कुछ समय में सब सीख जाऊंगीं।।
रानी बोली ,ठीक है, फिर मां को रानी ने सारे काम समझा दिए।।
बाबूजी ने कहा चलों तुम्हें महल दिखाते हैं और मैं महल देखकर दंग रह गई महल के पीछे एक अमरूद का बगीचा और साथ में ही लगा हुआ नींबू का बगीचा था और खेत भी थें जहाँ तरह तरह की भाजी-तरकारी लगी थी,मेरा तो उस महल में मन लग गया और बाबा रसोइया थे तो खाने की भी कमी नहीं थी।।
बस एक ही कमीं थी उस महल में कि उसका कोई वारिस नहीं था और राजा ने प्रेमविवाह किया था तो वे दूसरा ब्याह नहीं करना चाहते थे और गोद लेने के लिए ढंग का वारिस नहीं मिल रहा था।
बस ऐसे ही मैं और माँ रोज महल जाकर शाम तक वापस आ जाते और महल जाना हमारी रोज़ की दिनचर्या में शामिल हो गया,
फिर एक दिन मां रानी के कक्ष में कुछ काम कर रही थी और वहीं अचानक चक्कर खाकर गिर पड़ी,रानी ने फौरन वैद्य को बुलाया,
वैद्य बोला खुशखबरी हैं.....नन्हा मेहमान आने वाला है ,उस समय मेरी उम्र लगभग सात साल होगी,सात साल के बाद मां की गोद फिर हरी हो रही थीं बाबूजी बहुत खुश हुए,उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।।
इसी तरह दिन बीत रहे थे,अब माँ चाहती थी कि वो घर पर रहकर ही आराम करें क्योंकि नन्हें मुन्ने के आने मे ज्यादा समय नही बचा था,ये बात सुनकर रानी ने कहा, एक दो दिन और आ जाओ फिर आराम करना, मैं तुम्हारे लिए महल की बग्घी भेज दिया करूंगीं।।
रानी की बात सुनकर,मां महल आने के लिए राजी हो गई,
हम लोग दूसरे दिन बग्घी में बैठकर फिर से महल गए और वहां जो हुआ वो किसी ने सपने मे भी नहीं सोचा था,
रानी ने माँ को अपने पास कैद कर लिया, बोली जो बच्चा होगा वो अब मेरा हैं और ये तब तक मेरे पास मेरी निगरानी में रहेगीं जब तक कि बच्चा नहीं हो जाता और तुमनें किसी से कुछ भी कहा तो किसी भी झूठे इल्ज़ाम मे जेल मे डलवा देगें ,गोरे अफ्सर के पास भी शिकायत भेज दी जाएगी और राजा के कुछ लठैतों ने बाबूजी को मारा भी।।
बाबूजी मुझे लेकर वापस आ गए, बहुत परेशान रहे वो क्योंकि वो जब भी माँ से मिलने की कोशिश करते उन्हें मिलने नहीं दिया जाता, कुछ दिनों बाद बच्चा भी हो गया, पता चला लड़का हुआ हैं और एक महीने बाद ही उन्होंने बच्चा रखकर माँ को वापस भेज दिया।।
ऐसे पन्द्रह साल बीत गए, मेरा बाद में एक और भाई हुआ लेकिन बाबूजी को जब राजकुमार कहीं दिख जाते तो बाबूजी का मन उदास हो उठता लेकिन फिर तसल्ली कर लेते कि चलो अच्छे घर मे संतान पल रही हैं और कुछ दिनों बाद पता चला कि राजकुमार का राज्याभिषेक होने वाला हैं, बाबा तो बेहद खुश थे और माँ भी लेकिन राज्याभिषेक के एक रात पहले ही राजकुमार को नाग ने डँस लिया और वो भगवान को प्यारा हो गया।।
रानी और राजा को ये फल त़ो मिलना ही था क्योंकि उन्होंने किसी की सन्तान को धोखे से छीना था,ना वो सन्तान उनको मिल सकी और ना किसी और को,सावित्री अम्मा कहानी सुनाते सुनाते उदास हो उठी।।
समाप्त....
सरोज वर्मा__