सुबह से रिमझिम रिमझिम बारिश हो रही है और अतुल अपने कमरें की खिड़की से अपने बगीचें की ओर देख रहा है कि कैसें बारिश की बूँदें पेड़ ,पौधों,फूलों और पत्तों को भिंगो रहीं हैं,सालों पहले भी उसने अपने कमरे की खिड़की से किसी को भीगते हुए देखा था,वो कितनी खुश हो रही थी बारिश की बूँदों में नहाकर,उसने अपनी छतरी को भी खुद़ पर से हटा दिया था, लेकिन उसकी नज़रें जैसें ही अतुल से मिली तो वो पहले थोड़ी शर्माई और बाद में गुस्सा दिखातें हुए चली गई और उसकी इस हरकत से अतुल की चेहरें पर एक मुस्कान बिखर गई थी।।
अतुल ये सोच ही रहा था कि तभी उसके ध्यान को भंग करते हुए,सुहासिनी उसके कमरें में आकर बोली।।
ये जी!सुबह से देख रही हूँ,कुछ खोए खोए से लग रहे हो,चाय लाने को कहा तो मैनें रख दी लेकिन आपने पी ही नहीं,अब तक तो शर्बत भी बन गई होगी,सुहासिनी ने अपने पति अतुल से कहा।।
हाँ! जरा कुछ सोच रहा था,अतुल बोला।।
जरा मैं भी तो सुनुँ,क्या सोच रहे थे आप?सुहासिनी ने अतुल से पूछा।।
कुछ नहीं,कुछ पल ,कुछ लोंग हमारी जिन्दगी में यूँ ही चुपके से आते हैं और हमें ये एहसास करा जाते हैं कि हम कितने ख़ास हैं किसी के लिए,अतुल बोला।।
जरा मैं भी सुनुँ कि आपकी जिन्दगी में ऐसा कौन है जिसने आपको ख़ास होने का एहसास कराया है,सुहासिनी ने अतुल से पूछा।।
मैने तुम्हें आज तक नहीं बताया लेकिन जबकि हम नाती पोतों वालें हो गए हैं तो मन कर रहा है कि तुम्हें ये बता दूँ,अतुल बोला।।
तो आप मुझे इतने सालों तक धोखा देते रहें,सुहासिनी ने रूआंसी सी होकर पूछा।।
तुम मुझे गलत समझ रही हो सुहास!ना मैनें तुम्हें कोई धोखा दिया है और ना उसने मुझे धोखा दिया था,ये सारा खेल तो बस नसीब का था,वो मेरे नसीब में नहीं थी शायद इसलिए मौत ने उसे मुझसे जुदा कर दिया,अतुल बोला।।
ऐसा क्या हुआ था?अपने दिल की बात बताकर शायद आपके मन का बोझ हल्का हो जाए,सुहासिनी बोली।।
हाँ,आज तो मन का बोझ हल्का ही करना होगा,नहीं तो मैं ताउम्र जी नहीं पाऊँगा,अतुल बोला।।
तो बताइए ना! सुहासिनी बोली।।
तो सुनों और इतना कहकर अतुल ने अपनी दास्तां छेड़ दी....
तुम्हें तो मैनें पहले ही बताया था कि मैं बचपन से बीमार रहता था,बड़ी दीदी के पैदा होने के काफी सालों बाद भगवान ने माँ की झोली में मुझे डाला था इसलिए मुझे प्यार और दुलार भी बहुत मिला,दादी और माँ मेरे ऊपर जान झिड़कती थीं लेकिन आए दिन मेरा बीमार रहना सबको खलने लगा था इसलिए पिताजी ने अपने एक दोस्त से इस बारें में बात की क्योंकि वो दिल्ली में किसी सरकारी दफ्तर में कम करते थें और तीज त्यौहार पर ही घर आते थे,उन्होंने कहा कि इस बार तुम भाभी जी और मुन्ने को लेकर दिल्ली आ जाओं वहीं मुन्ने का इलाज करवाते हैं,शायद इसकी बिमारी के बारें में कुछ पता चल सकें,यहाँ वैद्य हकीम के चक्करों में पड़कर कुछ नहीं होने वाला।।
पिताजी को उनका सुझाव पसंद आया और वो मेरा इलाज करवाने उनके साथ दिल्ली आ गए,चाचाजी के साथ चाची जी और उनके दो बेटे रहते थें जो कि उम्र में मुझसे बड़े थे,हम सबने उनके घर में कुछ दिन रहकर मेरा इलाज करवाया,इलाज करवाने पर पता चला कि मेरे दिल में सुराग है और डाक्टर ने कहा कि अभी बच्चे की उम्र बहुत कम है इसलिए आँपरेशन होना मुमकिन नहीं,बस बच्चे को ये दवाएं देते रहें और हर छः महीने में या सालभर मेः इसका चेकअप करवाने लाते रहें या आपके आस पास भी कोई बड़ा अस्पताल हो तो आप वहाँ भी चेकअप करवा सकते हैं लेकिन बच्चा जब तक बड़ा नहीं हो जाता आँपरेशन का खतरा नहीं ले सकते ,साथ साथ कुछ सावधानियाँ भी बरतनी होंगीं ।।
डाक्टर की बात सुनकर हम सब फिर से दिल्ली से लौट आए लेकिन कई सालों तक मेरा चेकअप बराबर चलता रहा ,कुछ परेशानियाँ तो आईं लेकिन कभी स्वास्थ्य इतना खराब नहीं हुआ कि अस्पताल में भर्ती होना पड़े।।
फिर सालों बाद ऐसा दिन भी आ पहुँचा कि इलाज के लिए मुझे दिल्ली जाना पड़ा,जहाँ फिर मैं चाचा जी के घर ही रूका,उस समय तक चाची जी बिमारी की वजह से इस दुनिया को अलविदा कह गई थीं और उनके बेटे नौकरी की वजह से दूसरें शहरों में बस गए थे।।
अब चाचा जी के घर में मैं और चाचाजी ही रह रहें थे,पिताजी और माँ मुझे दिल्ली छोड़कर वापस आ गए थे क्योंकि मुझे कोई ऐसी समस्या नहीं थी कि हरदम मुझे बिस्तर में लेटना पड़े और घर के काम काजों के लिए चाचाजी ने कामवाली बाई तो लगवा ही रखी थी,माँ पिताजी बोले जब आँपरेशन का समय आ जाएगा तो मेरे पास वापस दिल्ली आ जाएंगें।।
क्योंकि चाचाजी ने अब ये सोचा था कि आँपरेशन की जगह अगर कोई हार्ट डोनर मिल जाता है तो और भी अच्छा रहेगा,हार्ट ही ट्रान्सप्लांट करवा लेते हैं,पिताजी के पास पैसों की कोई कमी भी नहीं थी इसलिए वो भी राजी हो गए।।
मुझे चाचाजी के यहाँ रहते हफ्ते ही बीते थे कि एक दिन सुबह से ही बारिश हो रही थी और मैं टेबल पर बैठकर कोई किताब पढ़ रहा था,तभी मैनें उसे देखा,वो बारिश में भीग रही थी लेकिन मुझसे नज़रे मिलती ही पहले शरमाई फिर गुस्सा करके चली गई,मुझे उसे देखकर हँसी आ गई।।
शाम हुई ,चाचाजी तब तक बाहर से नहीं लौटे थे और तभी दरवाज़े में किसी ने दस्तक दी,मैनें दरवाजा खोला___
और वो मेरे सामने खड़ी थी,मुझे देखकर उसने पूछा।।
अंकल घर पर नहीं हैं क्या?
मैनें कहा,नहीं!जी आपको कुछ काम।।
जी,कुछ नहीं,आज मौसम थोड़ा अच्छा था इसलिए पकौड़े बनाए थे,अंकल आ जाएं तो दे देना और इतना कहकर वो पकौड़ों का टिफिन थमाकर चली गई,मैं उसका नाम भी ना पूछ पाया।।
जब चाचाजी लौटे तो मैनें उन्हें पकौडों का टिफिन देते हुए कहा कि कोई लड़की आई थी और ये टिफिन देकर गई हैं।।
चाचाजी बोले__
संजीवनी होगी,लगता है लौट आई।।
मैनें उनसे पूछा,कहाँ गई थी जो लौट आई।।
वो अपने अनाथाश्रम के काम से हफ्ते भर के लिए बाहर गई थी,सामने वाले घर में किराए से रहती है,मकान मालिक रहते नहीं हैं,वो अपने बेटे के साथ बैंगलोर में रहते हैं,संजीवनी के रहने से उनके घर में दिया बत्ती होती रहती है इसलिए बेचारी को रख रखा है,अनाथ है बेचारी,अनाथाश्रम में पली बढ़ी और अब पढ़ लिख कर अनाथाश्रम का सहारा बनकर उन सबका सहयोग करती है।।
अंकल ने जो परिचय मुझे दिया ,संजीवनी के बारें में, उसके परिचय मात्र ने ही मेरे दिल में जगह बना ली,अब संजीवनी से मेरी मुलाकात हो ही जाती थी,मैं उससे बात करना चाहता था लेकिन वो मुझसे कतराती थी,कभी कभी ऐसा भी होता कि घर में मैं और वो होते थे लेकिन उसके होंठ ना खुलते, पता नहीं वो मुझसे बात करने से इतना क्यों डरती थी।।
बस एक ही महीने के अन्तराल में मैं उसे इतना चाहने लगा कि अब मैं उसके बिना अपनी जिन्दगी गुजारने के बारें में सोच ही नहीं सकता था,हलांकि वो उम्र में मुझसे बड़ी थी और इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था,बस उसकी सादगी ने मेरा मन मोह लिया था और किसी भी हाल में मैं उसे पाना चाहता था अपना बनाना चाहता था।।
फिर एक दिन मुझे अपनी बात कहने का मौका मिल ही गया,घर पर कोई नहीं था,वो घर आई और चाचाजी के बारें में पूछकर जाने लगी...
मैनें कहा....
ठहरोगी नहीं...
उसने कहा...
समय नहीं है...
मैनें कहा,मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ,
वो बोली,मुझे पता है...
मैनें कहा,तो तुम्हें अपने नाम का तो मतलब पता होगा,
वो बोली,हाँ! जो निर्जीव को सजीव कर दे,मतलब जीवनदान दे।।
मैनें कहा,तो मेरे प्यार को भी जीवन दान दे दो।।
समय आने पर दूँगी लेकिन अभी मुझे जाने दो,वो बोली।।
क्यों? संजीवनी! आखिर ऐसा क्या है? जो तुम्हें मेरे पास आने से रोकता है,मैनें उससे चींखकर पूछा।।
मैं नहीं बता सकतीं,वो बोली।।
तुम्हें बताना ही होगा,मैनें कहा।।
नहीं बताऊँगी ,कभी...भी..नहीं..बताऊँगी और इतना कहकर वो चली गई।।
और उस दिन के बाद वो मुझे नहीं दिखी,मैनें चाचाजी से पूछा...
तो वो बोले,शायद अपने अनाथाश्रम के काम से कहीं गई होगी,इसी तरह पन्द्रह दिन बीत गए और मेरे लिए डोनर मिल गया था,माँ और पिताजी भी आ गए थे लेकिन मुझे किसी और का भी इन्तज़ार था।।
हार्ट ट्रानसप्लांट हुआ,आपरेशन सफल रहा,जब मैं पूरी तरह से ठीक हो गया तो चाचाजी ने मुझे एक चिट्ठी दी जो कि संजीवनी ने मेरे लिए लिखी।।
उस चिट्ठी को पढ़ते ही मेरे होश़ उड़ गए,उसने मेरा प्यार कभी इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसे ब्लडकैंसर था और वो अपना आखिरी समय काट रही थी,जब उसे मेरे बारें में पता चला तो उसने मुझे अपना हार्ट डोनेट कर दिया और ये बात केवल चाचा जी को पता थी और बात मेरे दिल्ली आने से पहले ही चाचाजी ने संजीवनी से कर ली थी और इससे जो पैसे उसे मिले थे उसने अनाथाश्रम को दे दिए थे।।
तो ये थी संजीवनी जिसने मुझे जीवनदान दिया,सच में संजीवनी ने अपने नाम को सार्थक कर दिया और इतना कहते ही अतुल की आँखें भर आईं।।
समाप्त....
सरोज वर्मा....