मुझे एक सच्ची घटना याद आती है,ये बहुत समय पहले की बात है मैं तब आठ-नौ साल की रही हूँगी, दीवाली की छुट्टियों पर मैं अपने परिवार के साथ अपने होमटाँउन जा रही थी,ये सब मेरे सामने घटित हुआ था,इसलिए शायद मैं इस घटना को कभी भुला नहीं पाई....
तो दीवाली का त्यौहार था इसलिए ट्रेन में भीड़ होनी लाजिमी थी,लोकल ट्रेन थी और हमारा होमटाँउन नब्बे किलोमीटर ही था,इसलिए हम पैसेंजर ट्रेन से जा रहे थे,बड़ी मुश्किल से तो हम ट्रेन में चढ़ पाएं,समान सेट करने के बाद एक भले अंकल ने मेरी मम्मी के लिए अपनी सीट खाली कर दी,मम्मी मुझको लेकर उस सीट पर बैठ गई और पापा मेरे छोटे भाई को लेकर खड़े हो गये,सोचा सीट खाली होगी तो बैठ जाएंगे,तभी एक सेठ जी पापा से बोले....
अरे! बाबूजी! आप खड़े हैं...
मेरे पापा एस.बी.आई. में थे इसलिए उस टाँउन के व्यापारियों से उनकी अच्छी जान-पहचान थी,इसलिए उन सेठ जी ने एक सीट खाली करवाई और पापा को बैठने को कहा....
पापा बोले....
रहने दीजिए सेठ जी,बाद में सीट खाली होने पर बैठ जाऊँगा।।
फिर सेठ जी कुछ नहीं बोले और अपनी सीट पर आकर अपनी पत्नी के बगल में बैठ गए,फिर ट्रेन चल पड़ी और अगले स्टेशन पर ट्रेन रूकी तो सेठ जी स्टेशन पर उतर कर कुछ खरीदने चले गए,तब उनकी सीट खाली हो चुकी थी और उस स्टेशन से एक बहुत बूढ़े साधू बाबा ट्रेन में चढ़े,उन्होंने माथे पर तिलक लगा रखा था,गले में रूद्राक्ष की माला और गेरुए वस्त्र धारण कर रखे थें,हाथ में एक कमण्डल ले रखा था,वो आकर वहीं पर बैठ गए जहाँ पर पहले सेठ जी बैठे थे.....
जब सेठ जी ट्रेन पर वापस आएं तो उन्होंने उन साधू को अपने सीट पर बैठे देखा तो बौखला उठे ,उनसे ना कुछ पूछा और ना ही कुछ बस उनके गाल पर जोर थप्पड़ लगाते हुए बोले.....
दो कौड़ी का साधू और मेरी पत्नी के बगल में बैठेगा,तेरी इतनी हिम्मत...
साधू अपने साथ ऐसा व्यवहार देखकर एक पल को बिल्कुल मौन हो गए ,उन्होंने कुछ भी नहीं कहा लेकिन इस अपमान से उनकी आँखें भर आई थीं और फिर वो बूढ़ा साधू ट्रेन के फर्श पर जाकर बैठ गया....
सेठ जी का साधू के प्रति ऐसा व्यवहार देखकर किसी को भी अच्छा नहीं लगा,लेकिन सेठ जी से किसी ने कुछ नहीं कहा,क्योंकि दुष्ट इन्सान से कोई भी उलझना नहीं चाहता......
सेठ जी फिर पहले की तरह सामान्य हो गए जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं है और वें पहले की तरह फिर सबसे बातें करने लगें,कुछ ही देर में फिर से अगला स्टेशन आया और वें सेठ जी फिर से स्टेशन पर उतर गए,फिर ट्रेन ने हाँर्न दिया और ट्रेन चल पड़ी लेकिन उन सेठ जी को ट्रेन में चढ़ने में थोड़ी देर हो गई,ट्रेन की रफ्तार तेज़ नहीं थी इसलिए वें ट्रेन में चढ़ने का प्रयास करने लगें और तभी वें ट्रेन में चढ़ने ही वाले थे कि उनके हाथ से गेट के हैण्डिल की पकड़ कमजोर हो गई और वें फिसल कर चलती ट्रेन के नीचें जा पहुँचे,लोगों ने देखा तो फौरन ट्रेन की चेन खीची,बाद में पता चला कि उनकी दोनों टाँगें कट चुकी थी.....
किसी को कुछ समझ नहीं कि ऐसा क्यों हुआ? शायद ये बूढ़े साधू का आक्रोश ही होगा,बेवज़ह किसी का अपमान किया था सेठ जी ने इसलिए शायद ये ऊपरवाले का न्याय था।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा......