जब मैं पैदा हुआ था तो मुझे अपनी बाँहों में उठाने वाले पहले हाथ मेरे दादी के थे,मेरे पैदा होने पर शायद वें ही सबसे ज्यादा खुश थीं,दाई माँ को उन्होंने अपने गलें में पड़ी सोने की चेन उतारकर दे दी थीं और थाली बजाकर सारे मोहल्ले को ये खबर सुनाई कि मेरे घर पोता हुआ है और मेरे पिताजी से बोलीं कि जाओ अपने बगल वाले फौजी काका से कहो कि अपनी बंदूक से हवा में गोली चलाकर बच्चे के आने का स्वागत करें,
मेरी माँ बतातीं हैं कि घर में पन्द्रह दिनों तक दादी ने ढ़ोलक और मंजीरे के साथ मोहल्ले की औरतों से सोहर गवाएं थे , मेरे कुँआपूजन और नामकरण के दिन सारे गाँव का भोज कराया था,एक पैर पर खड़े होकर सारे चीजों की तैयारी की थी उन्होंने,मेरे दादा जी उनका उत्साह देखकर बोले थे....
भाग्यवान! तनिक थमकर,तनिक हौले से काम करो,खुद की तबियत बिगाड़कर मत बैठ जाना।।
दादा जी की बात सुनकर तब दादी बोलीं...
हठो जी! तुम क्या जानो ?जब एक औरत दादी बनती है तो उसे लगता है कि जैसे उसे दुनिया जहान की खुशियाँ मिल गईं,असल से सूद ज्यादा प्यारा होता है।।
वो मेरा भी तो पोता है,दादा जी बोलें।।
तब दादी बोलीं......
पोता तो तुम्हारा भी है लेकिन औरत और मर्द के एहसासों में जमीन आसमान का अन्तर होता है,औरत की भावनाओं को मर्द कभी नहीं समझ सकता,अगर ऐसा होता तो ना जाने कब की इस दुनिया की कायापलट हो जाती....
सही कहती हो तुम,जाओ अपनी खुशियाँ मनाओ,अब ना टोकूँगा तुम्हें,दादाजी बोलें.....
ठीक है तो मैं जाती हूँ और इतना कहकर मेरी दादी फिर घर के आँगन में ढ़ोलक ,मंजीरा बजाती हुई औरतों के बीच आ पहुँची....
उन औरतों में से एक बोलीं....
राजरानी जिज्जी! ऐसा ना चली,एकाध ठुमका तो लगावैं का पड़ी ,आखिर पोता हुआ है ..पोता।।
ऐसी का बात है तो बाँध दो हमारे पैरों में घुँघरू हम भी मटक ही लेते हैं,ऐसा नाचेगें....ऐसा नाचेगें....कि सब लुगाइयों की आँखें फटी की फटी रह जाएगी और इतना कहकर राजरानी अपने पाँव में घुँघरू बाँधकर जो नाची थी तो सब देखते ही रह गए.....
तो ऐसी थी राजरानी यानि की मेरी दादी,मेरा ज्यादातर बचपन गाँव में ही बीता था,मेरी दादी बहुत ही साधारण और दयालु महिला थीं ,मेरी माँ का तो वो इतना ध्यान रखतीं थीं कि जैसे वो उनकी बहु नहीं बेटी हो,मेरी मालिश से लेकर मुझे सम्भालने तक वो मेरे सारे काम करतीं थीं,वो प्यार से मुझे काजू बुलातीं थीं,मैं रात को उनके ही पास सोता था,उनकी कहानी और उनकी स्पेशल वाली थपकी से ही मुझे नींद आती थीं.....
जब मैं तीन साल का हुआ तो मेरे घर मेरी छोटी बहन ने जन्म लिया,इस बार भी दादी ने मेरे बहन के पैदा होने पर वैसा ही जलसा किया जैसे कि उन्होंने मेरे जन्म के समय किया था,वें बेटे और बेटी में कोई भी भेंद नहीं करतीं थीं,उन्होंने मेरी बहन को भी उसी स्कूल में पढ़वाया जिस स्कूल में मैं पढ़ा था,आँठवीं करने के बाद मैं तो शहर के हाँस्टल चला गया,उस समय मेरी बहन गाँव के ही स्कूल में पढ़ रही थीं......
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मेरी बहन ने स्कूल जाने से मना कर दिया वो बोली कि अब वो आगें नहीं पढ़ना चाहती,ये सुनकर सब दंग रह गए कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई जो रूपाली स्कूल जाने को तैयार नहीं है,
माँ पूछ पूछकर हार गई लेकिन रूपाली के मुँह से एक बोल भी ना निकला बस वो बोली कि मेरा मन नहीं है आगें की पढ़ाई करने का और ये बात दादी को कुछ हज़म नहीं हो रही थी,उन्हें लग रहा था कि जरूर कोई ना कोई बात हुई है जो रूपाली स्कूल जाने को तैयार नहीं है।।
और फिर उस रात दादी ने रूपाली से कहा....
बेटा! आज तू मेरे साथ ही सो जा,मेरे सिर में दर्द है थोड़ा दबा देगी तो आराम लग जाएगा।।
जी! दादी! और फिर इतना कहकर रूपाली दादी के साथ उनके कमरें में पहुँच गई और बोली....
दादी! आप लेट जाओ मैं आपका सिर दबा देती हूँ।।
मेरे सिर में कोई दर्द नहीं है,तू लेट जा मैं तुझे प्यारी सी थपकी देती हूँ जैसी कि बचपन में देती थी,दादी बोली।।
दादी के इतना कहते ही रूपाली चुपचाप बिस्तर पर लेट गई और दादी उसे थपकी देने लगी ,तभी बातों बातों में दादी ने रूपाली से पूछ लिया कि तू स्कूल क्यों नहीं जाना चाहती?
दादी की प्यार भरी थपकी से रूपाली के मान के भाव स्वतः ही बाहर आने लगें और आँखों में आँसू लिए वो दादी से बोली....
दादी माँ! जब मैं साइकिल से स्कूल जाती हूँ तो दो लड़के मुझे छेड़ते हैं,मैं पहले तो नहीं डरी लेकिन जब उन दोनों में से एक ने मेरा हाथ पकड़ना चाहा तो मैनें उसे थप्पड़ मार दिया,तब वो लड़का बोला....
तेरी इतनी हिम्मत ,अब देखना हम तुझसे कैसे बदला लेते हैं।।
मैं अपनी साइकिल पर घर तो आ गई लेकिन बहुत डर गई थी कि पता नहीं वो लड़के आगें क्या करेगें?
बस,इतनी सी बात से डर गई मेरी बच्ची!अभी आगें कल को ना जाने कौन कौन सी समस्याएं आएंगी तो तू ऐसे हिम्मत हार जाएगी,कल तू स्कूल जाएगी और तेरे पीछे मैं रहूँगी,मै भी देखती हूँ कि वो लड़के तेरा क्या बिगाड़ते हैं,दादी बोली।।
और फिर दूसरे दिन दादी डण्डा लेकर रूपाली के पीछे पीछे गई और ज्यों ही वो लड़के रूपाली के पास आएं तो दादी उन दोनों लड़को की माँओं को उनके पास ले आईं,अपनी माँओं को सामने देखकर वो लड़के झेंप गए और रूपाली से माँफी माँगने और आगें से किसी भी और लड़की को ना छेड़ने का वादा किया।।
तो ऐसी थी मेरी दादी और जब उनका अन्त समय आया तो हम सब उनसे मिलने गाँव गए,उस समय मेरी शादी हो चुकी थी लेकिन रूपाली शादी नहीं हुई थी क्योकिं रूपाली मुझसे तीन साल छोटी जो थी,उस समय मेरा बेटा तीन महीने का था,तभी मेरा बेटा रोने लगा तब मेरी दादी ने इशारे से कहा कि वो उसे उनकी गोद में दे दें, मैनें मेरे बेटे को दादी की गोद में दे दिया,दादी दिवार से टेक लगाकर बैठ गईं फिर उसे थपकी देने लगी और मेरा बेटा सो गया,उसे थपकी देते हुए उन्हें बड़ी खुशी हो रही थीं,तब मेरे बेटे को मेरी माँ ने अपनी गोंद में लिया और दादी को मैनें बिस्तर पर फिर से ठीक से लिटा दिया....
तब दादी ने मुझसे फरमाइश कि मैं उन्हें थपकी दूँ,मैनें दादी को थपकी देना शुरू किया और उस दिन दादी चैन से हमेशा के लिए सो गईं.....
ताउम्र उन्होंने हमें थपकी दी,हमारी समस्याओं को सुलझाया,हमारा साथ दिया,उनकी एक प्यारी भरी थपकी से ही हम अपनी समस्याएं उन्हें कह देते थे और आज भी मुझे कभी कभी उस प्यार भरी थपकी की जरूरत पड़ती है फिर बहुत याद आती है दादी की थपकी।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....