बात उस समय की है जब मैं बीस साल का था,मैं अपने नानिहाल गया था,नानी और नाना बस ही गाँव में रहते थे,मामा जी अपने परिवार के साथ बैंगलोर में रहते थे,मुझे नानी की बहुत याद आ रही थी इसलिए मैं ने माँ से कहा तो माँ बोली कि तुम जाकर नानी से मिल आओ।।
मैं नानी के घर पहुँचा और एक हफ्ते तक उन दोनों के साथ रहा,फिर लौटने का समय आ गया,तो गाँव से मैनें ताँगा पकड़ा और रेलवें स्टेशन की ओर चल दिया,गाँव से रेलवें स्टेशन कमसे कम पाँच किलोमीटर था,रास्तें में थोड़ा सुनसान सा रास्ता पड़ता था,सड़क के दोनों ओर लम्बे लम्बे पेड़ भी पड़ते थे,नाना नानी की उम्र ज्यादा हो चुकी थी इसलिए नाना मुझे स्टेशन तक छोड़ने नहीं आ सकते थे,फिर मेरी ट्रेन एक बजे की थी,इतनी रात को मैनें अकेला जाना ही ठीक समझा,बगल में ताँगें वालें मिर्जा जी रहते थे ,उन्हीं से नाना जी ने रात को स्टेशन छोड़कर जाने को कहा था ,उनके साथ मैं अकेला ही ताँगें में बैठकर स्टेशन की ओर चल पड़ा,
रास्तें में कुछ अन्धेरा सा था,मैं ताँगें की पीछे की सीट की ओर बैठा था तभी मुझे लगा कि लाल साड़ी में घूँघट ओढ़े कोई दुल्हन चली आ रही है,मैनें ताँगें वाले से ताँगा रोकने को कहा तो वो बोला....
बेटा! कोई छलावा होगा,रात को बारह बजे के बाद यहाँ ये सब होता रहता है...
फिर वें मुझे स्टेशन में छोड़कर लौट गए...
मैं प्लेटफार्म पर आया तो बिल्कुल अँधेरे में फर्श एक बूढ़ी सी औरत शिथिल सी पड़ी थी,मैं उसके पास जाने लगा तभी पीछे से मुझे एक कुली ने पुकारा तो मैं पीछे मुड़ा तो वो बोला.....
भाई! कहाँ जा रहे हो ?वहाँ तो अँधेरा है,वहाँ गहरा गढ्ढा है।।
मैं फिर से उस ओर मुड़ा तो वहाँ सचमुच गहरा अँधेरा था और वो औरत वहाँ से गायब थी,मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैं प्लेटफार्म पर आकर अपनी ट्रेन का इन्तजार करने लगा....
कुछ देर में ट्रेन आ गई और मैं उसमें बैठ गया,अगले स्टेशन पर मेरी सामने वाली सीट पर एक औरत आकर बैठ गई,उसने कम्बल से अपनेआप को चारों ओर से छुपा रखा था केवल उसकी आँखें ही दिख रहीं थीं,ऐसी भयानक गर्मी में कम्बल ओढ़े थी वो,मुझे बहुत अजीब सा लगा,रात होने की वज़ह से सब सो रहे थे इसलिए उस औरत को केवल मैं ही देख पा रहा था....
फिर कुछ देर बाद मेरी आँखें झपने लगी,लेकिन वो औरत मुझे ही घूरे जा रही थी,फिर मैं सो गया,करीब रात को ढ़ाई बजे के लगभग मुझे बहुत ही तेज बदबू आई और उस बदबू ने मुझे जगा दिया,मेरे जागने के बाद वो बदबू अचानक से गायब भी हो गई.....
वो औरत अब भी मुझे घूर रही थी,मैं फिर सो गया लेकिन कुछ देर बाद मुझे ऐसा लगा कि किसी ने मुझे मेरे बाल पकड़कर जगाया हो,मैं जाग उठा तो देखा कि वो औरत अपनी सीट पर नहीं है,मैं उठा और देखा कि वो दरवाजे के पास खड़ी है,मैनें सोचा ये यहाँ क्या कर रही है?
लेकिन तभी उसने अपनी गरदन दरवाजे के बाहर की ओर निकाली,फिर जोर से दरवाजा बंद कर दिया,उसकी गरदन कटकर बाहर गिर गई और उसका धड़ ट्रेन की फर्श पर पड़ा तड़प रहा था,तभी मेरी आँख खुल गई,वो शायद एक सपना था और उस सपने नें मुझे जगा दिया था,मैं जागा तो देखता हूँ कि वो औरत सच में अपनी सीट पर नहीं है,मैनें उठकर देखा तो वो गेट पर खड़ी थी और जैसे ही उसकी नज़रें मुझ से मिलीं और उसने चलती ट्रेन से बाहर छलाँग लगा दी,ये देखकर मेरा मन दहल गया....
मैं चुपचाप अपनी सीट पर आ कर लेट गया और फिर सो ना सका, भयानक रात और वो मुझे अब भी याद आती है तो मैं सिहर उठता हूँ।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा....