मकर संक्रान्ति हिन्दू पंचांग में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य का उत्तरायण मनाता है। इस दिन सूर्य उत्तरी दिशा की ओर बढ़ता है, जिससे दिन की लम्बाई बढ़ती है और सर्दी की छुट्टियों का समापन होता है।
मकर संक्रान्ति को आमतौर पर 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है और इसे भारत और नेपाल के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि मकर संक्रान्ति, पोंगल, उत्तरायण, मघु संक्रान्ति, लोहड़ी आदि।इस दिन लोग सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और गंगा नदी में नहाने का आदान-प्रदान करते हैं। महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों पर लाखों लोग इस दिन स्नान के लिए आते हैं।
एक और रूप में, मकर संक्रान्ति को उत्साह और मिलन-संबंधित गतिविधियों का भी प्रतीक माना जाता है। लोग परंपरागत रूप से खेतों में बोनई का काम शुरू करते हैं, जिससे नए फसलों की शुरुआत होती है।
मकर संक्रान्ति पर्व का महत्व
मकर संक्रान्ति का महत्व हिन्दू धर्म में विशेष रूप से माना जाता है और इसे सूर्य भगवान की पूजा अर्चना के साथ मनाया जाता है। यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव है जो समृद्धि, खुशी और की प्राप्ति का संकेत होता है।मान्यता है कि इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी, चावल आदि का दान करना लाभकारी माना जाता है। इस दिन इन चीजों को दान करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। मकर संक्रांति के दिन पोंगल, उत्तरायण, माघ बिहु जैसे कई नामों से जाना जाता है।
कब हैं मकर संक्रांति पर्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, ग्रहों के राजा सूर्य 15 जनवरी को सुबह 2 बजकर 45 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे। ऐसे में मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा।15 जनवरी को पुण्य काल सुबह 7 बजकर 15 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही महा पुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजे तक है। इसके साथ मकर संक्रांति का क्षण दोपहर 02 बजकर 55 मिनट तक है।
मकर संक्रान्ति पर्व पर खिचड़ी का महत्व
मकर संक्रांति पर तिल, गुड़, रेवड़ी आदि की तरह ही खिचड़ी का भी खास महत्व है।इसलिए तो इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल खिचड़ी कोई साधारण भोजन नहीं है। बल्कि इसका संबंध ग्रहों से होता है।मान्यता है कि दाल, चावल, घी, हल्दी, मसाले और हरी सब्जियों से मिश्रण से बनने वाले खिचड़ी का संबंध नवग्रहों से है। इसलिए खिचड़ी के सेवन से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रान्ति पर्व मनाने का कारण
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। जहां पर वह पूरे एक माह तक रहते हैं। बता दें कि मकर के साथ-साथ कुंभ राशि के स्वामी शनिदेव है। ऐसे में मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव से मिलते हैं।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, पृथ्वी लोक असुरों के आतंक से परेशान हो गया था। ऐसे में भगवान विष्णु ने सभी असुरों का संहार करके उनके सिरों को काटकर मंदरा नामक पर्वत में गाड़ दिया था। इसी के कारण मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।