अजय की बेटी की शादी में जाने के लिए जब सब तैयार हो रहे थे तो मैंने इस काम के लिए ले जाने वाले एक लिफाफे को निकाला और सोचा इसमें कितनी रकम डालूं। आम तौर पर मेरी पत्नी इस जिम्मेदारी को निभाती थी और इस काम के लिए वह एक डायरी में लिख कर रखती थी कि हमारे यहाँ की शादी में कौन क्या क्या देकर गया। पर यहाँ बात दूसरी थी।अजय मेरे बचपन का दोस्त था जो कई साल पहले बिहार चला गया था और वहां पर एक राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में उसने काफी काम किया था जिसके बारे में हम सब अख़बार में पढ़ते थे और खुश होते थे। पिछले साल ही वह एक मंत्री के रूप में हमारे शहर में वापस आया था । शायद उसकी पार्टी ने उसे उसके काम का इनाम दिया था।
आम तौरपर हम लोग इस लिफाफे में एक या दो हजार रूपये डालते थे पर अजय हर तरह से एक ख़ास आदमी था । एक तो वह मेरा बचपन का लंगोटिया यार था और फिर अब इतना बड़ा आदमी बन गया था। ये सब सोच कर मैंने पांच हजार रुपये उसमें डाल दिए और साथ में पत्नी से पूंछा ,'' शादी के कार्ड में तो साफ़ साफ़ लिखा है कि कोई
उपहार/लिफाफा नहीं लाना है?" इस पर वह बोली ,"अरे इन बड़े लोगों की बड़ी बातें , हाथी के दांत खाने के और ,दिखाने के और। यही तो मौका होता है इस लोगों के पास अपने जानने वाले,कर्मचारियों,चमचो और अपना काम कराने की जुगाड़ में लगे लोगों की जेब से मोटी रकम निकलने का। इस तरह के किस्से कितने ही सुनने को मिलते हैं। "
वहां पहुंचकर अजय बड़ी आत्मीयता से मुझसे गले मिला और मेहमानो से अपना विशेष मित्र कह कर परिचय कराया। मैं कुछ असहज हो रहा था क्योंकि अधिकतर मेहमानों को मेने टी वी या अखबार में ही देखा था और उम्मीद न थी कि उनसे इतना नजदीकी सामना होगा।
पूरा आयोजन एक तरफ सादगी से रचा हुआ तो दूसरी तरफ गरिमापूर्ण था। कहीं भी मुझे वह स्टाल /टेबल नहीं दिखी जो अक्सर लोगों के लाये हुए उपहार को रखने के लिए शादियों में लगाया जाता है। न ही आने वाले किसी भी व्यक्ति के हाथों में कोई उपहार दिखाई दे रहा था।
खाने के बाद लोगों के जाने का सिलसिला शुरू हुआ। कुछ लोगों ने चलते समय जेब से लिफाफा निकल कर देने की कोशिश की पर अजय ने बड़ी विनम्रता से अस्वीकार कर दिया।ये सब देख कर मुझमें हिम्मत नहीं हुई कि जाते समय मैं भी अपनी जेब से लिफाफा निकालूँ और अजय कि झिड़की सुनूं। मैंने कनखियों से अपनी पत्नी कि तरफ देखा जिसकी आशंकाएं गलत साबित हो रही थी । उसके चहरे पर भी मूक सहमति का भाव था ।
बाहर आकर मैं सोच रहा था कि इस देश में अजय जैसे और कुछ नेता हो जाएं तो इसका कल्याण हो जाय ।