!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस धराधाम पर विधाता ने अद्भुत मैथुनी सृष्टि की है | नर
एवं नारी का जोड़ा उत्पन्न करके दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया | बिना एक दूसरे के सहयोग के सृष्टि का सम्पादन नहीं हो सकता | नर एवं नारी की महत्ता को दर्शाते हुए भगवान शिव ने भी अर्द्धनारीशवर का स्वरूप धारण किया है | आधा नर और आधी नारी का स्वरूप धारण करके शिवजी ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि प्रत्येक पुरुष में ही नारी एवं प्रत्येक नारी में भी पुरुष होता है | वेदव्यास भगवान ने शिवमहापुराण में लिखा है ------ ‘शंकर: पुरुषा: सर्वे स्त्रिय: सर्वा महेश्वरी " | अर्थात्–समस्त पुरुष भगवान सदाशिव के अंश और समस्त स्त्रियां भगवती शिवा की अंशभूता हैं, उन्हीं भगवान अर्धनारीश्वर से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् व्याप्त है | शक्ति के बिना शिव ‘शव’ हैं शिव और शक्ति एक-दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य और उसका प्रकाश, अग्नि और उसका ताप तथा दूध और उसकी सफेदी | शिव में ‘इ’कार ही शक्ति है | ‘शिव’ से ‘इ’कार निकल जाने पर ‘शव’ ही रह जाता है | शास्त्रों के अनुसार बिना शक्ति की सहायता के शिव का साक्षात्कार नहीं होता | अत: आदिकाल से ही शिव-शक्ति की संयुक्त उपासना होती रही है | भगवान शिव का अर्धनारीश्वररूप जगत्पिता और जगन्माता के सम्बन्ध को दर्शाता है | सत्-चित् और आनन्द–ईश्वर के तीन रूप हैं | इनमें सत्स्वरूप उनका मातृस्वरूप है, चित्स्वरूप उनका पितृस्वरूप है और उनके आनन्दस्वरूप के दर्शन अर्धनारीश्वररूप में ही होते हैं, जब शिव और शक्ति दोनों मिलकर पूर्णतया एक हो जाते हैं | सृष्टि के समय परम पुरुष अपने ही वामांग से प्रकृति को निकालकर उसमें समस्त सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं | शिव गृहस्थों के ईश्वर और विवाहित दम्पत्तियों के उपास्य देव हैं क्योंकि अर्धनारीश्वर शिव स्त्री और पुरुष की पूर्ण एकता की अभिव्यक्ति हैं | संसार की सारी विषमताओं से घिरे रहने पर भी अपने मन को शान्त व स्थिर बनाये रखना ही योग है | भगवान शिव अपने पारिवारिक सम्बन्धों से हमें इसी योग की शिक्षा देते हैं | अपनी धर्मपत्नी के साथ पूर्ण एकात्मकता अनुभव कर, उसकी आत्मा में आत्मा मिलाकर ही मनुष्य आनन्दरूप शिव को प्राप्त कर सकता है | परंतु आज
समाज में बड़ी विषमतायें देखने को मिल रही हैं | जहाँ पुरुषों ने नारी को अपनी शक्ति मानना स्वीकार नहीं कर पा रहा है , वहीं नारी भी पुरुष को अपना आधार , आश्रय न मानकर स्वतंत्र एवं स्वछंद रहने पर आमादा है | सामाजिक विषमताओं एवं दिनों दिन बढ रहे अनाचार - कदाचार का एक कारण यह भी है कि नर एवं नारी दोनों ही अपनी अपनी मर्यादाओं का अतिक्रमण करके समाज में अपनी झूठी शान के लिए जी रहे हैं | अधिकतर परिवारों में नर - नारी के आपसी सामंजस्य का अभाव देखने को मिल रहा है | ऐसा प्रतीत होता है कि उनका मिलन मात्र सन्तानोत्पत्ति के लिए ही हुआ है , शेष आपसी सामंजस्य , प्रेम आदि का भाव लुप्त होता जा रहा है | इसका एक ही कारण है कि दोनों ही स्वयं को श्रेष्ठ मानते हुए एक दूसरे का सम्मान नहीं करना चाह रहे हैं |भगवान शिव की तरह ही प्रत्येक मानव को यह सोंचना होगा कि बिना शक्ति के शिव भी शव हो जाते हैं ! वहीं प्रत्येक नारी को यह विचार करना चाहिए कि शिव के त्याग करने पर सती को जलना ही पड़ता है | अत: सामंजस्य बनाये रखें |