नई दिल्ली में बन रहे नए संसद भवन यानी सेंट्रल विस्टा की छत पर बने राष्ट्रीय प्रतीक यानी अशोक की लाट पर बने सिंह शीर्ष के हिंसक होने और सारनाथ में मौजूद असली प्रतीक वाले शेकर के सौम्य होने को लेकर छिड़ी सियासी जंग इन दिनों खूब चर्चा में है। इसको लेकर अब सारनाथ में असली कृति को लेकर भी लोग अब सारनाथ में जाकर संग्रहालय में मौजूद अशोक की लाट को खूब करीब से निहार कर शेर की प्रवृत्ति को परख रहे हैं। इसी कड़ी में बुधवार को भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी भी सारनाथ के अशोक की लाट को देखने पहुंचीं और करीब से निहारा। दरअसल सेंट्रल विस्टा यानी कि नई दिल्ली में बन रहा नया संसद भवन को काफी भव्य बनाने के क्रम में उसकी छत पर भारी भरकम राष्ट्रीय प्रतीक यानी सारनाथ में मौजूद अशोक की लाट यानि सिंह शीर्ष को स्थापित किया गया है। सिंह शीर्ष का पीएम नरेन्द्र मोदी ने दो दिन पूर्व अनावरण किया तो लोगों के बीच यह प्रतीक चर्चा में आ गया। दरअसल यह मूल रचना से कहीं अधिक यानी कई गुना भारी भरकम होने की वजह से लोगों के बीच वायरल होने लगा। विपक्षी दलों ही नहीं सोशल मीडिया पर भी इस प्रकरण को लेकर सवाल उठने लगे कि आखिर यह शेर हिंसक क्यों नजर आ रहा है। जबकि सारनाथ में मौजूद असली शेर हिंसक न हो कर काफी सौम्य है।
दरअसल नए संसद भवन में बने इस शीर्ष को लेकर विपक्षी दल सम्राट अशोक की लाट के मोहक और राजसी स्वरूप वाले शेरों की जगह उग्र शेरों का चित्रण कर राष्ट्रीय प्रतीक के स्वरूप को बदलने का आरोप सत्ता पक्ष पर लगाया है। इन आरोपों पर भारतीय जनता पाटी की ओर से पलटवार कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाने की एक और विपक्ष की साजिश करार दिया है। इसके बाद से ही राष्ट्रीय प्रतीक के हिंसक और सौम्य छवि को लेकर विवाद की स्थिति है और सोशल मीडिया से लेकर सियासी लोगों के बीच शेर की छवि चर्चा में बनी हुई है।कहना न होगा कि विरोध की इन दलीलों में कोई दम नहीं है। देश को एक नए संसद भवन और मंत्रियों एवं प्रशासनिक अमले को काम करने और रहने के लिए नई इमारतों की जरूरत है। लगभग एक सदी पहले सेंट्रल विस्टा की ये इमारतें उस दौर में बनी थीं जब एयर कंडीशनर और टेलीफोन को भी लक्जरी समझा जाता था। डिजिटल दुनिया के बारे में तो तब किसी ने सुना भी नहीं था। जाहिर है, आधुनिक सुविधाओं और टेक्नोलाजी के लिहाज से ये इमारतें अनुपयोगी साबित हो रही हैं। दूसरी बात ये है कि सेंट्रल विस्टा में जगह नहीं होने के कारण कई मंत्रलय दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से काम कर रहे हैं और सालाना लगभग एक हजार करोड़ रुपये का किराया चुका रहे हैं।
एक जाहिर सी बात है की छोटी-छोटी बातों को तूल देने का कोई मतलब नहीं है। राजनीतिक दल हर जगह विवाद करते हैं। कभी शेर पर सभी सेंट्रल विस्ता की जरूरत ही क्या है? इन सब विवादों से हमें कुछ हासिल नहीं होने वाला है । देश के आधुनिकीकरण की रफ्तार में अगर संसद का भी आधुनिकीकरण हो रहा है तो गलत बात क्या है? हमें देश के मामलों में ध्यान से बोलना चाहिए ताकि कोई भी हमारे देश की छवि पर आंच न आने पाए।
(©ज्योति)