प्रेम क्या है?
अनगिनत बार उलझी मैं
इस प्रश्न में
पर उत्तर मिला मुझे मेरे अंतर्मन में
प्रेम है त्याग
प्रेम है समर्पण
प्रेम है विश्वास
प्रेम है श्रद्धा
प्रेम है पूजा
प्रेम है वह एहसास
जहां नहीं है कोई चाह
जहां है अटूट विश्वास।
तुम्हारे मन की बात
कोई बिन कहे समझ ले जब
तुम्हारी आंखों की भाषा
कोई देख कर पढ़ ले जब
कोई जब तुम्हारे दिल में रहने लगे
बिन कहे सब कुछ कहने लगे
तो समझ लेना तुम
तुम प्रेम में डूबे उतर आए हो।
पर कहां है यह प्रेम?
तृष्णाओ के भंवर जाल में
उलझा यह जग सारा
हर कोई तन का प्यासा
मन कहां देखे तुम्हारा ।
यदि ढूंढना चाहते हो तुम प्रेम को
तो मीरा की तरह कृष्णा को आंखों में बसाओ,
मदर टेरेसा बन दुनिया में प्रेम लुटाओ।
इस प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं
इस प्रेम से पातें परमार्थ यही
इस प्रेम में जो डूबा है
वह डूब कर भी पार पा गया है।
तथागत की मुक्ति यही है,
मीरा की भक्ति यही है,
ध्रुव का संकल्प यही है,
राम की शक्ति यही है।
इस प्रेम ने धरा को स्वर्ग बनाया है।
इस प्रेम ने मनुष्य का परिचय
नये युग से कराया है।
यह प्रेम आनंद है
यह प्रेम अनंत है
युग युग से सीच रहा यह धरा को
यह प्रेम भक्ति है
यह प्रेम शक्ति है
यह प्रेम ओजस है
यह प्रेम अनादि है।
इस प्रेम को पाने पर
कुछ पाने को शेष रहता नहीं।
(©ज्योति)