शहर रौशन है तो गांवों के लोगो ने क्या जुर्म कर दिया!
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं हैं- रोटी,क पड़ा,मकान, हवा,पानी,ओैर रौशनी इनमें से एक भी न मिले तो इंसान का जीना दूबर हो जाता है. अगर यह बात देश में आने-जाने वाली हर सरकार पिछले तेहत्तर चौहत्तर सालों में भी समझ जाती तो शायद आज हमारे देश के गांवों की यह दुर्गती नहीं होती. छत्तीसगढ़ की बात करें तो हमें मध्यप्रदेश से मुक्ति मिलने के बीस साल बाद प्राय: सभी शहर इन मूलभूत सुविधाओं को पाने में बहुत हद तक कामयाब हो गये हैं किन्तु अभी भी बहुत कुछ बाकी है. कई गांव ऐसे हैं जहां पानी के लिये आज भी लोगों को दूर दूर तक भटकना पड़ता है. भरपूर शिक्षा व्यवस्था का अभाव है. कई गांव आज भी बिजली की सुविधा से वंचित है.कइयों ने बिजली क्या होती है इसका अनुभव तक नहीं किया है. ऐसे में अगर इन गांवों में रहने वालों को पहली बार रौशनी का आभास हो जाये तो उनकी खुशी कितनी होगी इसका अनुमान तो शायद राज्य बनने के करीब बीस साल बाद यहां की सरकारों ने नहीं लगाया होगा लेकिन अब राज्य अक्षय उर्जा कार्यक्र म के तहत छत्तीसगढ के वनक्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में बसे गांवों में भूपेश बघेल सरकार ने सौर उर्जा पहुंचाने का दावा किया गया है. अक्षय उर्जा कार्यक्रम कर्ताओं का दावा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशन में छत्तीसगढ़ में राज्य के ऐसे इलाके जहां पर विद्युत लाइन पहुंचाने में दिक्कत आ रही है वहां सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली पहुंचाने का कार्य किया है. सौर उर्जा से इन क्षेत्रों के लोगों के जीवन में तरक्की की राह खुल रही है.सौर उर्जा से इन इलाकों में किसानों को सिंचाई सुविधा मिल रही है. वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा हुआ है. इस कार्यक्रम के लिये अक्षय उर्जा और मुख्यमंत्री बघेल दोनों ही बधाई के पात्र हैं लेकिन सवाल यह भी उठता है कि राज्य बनने के बाद से अब तक कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें छत्तीसगढ़ में कायम रही तब उस समय के लोगों को क्या यह पता नहीं था कि छत्तीसगढ़ में ऐसे गांव हैं जहां बिजली नहीं पहुंची है और लोग अंधेरे में जीवन यापन कर रहे हैं तब ऐसे प्रयास क्यों नहीं किये गये?बहरहाल देर आये दुरूस्त आये. बघेल माटी पुत्र हैं वे इस अंचल के दर्द को अच्छी तरह समझते हैं.जिन गांवों में बिजली नहीं हैं वहां अक्षय उर्जा के कार्यक्रम को और तेजी से शुरू किये जाने की जरूरत है. अगर हम एक ही राज्य में रहकर गांव और शहर के लोगों को अलग अलग देखे तो यह गांव के लोगों के साथ सौतेलापन तो होगा ही साथ ही अन्याय भी माना जायेगा. गांव के लोगों को भी उतनी ही सुविधा दी जानी चाहिये जितनी शहर के लोगो को मिलती है.ऐसा प्रयास होना चाहिये कि जो जहां है वहां सारी सुविधाएं दी जो शहर के लोगो को मिलती है. इस कड़ी में पेय जल,शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य शहरी सुविधाओं का भी विस्तार जरूरी है. सरकार जो भी रही है वह अच्छी तरह से जानती है कि छत्तीसगढ़ के गांवों में रहने वालों को गर्मी के दिनों में किस तरह पीने के पानी के लिये भटकना पड़ता है, किस तरह अच्छी स्वास्थ्य सुविधा पाने के लिये शहर में आकर ठोकरे खानी पड़ती है . एम्बुलेंस जैसी सुविधा तो कई गांव के लोगों ने कभी भोगी भी नहीं है. संचार साधनों का भी अभाव है. बच्चों को शिक्षा के लिये किस तरह नदी नाले पार जंगलों से भटकते हुए दूर दराज क्षेत्रों के स्कूल में जाकर पडऩा पड़ता है जहां कहीं शिक्षक नहीं है तो कहीं जर्जर भवन है. हम अगर शहरी तौर पर कितनी भी प्रगति के आंकड़े दिखाये लेकिन जब हमारे गांव की आखों में आसू और दिल में आक्रोश रहेगा तब तक हमारी प्रगति मायने नहीं रखती. शहर के साथ-साथ गांवों का विकास भी एक चुनौती है. हर गांव को अगर शहर की तरह सुन्दर सड़कों से सुसज्जित कर दिया जाये और हर उन ग्रामीण घरों में गाय-भैस, मुर्गी पालन, मछली पालन जैसे कार्यक्रमों की सुविधा हर गांव को दी जाये तो हमारा छत्तीसगढ़ भी एक आधुनिक राज्य से कम नहीं होगा.अक्षय उर्जा कार्यक्रम के कर्ताधताओं ने उपलब्धि का ऐलान किया है, इसके अलावा भी ऐसे कई कार्यक्रमों के जंतु सफेद हाथी की तरह पल रहे हंै उन्हें भी अपने क्षेत्रों में विकास कार्यो की उपलब्धि का दावा पेश करना चाहिये.अक्षय उर्जा कार्यक्रम का दावा है कि वह कबीरधाम जिले में बोडला एवं पंडरिया विकासखण्डो सहित अन्य बैगा बाहुल गांवों में कार्य योजना के तहत सौर ऊर्जा के पावर प्लांट लगा रहे हैं. योजना के तहत क्षेत्र में 51 सोलर पावर प्लांट के माध्यम से 47 स्थलों पर विद्युतीकरण का कार्य किया गया है यहां करीब 600 यूनिट बिजली का प्रतिदिन उत्पादन हो रहा है, जिससे यहां के जंगलों एवं दुर्गम पहाडिय़ों में स्थित उप स्वास्थ्य एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रां में बिजली की आपूर्ति की जा रही है। इसके अलावा वहां निवासरत बैगा आदिवासी परिवारों को सोलर होम लाइट प्रदान कर उनके घरों को रौशन करने का कार्य क्रेड़ा द्वारा किया गया है.जिला चिकित्सालय में भी बिजली बचाने के उद्देश्य से 50 किलो वाट क्षमता के आन ग्रिड सोलर पावर प्लांट संयंत्र के स्थापना का कार्य क्रेडा द्वारा कराया गया है। इस प्लांट संयंत्र से प्रति दिन लगभग 150 से 200 यूनिट बिजली सौर ऊर्जा से उत्पादन किया जा रहा हैं। जिसे सीधे विद्युत वितरण कंपनी द्वारा प्रदायित विद्युत सप्लाई से सिंक्रोनाइज कर प्रति दिन जिला अस्पताल में विद्युत खपत को कम किये जाने का कार्य किया जा रहा है। ऑन ग्रिड संयंत्र स्थापना से लेकर अब तक सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापना से स्वास्थ्य केंद्रो को विद्युत व्यवस्था के साथ साथ वित्तीय लाभ भी हो रहा है. कुछ दिन पूर्व ही यह खबर आई थी कि वनोपज के मामले में राज्य ने पूरे देश में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है उस कड़ी में यह प्रयास भी सराहनीय है किन्तु अभी राज्य के दुर्गम क्षेत्रों में और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है इसके लिये राज्य सरकार को अन्य निष्क्रिय पड़ी एजेंसियों को भी सक्रिय करना होगा तथा एक लक्ष्य तय करना होगा कि लक्ष्य पूरा करने की रिपोर्ट तय समय सीमा पर मिलनी चाहिये. छत्तीसगढ़ को उसपर लगे पिछड़ेपन के दाग को खूब लगन से काम कर मिटाना ही होगा. आज भी कई राष्ट्रीय टीवी चेनलों के मानचित्र पर छत्तीसगढ़ के मौसम का हाल तक नहीं दिखाया जाता जबकि झारखंड जैसे हमसे पिछड़े राज्य चैनलों के मानचित्र पर हैं.