वन नेशन वन इलेक्शन
की लहर फिर चली
इलेक्शन कमीशन के
मुताबिक, देश में सन 1952 में जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे, तब 10.52 करोड़ रुपए खर्च
हुए थे, उसके बाद 1957 और 1962 के चुनाव में सरकार
का खर्च कम हुआ था: लेकिन 1967 के चुनाव से हर साल केंद्र सरकार का
खर्च बढ़ता ही गया: फिलहाल 2014 के लोकसभा चुनाव तक के ही खर्च का
ब्यौरा है: 2014 में 3,870
करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए
थे:प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनाव के दौरान व चुनाव जीतने के बाद से लगातार यह
कह रहे हैं कि देश में एक चुनाव की जरूरत
है: सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा हो सकता है? यह सवाल उस समय से सभी की जुबान पर था और समय के साथ इस बात पर
किसी ने न ज्यादा ध्यान दिया और न ही उसपर कोई ज्यादा चर्चा हुई लेकिन नरेन्द्र
मोदी ने इस बात पर पुन: बल देकर इस महत्वपूर्ण मु्द्वे को एक बार फिर बहस का विषय
बना दिया है:इस बारे में मोदी का यह तर्क
सही लगता है कि लोकसभा- विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने से खर्च कम होगा तथा विकास
कार्य भी नहीं रूकेंगे: जबकि विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है उनका कहना है कि
इससे वोटर स्थानीय मुददो के बजाय राष्ट्रीय मुद्दो पर वोट देगा, इसका फायदा एक पार्टी को ही होगा: ऐसे में मोदी और सरकार के समक्ष
चुनौती यह है कि लोकसभा और विधानसंभा का कार्यकाल पांच वर्ष तय है:लोकसभा को राष्ट्रपति
ही भंग कर सकते हें जबकि विधानसभा को भंग करने के लिये दोनों सदनों की मंजूरी
जरूरी है:संविधान दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने वन नेशन वन इलेक्शन की
बात को पुन: उठाते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि , 'आज एक देश-एक चुनाव
सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं रहा ये भारत की जरूरत है इसलिए इस मसले पर गहन
विचार-विमर्श और अध्ययन किया जाना चाहिए:'वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब हुआ कि
पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों: स्वतंत्रता के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और
विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग
कर दी गईं उसके बाद 1970
में लोकसभा भी भंग कर दी गई: इस वजह
से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई: अब मुसीबत यह आन पडी कि सरकार का अधिकांश
समय और पैसा दोनो चुनाव कराते कराते ही बीतने लगा:वन नेशन-वन इलेक्शन पर
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर देश में एक साथ ही
लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते
हैं इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी
असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सिफारिश की गई थी कि देश में
एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए: चुनाव में भागीदार उम्मीदवार अपने प्रचार का खर्च खुद उठाता है, लेकिन चुनाव कराने
का पूरा खर्च सरकारी ही होता है: अक्टूबर 1979 में लॉ कमीशन ने चुनावी खर्च को लेकर
गाइडलाइन जारी की थीं इस गाइडलाइन के मुताबिक, लोकसभा चुनाव का सारा खर्च केंद्र
सरकार उठाती है इसी तरह विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकार के जिम्मे है, अगर लोकसभा चुनाव के साथ-साथ किसी राज्य में विधानसभा चुनाव भी
होते हैं, तो उसका आधा-आधा खर्च केंद्र और राज्य सरकार उठाती है:30 अगस्त 2018 को लॉ कमीशन ने एक
और रिपोर्ट पेश की थी, इस रिपोर्ट में कमीशन ने 2014 के लोकसभा चुनाव के
आसपास हुए विधानसभा चुनाव के खर्च की जानकारी दी थी, उस रिपोर्ट में कमीशन ने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली
में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में कितना खर्च हुआ, इसकी तुलना की थी
और पाया था कि इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के वक्त जितना सरकारी खर्च हुआ, लगभग उतना ही
विधानसभा चुनाव में भी हुआ था:लॉ कमीशन और नीति आयोग की रिपोर्ट में यही कहा गया
है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए जाते हैं, तो इससे खर्चा काफी
कम किया जा सकता है: हालांकि, साथ-साथ चुनाव कराने से खर्च कितना
बचेगा, इसका आंकड़ा रिपोर्ट में नहीं मिला लेकिन, साथ में चुनाव
कराने से थोड़ा खर्च जरूर बढ़ेगा, लेकिन इतना नहीं जितना अलग-अलग चुनाव
कराने पर बढ़ता है: 2019
के लोकसभा चुनाव से पहले अगस्त 2018 में लॉ कमीशन की एक
रिपोर्ट आई थी, इसमें कहा था कि अगर 2019 में लोकसभा और
विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं, तो उससे 4,500 करोड़ रुपए का खर्च
बढ़ेगा ये खर्चा इसलिए क्योंकि ईवीएम ज्यादा लगानी पड़ेंगी इसमें ये भी कहा गया था
कि साथ चुनाव कराने का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो 2024 में 1,751 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ता यानी, धीरे-धीरे ये
अतिरिक्त खर्च भी कम हो जाता: साथ-साथ चुनाव कराने के साथ इस बात पर भी विचार जरूरी है कि एक बार चुनाव हो जाने के बाद
उप चुनाव भी न हो: इसके लिये एक संशोधन यह किया जा सकता है कि किसी की मौत से खाली
हुए स्थान को राष्ट्रपति के नांमीनेशन से भरा जाये:यह कोई किसी दल का व्यक्ति हो
यह भी जरूरी नहीं होना चाहिये: