किसी को इस बात पर कोई जलन या अफसोस नहीं होना चािहये कि रियो ओलंपिक में जीतने वाली सिंधु और साक्षी पर इनामों की बौछार हो रही है,किसी को इस बात का भी अफसोस नहीं होना चािहये कि पीवी सिंधु को तेलंगाना सरकार ने पांच करोड़, आंध्र प्रदेश सरकार ने तीन करोड़, दिल्ली सरकार ने दो करोड़, मध्यप्रदेश सरकार ने पचास लाख के अलावा तीन करोड़ रुपये और अन्य खेल संगठनों ने भी पैसा देने का ऐलान किया है. किसी को इस बात का भी कोई मलेह नहीं होना चाहिये कि आंध्र सरकार ने भी उन्हें एक हजार वर्ग गज जमीन और ए-ग्रेड सरकारी नौकरी देने का फैसला किया है. दूसरी रेसलर साक्षी मलिक जिसने कुश्ती में एक पदक जीत हासिल की को भी हरियाणा सरकार ने 2.5 करोड़, दिल्ली सरकार ने एक करोड़ और तेलंगाना सरकार ने एक करोड़ रुपये देने का फैसला लिया-साक्षी को रेलवे 50 लाख और पदोन्नति देगा जबकि उनके पिता का भी प्रमोशन होगा.ऐसा होना चाहिये लेकिन यह प्रोत्साहन जीतने के बाद ही क्यों? उससे पहले प्रतिभाओं को क्येंा दबोचकर रखा जाता है? काश! खिलाडिय़ों को संवारने पर भी देश की संस्थााएं इतना खर्च करती! तो शायद पूजा जैसी राष्ट्रीय स्तर की हैंड बाल खिलाड़ी को आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाना पड़ता. बता दे कि पटियाला खालसा कालेज के अधिकारियों की ओर से उसे नि:शुल्क छात्रावास सुविधा देने से इनकार करने पर इस राष्ट्रीय खिलाड़ी ने आत्महत्या कर ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखे पत्र में पूजा ने अफसोस जताया कि वह गरीब है और छात्रावास के शुल्क का भुगतान नहीं कर सकती इसलिए वह मौत को गले लगा रही है. पटियाला के खालसा कॉलेज की इस छात्रा ने पत्र में प्रधानमंत्री से अपील की कि वह यह सुनिश्चित करें कि उसके जैसी गरीब लड़कियों को पढ़ाई की सुविधा नि:शुल्क मिले.इस खिलाड़ी को पिछले साल कॉलेज में नि:शुल्क दाखिला दिया गया था जिसमें हॉस्टल सुविधा और भोजन शामिल था लेकिन इस वर्ष उसे हॉस्टल में रहने की अनुमति देने से भी इनकार कर दिया गया. कॉलेज तक जाने का रोज का खर्चा 120 रुपए था. उसके पिता सब्जी बेचने का काम करते हैं. वित्तीय हालत अच्छी न होने के कारण पहले तो उसने कॉलेज छोडऩे पर विचार किया बाद में यह बड़ा कदम उठाया. यहां भी खेल में घुसी राजनीति का अच्छा खासा दृश्य सामने आया जिसमें खिलाड़ी ने अपने सुसाइड नोट में अपनी मौत के लिए अपने कोच को जिम्मेदार ठहराया है. सुसाइड नोट में लिखा है, उसी ने मुझे हॉस्टल का कमरा देने से इनकार किया और कहा कि वह हर दिन अपने घर से यहां आया जाया करें. इससे इस प्रतिभाशाली लड़की को हर महीने 3,720 रुपए खर्च करने होते जो उसके पिता वहन नहीं कर सकते. रियो में पदक जीतने के बाद से ही सिंधु और साक्षी पर इनामों की बौछार हो रही है. अब तक केंद्र, राज्य सरकारें, खेल एवं अन्य संगठन सिंधु को 13 करोड़ रुपये के करीब नगद देने की घोषणा कर चुकी हैं,इसके अलावा उन्हें बीएमडब्ल्यू कार और घर भी मिलेगा.साक्षी को भी करीब पांच करोड़ का इनाम दिए जाने की घोषणा हो चुकी है.जीते खिलाडियों ने देश की शान को आसमान तक पहुंचाया है वे इस इनाम के हकदार भी है लेकिन पूरे देश में पूजा जैसे कितने ही अन्य प्रतिभाशाली खिलाड़ी मौजूद हैं जिन्हें तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिलता.खेल की गंदी राजनीति में पड़कर कइयों का भविष्य बरबाद हो जाता है. देश का नाम रौशन कर सकने वाले कई खिलाड़ी आज भी देश में बदतर स्थितियों में गुजारा करने मजबूर हैं. जरा सोचिए, अगर जीतने से पहले खिलाडिय़ों को संवारने पर इतना खर्च किया जाता तो शायद नतीजे कुछ और होतेा. यह हम नहीं कह रहे बल्कि ओलंपिक में सर्वाधिक पदक जीतने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के आंकड़े बताते हैं कि वहां खिलाडिय़ों के प्रशिक्षण और सुविधाओं पर ज्यादा खर्च किया जाता है यही कारण है कि पदक तालिका में ये देश आगे रहते हैं. अमेरिका, चीन, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों में खिलाडिय़ों को बहुत ही कम नकद पुरस्कार दिया जाता है.ये देश खिलाडिय़ों की प्रतिभा को निखारने पर ज्यादा खर्च करते हैं. भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की स्थायी समिति के अनुसार, भारत में सिर्फ 3 पैसे प्रति व्यक्ति प्रति दिन खेल पर खर्च होते हैं। खेल के मामले में अब सोच सिर्फ अमीरों के खेल क्रि केट तक ही सीमित न रख अन्य खेल और खिलाडिय़ों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. साक्षी,सिुंधु ने तो इस ओलंपिक में देश का नाम रौशन कर दिया. कई गरीब खिलाडिय़ों की कहानी भी इस दौरान सामने आई. कम से कम अब हमारे कर्ताधर्ताओं को सतर्क होने की जरूरत है ताकि और कोई पूजा इस तरह का घातक कदम न उठा ले.