डाँन की 774 किलोमीटर यात्रा, किसने की मदद?
अंतत: डाँन का अंत,कोई ड्रामा काम नहीं आ पाया!
मौत के बाद कई राज दब गये?
बिल्कुल फिल्मी स्टाइल पर डाँन विकास दुबे कानपुर से सत्रह किलोमीटर पहले भौती में पुलिस की गोली का शिकार हो गया. पूरे उत्तर प्रदेश में छै- सात दिनों तक चले इस सबसे बड़े ड्रामें का अंत दस जुलाई की सुबह हुआ. इसके बाद जो कहानी प्राप्त हुई है उसके अनुसार उज्जैन से कानपुर ले जा रही उत्तर प्रदेश एसटीएफ की गाड़ी के गाय को बचाने के चक्कर में पलटने के बाद उसने पुलिस की पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की थी. असल में एक के बाद एक साथियों को एनकाउंटर में मार देने या पकड़ लेने के बाद ऐसा लग रहा था कि विकास भी पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारा जायेगा या पकड़ लिया जायेगा लेकिन वह बड़े नाटकीय ढंग से उज्जैन के महाकाल मंदिर में प्रकट हुआ और एक निहत्थे गार्ड के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.यहां पुलिस ने न ही उसे हथकड़ी लगाई और न कोई बड़ा तामझाम दिखाया. आठ पुलिस कर्मियों को मारने वाले इस कुख्यात अपराधी को पकडऩे के लिये सात राज्य, दस हजार पुलिसकर्मी, कानपुर के चालीस थानों की फोर्स, एसटीएफ की सौ टीमें लगने के बाद भी वह पुलिस के हाथ नहीं आया था. आत्मसमर्पण या गिरफतारी का श्रेय लूटा मध्यप्रदेश ने. देश में राजनीति के अपराधीकरण और उससे उपजे एक बड़े अपराध का यह एक जीता जागता उदाहरण है जो आम लोगों को न केवल दिखाई दिया बल्कि समझ में भी आ गया. पहुंच और वरदहस्त के चलते अपराधी कैसे बड़े से बड़े अपराध कर पतले रास्ते से निकल भागने में सफल हो जाते हैं इसका भी खुलासा इस मामले में हो जाता है. उज्जेैन के महाकाल मंदिर में विकास दुबे ने अपने आपको समर्पण करने के लिये सिखा-सिखाया जाल फेका- चिल्ला चिल्लकर कहा कि मैं कानपुर का विकास दुबे- देखों वे मुझे पकड़ रहे हैं. उसकी इस बात में यह साफ झलक रहा था कि कहीं पुलिस मुठभेड़ न दिखा दे इसका पूरा प्रबंध किसी के कहने पर उसने कर रखा था. एनकाउंटर से बचने के लिये और न्यायालय की शरण जाकर लम्बे समय तक अपने आपको बचाने का सिखाया हुआ तरीका था. इस अपराधी को गिरफतार कर यूपी पुलिस अपने राज्य ले जा रही थी किन्तु रास्त्ते में हुए एनकाउंटर में वह मारा गया. इससे पूर्व उसकी अर्धांगिनी रिचा दुबे व उसके बेटे को भी गिरफतार कर लिया गया था किन्तु शुक्रवार को उन्हे छोड़ दिया गया. हैदराबाद दुष्कर्म कांड के बाद वहां एनकाउंटर में दुष्कर्मियों के मारने के बाद हैदराबाद की जनता ने पुलिस को हाथों हाथ उठा लिया था लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस अपने ही पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले व्यक्ति को न पकड़ सकी और न ही बिना विवाद वाले एनकाउंटर में मार सकी बल्कि वह शान से उनकी नाक के नीचे से निकलकर उज्जैन के महाकाल मंदिर तक पहुंच गया. इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि कितना बड़ा वरद हस्त उसे अपने उन आकाओं से प्राप्त था जो उनके संरक्षण में करता रहा. क्या यह सही हो सकता है कि जिस विकास को पकडऩे के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, और मध्य प्रदेश में अलर्ट जारी करने व सीसी टीवी में नजर आने और लोकेशन मिलने के बाद भी किसी प्रश्रय के बगैर सात दिनों तक सात राज्यों की पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. वह पुलिस को गुमराह करता रहा या किसी का हाथ उसके सर को पनाह दे रहा था? विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद हिरासत में लिए गए दो वकील, निजी गाड़ी से उज्जैन गए थे वकीलों को भी उज्जैन से पुलिस हिरासत में लिया गया.उत्तर प्रदेश पुलिस को चकमा देते हुए विकास मध्य प्रदेश कैसे पहुंच गया ये बड़ा सवाल है.पुलिस उसके गुर्गों का सफाया करने में लगी रही और विकास दुबे उज्जैन पहुंच गया सवाल यही है कि वहां तक पहुंचने में विकास की मदद कौन कर रहा था.आखिर राज्यों की सीमा और टोल नाकों पर तैनात पुलिसकर्मी और सीसीटीवी कैमरे क्या केवल खानापूर्ति के लिए अथवा सीधे साधे लोगों को तंग करने के लिये लगाये जाते हैं? बुधवार तक विकास दुबे की लोकेशन फरीदाबाद और एनसीआर बताई जा रही थी लेकिन यहां से वो उज्जैन कैसे पहुंचा? ये सवाल अब भी अनसुलझा है. फरीदाबाद से उज्जैन तक का सफर सड़क मार्ग से करने पर कम से कम 14 घंटे का समय लगता है. दोनों शहरों के बीच की दूरी लगभग 774 किलोमीटर है. अब इस सवाल का जवाब या तो पुलिस दे सकती है या फिर खुद विकास..सवाल यह भी उठ रहा है कि विकास दुबे को अब तक एक भी केस में सजा नहीं मिली; पहले उसकी गिरफतारी पर पर राजनीति गर्म रही अब उसके एनकाउटंर पर भी सवाल उठ रहे है.कांग्रेस,समाजवादी पार्टी उसकी नाटकीय गिरफ्तारी व मुठभेड़ पर सवाल उठा रही है, आम जनता और पुलिसकर्मी गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर से खुश है. अगर एनकाउंटर में ुदुबे की मौत नहीं होती तो उसे भारतीय न्याय व्यवस्था का सामना करना पड़ता संविधान का आर्टिकल 21 हर एक को जीने का अधिकार देता है. एक अपराधी के एनकाउंटर के बारे में सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बैंच के एक्स्ट्रा-ज्युडिशियल हत्याओं यानी एनकाउंटर पर 2014 में दिए फैसले का अपना महत्व है. पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र्र केस में पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने मुंबई पुलिस के 1995 से 1997 के बीच हुए एनकाउंटर्स में 90 अपराधियों की हत्या की वैधता पर सवाल उठाए थे. इसी तरह की याचिका 2018 में यूपी पुलिस के एनकाउंटर्स के खिलाफ भी दाखिल हुई है तब के चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस आरएफ नरीमन ने 23 सितंबर, 2014 को फैसले में कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है सरकार भी उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकती.विकास दुबे कानपुर जेल पहुंच गया होता तो एनकाउंटर नहीं हो सकता था.उज्जैन पहुंचना और नाटकीय रूप से गिरफ्तार होना साफ तौर पर जान बचाने के लिए सरेंडर था. ऐसे में पुलिस किसी का भी एनकाउंटर नहीं कर सकती? लेकिन अब एनकाउटंर भी हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुलिस एनकाउंटरों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे. हर एनकाउंटर की जांच जरूरी है. जांच खत्म होने तक इसमें शामिल पुलिसकर्मियों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलता.एनकाउंटर आमतौर पर दो तरह के होते हैं- पहला, जिसमें कोई अपराधी पुलिस की हिरासत से भागने की कोशिश करता है. दूसरा, जब पुलिस किसी अपराधी को पकडऩे जाती है और वो जवाबी हमला कर देता है.