क्या देश के सबसे बड़े कारोबार रेलवे का पूर्ण निजीकरण शुरू हो गया है?अगर निजीकरण हो रहा है तो इसका फायदा किसको कितना मिलेगा? प्रारंभिक सरकारी पहल से तो कुछ ऐसा ही लगता है कि सरकार ने फिलहाल देश के सबसे मशहूर रेलवे स्टेशनों को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने की योजना बना ली है. इस योजना में शामिल किये जाने वाले स्टेशनों को दोबारा विकसित करने की भी योजना है, इसके लिए नीलामी की प्रकिया भी संभवत: इस महीने के अंत में होगी. नीलामी में उत्तर प्रदेश का कानपुर जंक्शन और इलाहबाद जंक्शन को पहले शामिल किया गया हैं जबकि राजस्थान का उदयपुर रेलवे स्टेशन भी शामिल है.
नीलामी के लिए कानपुर जंक्शन की शुरुआती कीमत 200 करोड़ रुपए जबकि इलाहबाद जंक्शन के लिए 150 करोड़ रुपए रखी गई है वहीं नीलामी के परिणाम का ऐलान 30 जून तक हो जाएगा. रेलवे के निजीकरण की शुरूआती प्रक्रिया में केंद्र सरकार ने देश के कुल 23 रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला लगभग कर लिया है. स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने के बाद रेलवे सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था, टिकट बिक्री और पार्सल के साथ-साथ ट्रेनों के परिचालन की जिम्मेदारी अपने पास रखेगा. रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था से इतर निजी कंपनी के गार्ड भी शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स की तरह स्टेशन परिसर के अलग-अलग हिस्सों में तैनात रहेंगे. तय कार्यक्रम के तहत इस व्यवस्था में 45 साल के लिए स्टेशन को संबंधित निजी कंपनी को लीज पर दिया जाएगा इस अवधि में कंपनी को अमुक रेलवे स्टेशन को विश्वस्तरीय सुविधाओं से परिपूर्ण करना सरकार की मंशा है.आम बजट और रेलवे बजट को एक साथ पेश करने के निर्णय के बाद रेलवे से संबन्धित यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है-इससे आम लोग विशेषकर उन क्षेत्रों के लोग किस ढंग की सुविधाओं का लाभ उठा पायेंगे यह तो आने वाला समय बतायेगा लेकिन जो योजना सरकार लेकर चल रही है उसके तहत प्लेटफार्म पर फूड स्टॉल, रिटायरिंग रूम, फ्रेश एरिया, प्ले एरिया भी विकसित किए जाएंगे.
रेलवे स्टेशनों की नीलामी से पहले यह स्पष्ट कर दिया है कि निजी कंपनी किसी भी सूरत में स्टेशनों के हेरिटेज स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं करेगी. यानी इस समय इस योजना के तहत लिये गये कानपुर सेंट्रल और इलाहाबाद स्टेशन का स्वरूप जस का तस रहेगा. स्टेशन परिसर की खाली जगह में स्टेशन को खरीदने वाली कंपनी फाइव स्टार होटल, शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स बनाएगी. रेलवे ने स्टेशनों को विकसित करने के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित कर लिया है लेकिन आमदनी में बंटवारे का फॉर्मूला तय नहीं हुआ है.रेलवे फिफ्टी-फिफ्टी का फॉर्मूला लागू करना चाहती है, जबकि निजी कंपनियों का तर्क है कि संसाधन और सेवा मुहैया कराने में लगातार खर्च आएगा.ऐसे में 70-30 फीसदी की हिस्सेदारी तय होनी चाहिए. स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाने के लिए निजी कंपनी के साथ अनुबंध करने की शुरुआत मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के हबीबगंज स्टेशन से शुरू हुई है. यह दिलचस्प है कि रेलवे की घोषणाएं अनुबंध सभी एक के बाद एक हो रहे हैं लेकिन क्या रेलवे में यात्रा करने वाले वर्तमान व्यवस्था से संतुष्ट है. अ
सल में पैसा कम देकर यात्रा करने वालों की अपेक्षा सारी सुविधा ज्यादा पैसे देकर यात्रा करने वालों की झोली में पड़ रही है जबकि आम यात्री आज भी पूर्व की तरह धक्के खा रहा है. टिकिट कन्फर्म होने के लिये इंटरनेट पर नजर गढाये रहता है और अंतं में वेटिंगं टिकिट कन्फर्म हुए बगैर भारी पैस काटकर यात्री को वापस कर दिया जाता है. आम यात्री अपनी यात्रा के दौरान न सुरक्षित है और न चैन की नींद सो सकता है-क्या सरकार अपने हाथ से रेलवे निजी लोगों को देने के बाद इस व्यवस्था में भी सुधार करेगा? सरकार ने हाल के वर्षो में रेल किराया व भाड़े में भारी बढौत्तरी कर अपनी झोली में काफी पैसा एकत्रित किया है इसका प्रमाण यही है कि भारतीय रेलवे अपने 40 हजार कोचों को बेहतर और एडवांस करने की तैयारी भी कर रही है. इसके लिए रेलवे 8,000 करोड़ रुपए खर्च करेगी.
सुविधा का विस्तार जिस ढंग से हो रहा है उस हिसाब से यह आम लोगों को मिलने में वक्त लगेगी उसी दौर में देश की जनसंख्या या कहे यात्री भी तेजी से बढ़ जायेंगे. रेलवे को इसका भी ख्याल रखना चाहिये. आम यात्री चैन से सुखी यात्रा कर अपने गंतव्य तक पहुंच सके यही रेलवे का ध्येय होना चाहिये.इसमें दो मत नहीं कि रेलवे को माडर्न बनाने के लिये बहुत कुछ करने की जरूरत है जो वर्तमान में देखा जाये तो यह प्रयास ऊंट के मुुुंह में जीार सदृश्य है.यात्रियों को सुविधा विश्वस्तर की देने की पहल का हर कोइ्र स्वागत करता है लेकिन सुविधाएं हर व्यक्ति जल्द चाहता र्है- दीर्घकाल को किसने देखा है?कौन देख सकता है और कौन इसकी प्रतीक्षा करेगा?