क्यों नहीं बन पाया रायपुर देश में अव्वल?
राजधानी को सुधारने के पहले क्या नई राजधानी जरूरी थी?
एम:ए:जोसेफ
जब मध्यप्रदेश का एक बडा शहर इन्दौर और छत्तीसगढ में एक छोटा सा
शहर अंबिकापुर देश में स्वच्छता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बन सकता है तो इस राज्य
की राजधानी रायपुर में कौन से गुणों का अभाव है जो यह देश में सर्वोच्च स्थान
नहीं पा सका? यह एक ऐसा प्रशन है जिसका उत्तर यहां के कर्ताधर्ताओं के पास है लेकिन
उसका उत्तर देने में वे या तो मुंह छिपा रहे हैं या अपनी ढीली कर्तव्य निष्ठा पर
पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं:एक सामान्य सा आदमी भी इस बात का अंदाज लगा सकता
है कि यह यहां के कतिपय वार्डो में व्याप्त गंदगी, विकास में
देरी और निगम के निकम्मेपन का ही परिणाम है जिसे छिपाने के लिये दूसरे बहाने
बनाये जाते हैं:अब यह खोज निकालने का समय है कि इस शहर में क्या खामियां है जिससे
हम लगातार अपने हक को खोते चले जा रहे हैं:हमें इस बात का संतोष है कि छत्तीसगढ
ने देश में सर्वोच्च सुन्दर राज्य का दर्जा हासिल किया है लेकिन क्या हम अपने
राज्य की राजधानी रायपुर की दुर्दशा देखकर इस खुशी के साथ जश्न बना सकते है?असल में मध्यप्रदेश
से अलग होकर छत्तीसगढ राज्य बनने के बाद अर्थात सन 2000 से अब तक हमने छत्तीसगढ
की राजधानी मूल {Basic} रायपुर के साथ सदैव सौतेला व्यवहार किया
है:कर्ताधर्ताओं ने मूल रायपुर शहर की समस्याओं, यहां के
सौदर्य को निखारने के दिखावे दावे के साथ इस शहर के
विकास और अन्य सुविधाओं को सदैव नजर अंदाज ही किया है:असल बात तो यह है कि राजधानी
रायपुर के विकास में जबर्दस्त देरी की गई: कुछ अच्छी योजनाएं बनाई गई लेकिन उसपर
अमल नहीं किया गया या उसे अमल में लाने मे बहुत देरी कर दी गई: शहर की व्यस्त
सडको मसलन शारदा चौक से तात्यापारा तक को चौडी करने की जगह स्काई वाक का ढांचा
बनाकर करोडों रूपये उसमें झोक दिये गये: इसकी जगह अगर तेलीबांधा से कुम्हारी तक
और रायपुर रेलवे स्टेशन से पंचपेडी नाका तक फलाई ओवर का निर्माण कर दिया जाता तो
आज राजधानी रायपुर का नक्शा यह नहीं होता जो आज है: शायद इस निर्माण में भी उतना
या उससे कुछ ज्यादा खर्च होता जो बेढंग स्काई वाक में हुआ: छत्तीसगढ के एक बजट
में अच्छे फलाई ओवर की योजनाएं थी उसे बाद में कचरे के डिब्बे मे डाल दिया गया: कई साल पहले पूरे रायपुर शहर को धूल
के आगोश में डालकर अंडरग्राउडं ड्रेनेज सिस्टम का धोखा दिया:करोडों रूपये इसमें दफन
कर दिया गया: कौन थे इस पूरे कांड के धोखेबाज उसे पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया:पुराने
रायपुर शहर की बिजली व्यवस्था को भी अंडर ग्राउंड किया जा सकता था लेकिन इसपर ध्यान
नहीं दिया गया: घरों और सडको पर बिजली के तार झूल रहे हैं और उसमें मकडी के जाल लगे
हुए हैं: मूल रायपुर शहर की सुविधा बढाने की जगह कुछ बाहर से आये लोगों को बसाने
और उनको खुश करने के लिये नई राजधानी बनाकर उसपर ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्च कर
दिया: किसी समय रतनपुर से रायपुर बने इस पुराने शहर को अपने हाल पर छोड दिया गया: हम
यह नहीं कह सकते कि नई राजधानी नहीं बनना चाहिये था लेकिन यह जरूर कह सकते है कि
इसका निर्माण मूल रायपुर को अपने रूप से अलग रूप देने के बाद भी किया जा सकता था:
इसी के साथ यह सवाल उठता है कि राज्य बनने के बाद मूल रायपुर और उसके वार्डो को
तथा वहां रहने वालों को नये रायपुर की तरह क्यों नहीं सुविधाएं दी गई? इसमें क्या
कठिनाई थी जो यहां का विकास राजनांदगांव और अंबिकापुर जैसे शहरों की तरह किया गया? राजधानी
रायपुर से दूसरे शहरो के लिये जाने वाले वीवीआईपी व अन्य लोगों के लिये अच्छी
सडके ,अच्छे रेस्ट हाउस और अन्य सुविधाएं तो उपलब्घ कर दी गई किन्तु रायपुर
शहर को अपने हाल पर छोडकर रायपुर शहर से कई किलोमीटर दूर जहां तक पहुंचने की सुविधा
तक आम लोगों को नहीं है: नई राजधानी को विकसित करने का कठिन जिम्मा हाथ में ले
लिया गया जबकि यह काम रायपुर को पूरी तरह सुन्दर,विकसित आत्मनिर्भर
बनाने के बाद भी किया जा सकता था: छत्तीसगढ राज्य के लिये संघर्ष करने वाले हर
उस व्यक्ति को इस बात की खुशी और गर्व है कि उन्हें रायपुर जैसा शहर राजधानी के
रूप में मिला लेकिन बीस वर्षो में रायपुर शहर ने क्या पाया यह सोचकर दुख होता है
क्योंकि देश में हुए 4242 शहरों में स्वच्छता के सर्वेक्षण में राजधानी रायपुर को 21वीं रैंक से बेहतर स्थिति नहीं मिल सकी: ऐसी खबर
सुनकर हमको हैरान नहीं होना चाहिये उनको बैचेन होना चाहिये जिनको रैंक पाने का काम
सौपा गया था: एैसे लोगो को डूब मरने से रायपुर की जनता नहीं बचायेगी क्योंकि उनसे
रायपुर को गंदगी, धूल और मच्छरों से बचाने के लाख
अनुरोध के बावजूद उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया: कई प्रकार के उपक्रम बनाकर
जनता से संपर्क करने का गलत दावा करते रहे: शहर को साफ सुथरा करने का काम वे स्पाट
पर जाकर करने की जगह अपने एसी रूम में बैठकर निर्देश देने के सिवा कुछ नहीं कर
सकें:अगर ऐसे लोगों में थोडी बहुत भी शर्म है तो उन्हें फील्ड मे आकर देखना होगा
कि रायपुर शहर में उनके स्ट्रीट लाइट कितने जलते हैं, नालियां कितनी साफ होती हैं: यह नालियां कैसे कचरे से अटी पडी हैं:
कई जगह कचरे उठाये नहीं जाते, कई जगह झाडू नहीं लगते: कई कालोनियों
की सेप्टिक टैंक की गलियों में कचरे का ढेर लगा है कीडे मकोडे और बिच्छू सांप निकल रहे हैं: इन गलियों में असामाजिक
तत्व गांजे का पौधा लगाकर खेती कर रहे हैं: लाख फोन कर और पत्र लिखकर जानकारी देने
के बावजूद अधिकारियों को जानकारी देने के बावजूद अफसरों के कान में जू नहीं रेंगती:
रायपुर में सैकडों गार्डन बनाये गये हैं किन्तु उनका रखरखाव कितना होता है यह किसी
ने देखा है: नदंनवन के जानवरों पौधों को रायपुर से कई किलोमीटर दूर ले जाकर तूता में
शिफट कर दिया गया अर्थात एक तरह से शहर वासियों की सुविधा को छीन लिया गया: ऐसे
में कैसे हम नम्बर वन पायेंगे? राजधानी रायपुर की इस शर्मनाक स्थिति के लिये
अकेला नगर निगम जिम्मेदार नहीं है: नगर निगम को सहयोग देने वाले अन्य विभाग और
उसमे कार्य करने वाले कतिपय कर्ताधर्ता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं:निगम को इस बात
की पूरी जानकारी है कि वह कहां इस मामले में फैल्युअर हुआ है किन्तु वह अभिनय कर
इस बात का पता लगाने की कोशिश करता दिख रहा है कि कहां गलती हुई है: स्वच्छता के
सर्वेक्षण में सर्टिफिकेशन के लिए थर्ड पार्टी को
निरीक्षण के दौरान जो चीजें देखनी थी उनमें कई सारी बातें शामिल की गई थीं: टीम को
एक पूरे शहर के नजरिए से हर वार्ड की स्थिति का मुआयना करना था यहां आवासीय, व्यावासियक, सामुदायिक क्षेत्रों के अलावा पार्क, ज्यादा मात्रा में कचरा निकालने वाले
संस्थान जैसे होटल, रेस्टोरेंट, मैरिज हॉल, सभागार, हास्पिटल इत्यादि,
रेलवे स्टेशन,
एयरपोर्ट, ट्रांसपोर्ट हब,
कचरा प्रोसेसिंग प्लांट व साइंटिफिक लैंडफील्ड साइट व टूरिस्ट
एरिया का निरीक्षण करना था: शहर की वॉटर बाडी, प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट, निर्माण और तोड़फोड़ से निकलने वाले
कचरे का निष्पादन इत्यादि देखना था: यह सभी चीजें देखने और परखने के बाद ही टीम को
एक, तीन पांच और सात स्टार रेटिंग देनी थी:स्वच्छता सर्वे के सर्टिफिकेशन
में दो श्रेणी रखे गए थे पहला कचरा मुक्त शहर के लिए स्टार रेटिंग, जिसमें 1000 अंक तय थे: दूसरी
श्रेणी खुले में शौचमुक्त शहर के लिए थी, जिसमें 500 नंबर मिलने थे: खुले में शौचमुक्त शहर के लिए रायपुर को पूरे 500 अंक मिल गए, क्योंकि रायपुर ओडीएफ डब्लस प्लस का
सर्टिफिकेट मिल चुका था:कचरा मुक्त शहर की मानिटरिंग के लिए
अक्टूबर 2019 और दिसंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच रायपुर का थर्ड पार्टी इंसपेक्शन हुआ दिल्ली से आई तीसरी
पार्टी जिसमें पहली पार्टी केंद्र सरकार, दूसरी पार्टी रायपुर निगम ने इस दौरान
शहर का मुआयना किया: टीम को हर वार्ड का बारीकी से निरीक्षण करना था: डोर टू डोर कचरा
कलेक्शन, मुक्कड़ों की स्थिति, सड़कों की सफाई इत्यादि: टीम ने पाया कि कई वाडों में न तो सड़क की
सफाई हो रही है और न ही कचरा उठाया जा रहा है स्टार रेटिंग में अंक नहीं मिलने की
एक बड़ी वजह इसे बताई जा रही है:दुर्भाग्य यह कि रायपुर को इस लायक भी नहीं समझा
गया कि एक स्टार भी उसे दे सके: एक स्टार
के लिए 200 अंक, तीन के लिए 600,
पांच के लिए 800
और सात स्टार के लिए 1000 अंक तय थे: अगर यहां के कर्ताधर्ता
बीते साल थोडा बहुत भी प्रयास करते तो 600 अंकों तक पहुंचा जा सकता था लेकिन दुर्भाग्य
हमारा कि हम इसे पा नहीं सके:एम ए जोसेफ