जीवन शैली में बदलाव जरूरी वरना पालकों को परिणाम भोगना होगा!
विश्व आज विकट परिस्थियों से जूझ रहा है. कोराना महामारी से लेकर भूकंप, बाढ और अपराध की बढ़ती हुई घटनाओं ने इससे निपटने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी कुदरत ने अभिभावकों पर डाल दी है .आज अगर उन्होंने अपने बच्चों में आ रहे बदलाव को महसूस न कर कोई निर्णय नहीं लिया तो भविष्य में उनको इसके लिये पछताना पड़़ सकता है. बच्चों के शारीरिक व मानसिक दोनों ही स्थितियों मे व्यापक परिवर्तन महसूस किया जा रहा है जिसे समय रहते हल करने की जरूरत है. बच्चे.पढऩे खेलने-कूदने की उम्र में न केवल अपने अभिभावकों को अवाइड कर रहे हैं बल्कि उनके शारीरिक ढांचे में भी व्यापक परिवर्तन आ रहा है. कुछ न केवल उद्यण्ड हो रहे हैं बल्कि माता पिता के प्रति भी उनका व्यवहार कुछ ऐसा है जो किसी को भी अनुकूल प्रतीत नहीं होता. इसके लिये प्रमुख रूप से वातावरण में आया बदलाव तो जिम्मेदार है ही साथ ही मोबाइल, टीवी,बाइक और अन्य कुछ जरूरत से ज्यादा दी जाने वाली सुविधाएं जिम्मेदार है. यह सुविधाएं बच्चों को अपने अभिभावकों से ज्यादा प्यारे लगने लगे हैं. कोराना काल में बच्चों के लिये मोबाइल एक वरदान साबित हुआ है.सब कुछ छोड़कर पढ़ाई के नाम पर कथित पढा़ई के बाद मोबाइल उनका सबसे बड़ा बिगडेल दोस्त बन गया है. इन मोबाइल युगीन बच्चों को आज के युग मेें माता पिता से भी ज्यादा प्यारा मोबाइल है जो उन्हें वह सब दे रहा है जो इस उमर में बच्चे चाहते हैं. ऐसे में उन्हें न खेलकूद में कोई रूचि है और न ही पढऩे लिखने में. अगर मोबाइल देखते समय माता पिता कोई काम के लिये कहे तो यह भी उनके लिये कू्रूरता दिखाई देती है. कुछ बच्चे इस परिप्रेक्ष्य में जहां मोटापे और हाई ब्लडप्रेशर का शिकार हो रहे हैं.ें बाल रोग विशेषज्ञों ने ग्रो इंडिया के बैनर तले 5 से 18 वर्ष की उम्र के स्कूली बच्चों के बीच जाकर अध्ययन और स्क्रीनिंग की तो परिणाम चौंकाने वाले निकले- 12 फीसदी बच्चों में मोटापा तो 18 प्रतिशत ओवरवेट थे अहम बात है कि सभी का ब्लडप्रेशर मानक से हाई पाया गया. डॉक्टरों के मुताबिक ये बच्चे हाइपरटेंशन और शुगर जैसी बीमारी के मुहाने पर खड़े हैं.टीम ने करीब दो साल तक देश के करीब दो स्कूलों के 10 हजार बच्चों की जीवनशैली पर अध्ययन किया. स्क्रीनिंग के जरिए ब्लडप्रेशर चेकअप और केस हिस्ट्री तैयार की, अध्ययन रिपोर्ट (शोध पत्र) को इंडियन पीडियाट्रिक जर्नल में भेजा गया जिसे प्रकाशित करने की मंजूरी मिली.स्टडी में ऐसे तथ्य सामने आए जिसने डॉक्टरों के साथ बच्चों के माता-पिता की चिंता भी बढ़ा दी है. 15 फीसदी यानी लगभग पांच हजार बच्चों का बीपी सामान्य से दोगुना तक बढ़ा निकला. 5 से 18 साल की उम्र तक के बच्चों का नॉर्मल ब्लड प्रेशर 70-120 माना जाता है. उम्र बढऩे के साथ-साथ यह बदलता रहता है. अध्ययन के मुताबिक ऐसे बच्चे हाईरिस्क जोन में हैं और युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते डायबिटीज, हाइपरटेंशन के साथ ही दिल की बीमारी की चपेट में आ सकते हैं. माता-पिता को सुझाव दिया गया है कि अपने बच्चों को न सिर्फ मोटापे से बचाएं, बल्कि सही जीवनशैली भी अपनाएं. अघ्ययन में चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं.जिसमें कहा गया है कि 80 फीसदी बच्चे खाना और नाश्ता करते समय टीवी या मोबाइल जरूर देखते हैं, इसी में उनकी डाइट ज्यादा हो जाती है.70 फीसदी बच्चे एक घंटे से भी कम खेलते या फिजिकल एक्सरसाइज करते हैं जबकि उन्हें 24 घंटे में 1 घंटे तक एक्सरसाइज करनी चाहिए. 90 फीसदी बच्चे नियमित जंक फूड लेते हैं इसलिए उनमें हारमोनल बदलाव आते हैं. बैड कोलेस्ट्रॉल वाले भोज्य पदार्थों का सर्वाधिक सेवन घातक. स्कूल के दिनों में बच्चों के 7-8 घंटे भी न सोने का तथ्य सामने आया है. पालकों को सुझाव दिया गया है कि वे अपने बच्चों को रोज 1 घंटे से ज्यादा खेलने कूदने प्रोत्साहित करें व फिजिकल एक्सरसाइज कराएं. 8 घंटे साउंड स्लीप जरूर हो क्योंकि इसी उम्र में शारीरिक अंगों का विकास होता है. खाना-पीना सादा और फाइबरयुक्त ही दें. तैलीय चीजों से पूरी तरह परहेज करने की जरूरत है.जंक फूड बंद करके ज्यादा नमक-चीनी के पदार्थों से परहेज रखें. सब्जी, फल और ज्यादा पानी पीने पर फोकस करें. सर्वे का क्षेत्र यद्यपि सीमित है लेकिन अमूमन देशभर के अन्य स्कूलो के भी बच्चों का यही हाल होगा ऐसा समझा जाता है. उक्त सर्वे में हजार बच्चों पर स्टडी की उससे जो परिणाम सामने आए हैं वह चिंता बढ़ाने वाले हैं. ब्लड प्रेशर, ओवरवेट, मोटापा बच्चों के बीच ज्वलंत समस्या है,इसका ग्राफ 30 फीसदी पार कर गया है.जीवनशैली को बदलना होगा अन्यथा भावी पीढ़ी समय से पहले कई बीमारियों से ग्रसित हो जाएगी.