कौन जाने बेबस लोगों का दर्द...फ्री में मिल रही है प्राकृतिक आपदाएं!
प्राकृतिक आपदाओं से तबाही का मंजर सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि अपने पडौसी देशों के साथ विश्व के अनेक देशो में मिल रहा है. मानसून शुरू होने के बाद प्राय: हर वर्ष बाढ़ का ताण्डव शुरू हो जाता है. इस बार जानलेवा कोराना वायरस की बीमारी के साथ- साथ विश्व को बाढ़ का ताण्डव और अन्य प्राकृतिक आपदायें फ्र ी में मिल रही है. एक तरफ कोरोना वायरस जहां करोड़ो लोगों की जान ले रहा है तो भारत के राज्यों असम, बिहार, उत्तरप्रदेश,राजस्थान, गुजरात, केरल,अरूणाचल प्रदेश तामिलनाडू जैसे राज्यों में बाढ़ ने अरबों रूपये की संपत्ति तबाह कर दी है.इस प्रकार की तबाही का मंजर बहुत सालो बाद आया है.कुदरत के इस खेल के आगे दुनिया बेबस है परेशान है. विश्व के कई देशों में भूकंप और आग से भी तबाही का सिलसिला जारी है.प्रकृति क्यों मानव के पीछे पड़ी है इसे विशेषज्ञो और वैज्ञानिकों को तो समझ में आ रही है लेकिन जिसे वास्तव में समझना चाहिये वह बेखबर है और अपनी मस्ती में मशगूल है.प्रकृति प्रदूषण, वन कटने, आबादी बढऩे और धरती को खोदकर लगातार प्रयोग करने से हो रहे धरतीमां के दर्द को कोई समझने तैयार नहीं है.दुनिया जिस गेंद पर लटकी हुई है वह इंसान के द्वारा किये जा रहे कृत्यों के बोझ तले दबने लगी है, हिलने लगी है और अपना मूल केन्द्र छोड़कर बाहर की तरफ झुकने लगी है-इसे हर इंसान को समझकर आगे की रणनीति तैयार करने की जरूरत है.बहरहाल हमारे देश में असम और बिहार जैसे बाढ़ पीडि़त राज्य में बाढ़ की स्थिति इतना भीषण रूप ले चुकी है कि वहां 37 लाख से ज्यादा लोग सिकुड़ी हुई जिंदगी जी रहे हैं. कल्पना कर सकते है कि एक बैलगाड़ी पर दस दस पन्द्रह लोग सोकर कैसे रात बिताते होंगे? वहीं टूटी फूटी झोपडिय़ां जिनमें जोक,सांप बिच्छू जैसे जीव जन्तु भी घुस आये हो वहां रहने वालों का जिंदगी कैसे गुजरती होगी? सुशासन की बात का ढंका पीटने वाले बाबू क्या जाने इन गरीबों का दर्द क्योंकि वे या तो हवाई सर्वे कर या लक्सरी कार में मस्त दस पन्द्रह पुलिस जवानों के साथ पहुुंचकर यहां घडिय़ाली आंसू बहा जाते हैं.यह अकेले किसी एक राज्य की बात नहीं है हर ऐसी आपदाओं वाले स्थल पर देश व राज्य की सत्ता को सम्हालने वालों का हाल कुछ ऐसा ही है. सिर्फ चुनाव में वोट के लिये यह लोग जनता के हमदर्द बनकर अंासू बहाते हैं बाकी के समय के बारे में किसी को बताने की जरूरत नहीं. बिहार के साथ असम के 33 जिलों में 27 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. बिहार में कई बांध ढह गये है. इनमें ऐसे भी हैं जिसे जनता के पैसे से बनाया गया था. क्यों पत्तों की तरह बहने वाले बांध बनाये जाते हैं? क्यों नहीं बनते समय अधिकारी इन बांधों का स्वयं स्पाट पर पहुंचकर निरीक्षण करते? अपना घर बनता है तो दिनभर खड़े होकर उसे पूरा करते हैं फिर देश में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं है कि बांध या सड़क अथवा अन्य सरकारी निर्माण स्थल पर अफसरों का कैम्प भी उसके निरीक्षण के लिये बनाकर उसकी देखरेख की जाये और अगर कोई खराबी हो तो उसकी सारी जिम्मेदारी ऐसे मोटी तनखाह पाने वाले अधिकारी और कर्मचारियों पर निर्धारित की जाये. यह सब इसलिये नहीं होता कि ऐसे निर्माण देश की जनता के गाड़े कमाई से होते है और इसमें खुला भ्रष्टाचार होता है. कई मामलों में यह साबित भी हो चुका है.फिर भी हममें कोई चेतना नहीं आई! भारत चीन सीमा पर अरुणाचल प्रदेश में मूसलाधार बारिश की वजह से कई जिलों का संपर्क कट गया और बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई.देश में बाढ़ से हर साल तबाही होती है और इस बाढ़ से जानमाल का नुकसान होता है. देश में कम से कम दस ऐसे क्षेत्र हैं, जहां प्रतिवर्ष बाढ़ का आना लगभग तय माना जाता है लेकिन अगर बाढ़ के कारण सारे देश में हाहाकार मचा हो तो इन क्षेत्रों में मौसमी विनाश की कल्पना कर पाना भी संभव नहीं है, पिछले कुछ दशकों के दौरान मध्य भारत जैसे क्षेत्र में भी लोग मूसलाधार बारिश और एकाएक बड़ी मात्रा में बारिश होने, बादल फटने की घटनाओं का सामना करने लगे है. देश में ज्यादातर नदी के किनारों और नदियों के डेल्टाओं में बाढ़ भारी कहर बरपाती है.भारत तीन ओर से समुद्रों (अरब सागर, हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी) से घिरा है। भारत के ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का कहना है कि इस कारण यह देश बाढ़ की विभीषिका को लेकर संवेदनशील है और समूचे देश में ऐसे इलाके हैं, जो कि हर वर्ष बाढ़ का सामना करते हैं. देश में ऐसे कुल इलाकों की संख्या 12.5 प्रतिशत है.इस वर्ष तो सूखे रेतीले क्षेत्र के लिए जाना जाने वाला राजस्थान भी बाढ़ की चपेट में आ गया है. मानसून की होने वाली बहुत अधिक बरसात दक्षिण पश्चिम भारत की नदियां जैसे ब्रहमपुत्र, गंगा, यमुना आदि बाढ़ के साथ इन प्रदेशों के किनारे बसी बहुत बड़ी आबादी के लिए खतरे और विनाश का पर्याय बन जाते हैं इन सभी बड़ी नदियों के आसपास या किनारों पर बसे शहर, गांव और कस्बे इसका सबसे ज्यादा शिकार बन जाते हैं.देश में रावी, यमुना-साहिबी, गंडक, सतलज, गंगा, घग्गर, कोसी तीस्ता, ब्रह्मपुत्र महानदी, महानंदा, दामोदर, गोदावरी, मयूराक्षी, साबरमती और इनकी सहायक नदियों में पानी किनारों को छोड़-छोड़कर बड़ी दूर तक फैल जाता है.देश के कई हिस्से बारिश के इस मौसम मेें सूखे पड़ जाते हैं.ऐसे इलाको को नदियों से जोड़कर बाढ़ की विभीषिका से निजात पाया जा सकता है लेकिन इसके लिये देश के कथित कर्णधारों को सत्ता संघर्ष छोड़कर ठोस योजनाएं बनाने की जरूरत है -बस यही नहीं हो रहा. अरबों रूपये बांध बनाने,पुलिया,सड़क बनाने के नाम पर जनता की जेब से निकाले जाते हैं लेकिन इनका एक बड़ा हिस्सा भी इन निर्माणों पर लगाया जाता तो किसी मतदाता को आज इन प्राकृतिक आपदाओं में अपनो को खोना नहीं पड़ता और न ही अपनी संपदाओं को इस तरह बर्बाद होते देखना पड़ता.