वनोपज ही नहीं, धरती से उत्पन्न हर वस्तु हमारी धरोहर
हमआत्म निर्भर हैं फिर क्यों फैलाएं हाथ किसी के सामने?
एम.ए.जोसेफ
इस करोना युग में छत्तीसगढ़ सरकार से मिली इस खबर ने सुकून ला दिया कि छत्तीसगढ़ लघु वनोपज संग्रहण के मामले में देश में अव्वल बना हुआ है. इसके साथ ही यह भी खबर है कि राज्य में एक ही दिन मेें 28 हजार से ज्यादा जरूरत मंदों को एक ही दिन में बिना पैसे लिये भोजन के पैकेट वितरित किये गये. इसमें दो मत नहीं कि खनिज और अन्य लघु वनोपज के बारे में छत्तीसगढ़ सदैव अग्रणी रहा है, रहेगा और यूं ही चलता रहा तो इस मामले में वह देश में ही नहीं दुनिया में भी अपना स्थान बना सकेगा. छत्तीसगढ़ की पावन धरती पर मौजूद कुछ वनोपज तो देश में इतने लोकप्रिय हैं कि उसकी मांग लगातार लोगों की रहती है फर्क बस इतना है कि इसके उत्पादन में ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन कृषकों व अन्य उत्पादनकर्ताओंं को दी जाये. छत्तीसगढ़ में केन्द्र के शासन के विपरीत विचारधारा वाली सरकार है. इससे यह तो स्पष्ट है कि यहां भूपेश बघेल सरकार को केन्द्र से कई तरह की सुविधाओं के विस्तार और विकास के लिये खूब पसीना बहाना पड़ता है ऐसे में हमें मोदी सरकार के आत्म निर्भरता के सिद्वान्त को अपनाने की जरूरत है अर्थात हम यहां स्वंय पर निर्भर हो जाये.आज कांग्रेस सरकार है कल अगर दूसरी सरकार आ जाये तो भी यह स्थिति आयेगी अत: हमारे राज्य को कई मामलों में आत्म निर्भर होने की जरूरत है. हम अकेले वनोपज के उत्पादन में अग्रणी नहीं हैं.छत्तीसगढ की धरती न केवल वनोपज के उत्पादन में अग्रणी है बल्कि हम यहां से कोयला, बाक्साईट, सोना, हीरा और अन्य ढेरों खनिज पदाथों को भी निकालकर देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मदद करते हैं. हम कोयला उत्पदन कर रेल चलाते हैं बिजली उत्पादन कर कहीं घरों को रौशन करते हैं तो लौह अयस्क का अपने राज्य में स्थापित संयत्रों से उत्पादन कर देश के कई उत्पादन संयत्रों को आगे बढऩे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.जहां तक उत्पादन का सवाल है उसमें दावे के साथ कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ पूर्ण आत्मनिर्भर है.यहां हर क्षेत्र में लोग मेहनत करते हैं और उसका फल भी देते हैं. प्रदेश में जो सरकारें काबिज होती हैं उनका भी यह फर्ज बन जाता है कि वह अपने लोगो की मेहनत का फल उन्हें दें. किसानों और अन्य उत्पादकों को उनकी जरूरत के मुताबिक पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाये. छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रो में उत्पादन का रिकार्ड काबिज है. वह वर्तमान स्थिति से दुगना हो सकता है. चूंकि वनोपज के क्षेत्र मे जहां हम अग्रणी है वहीं कुछ आवश्यक वस्तुओं के उपज के क्षेत्र मेें आज भी हम पिछड़े हुए है.एक उदाहरण छत्तीसगढ़ से छोटे राज्य और बड़े राज्य तामिलनाडू,आन्ध्र का दे सकते हैं-केरल से एक समय लोगों का अपने राज्य से विदेश में बसने और वहां काम करने तथा पैसा कमाने का शोक जाग गया परिणामस्वरूप यहां से काफी संख्या में लोग विदेश चले गये इससे यहां कि खेती विशेषकर नारियल की खेती पर बुरा असर पड़ा. इसका फायदा पड़ोसी राज्यों तामिलनाडू ,आंध्रा और कर्नाटक ने उठाया उन्होंने वहां बड़े पैमाने पर नारियल की खेती शुरू कर दी.आप टे्रेन से केरल कन्याकुमारी तक जा रहे होंगे तो देखेेंगे कि किसी जमाने में जिस आंन्ध्रा और तामिलनाडृृू में सूखे खजूर व ताड़ के पेड़ लगे थे वहां आज जगह जगह भारी मात्रा में नारियल के पेड़ लगे हैं. यह आज इन राज्यों की बड़ी संपदा बनकर उबरी है. छत्तीसगढ़ के कई जिलों का वातावरण नारियल,कटहल, अनानास यहां तक कि पहाड़ी क्षेत्रों में लगने वाली चाय और काफी के लिये अनुकूल है.रायपुर में वर्षो पूर्व लगायें गये नारियल जब भीषण गर्मी में भी भरकर फल दे सकते हैं तो सरकार को किसानों के लिये प्रोत्साहित करने में क्या हर्ज है. रायपुर से बिलासपुर जाते समय राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त श्री अग्रवाल का कृषिफार्म है यहां आज से कुछ वर्ष पूर्व लगाये गये नारियल इस बात के गवाह है कि छत्तीसगढ़ में हर किस्म की खेती संभव है बस इसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है. किसानो को इस बात के लिये भी प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है कि वह धान व अन्य फसल के साथ अपने आंगनों मे पशुपालन, मुर्गी पालन व अगर पानी की सुविधा हुई तो मछली पालन को भी शुरू करें:यह खुशी की बात है कि विश्वव्यापी कोरोना जैसी बीमारी के बावजूद छत्तीसगढ़ मे लघु वनोपजों का संग्रहण जोरों पर है और चालू सीजन के दौरान अब तक देश के अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ लगातार अव्वल बना हुआ है इसके परिणाम स्वरूप राज्य में लगभग 100 करोड़ रूपए की राशि के लघु वनोपजों के वार्षिक संग्रहण लक्ष्य को छह माह पहले ही हासिल कर लिया गया है स्पष्ट है कि छत्तीसगढ इस खुश खबरी को सुनकर फूली नहीं समा रही लेकिन हमें अभी अन्य क्षेत्रों में भी बहुत कुछ करके दिखाना है. आज जब हम अपने राज्य में कोयले-से पानी से बिजली बना सकते हैं, लौह अयस्क बाक्साइट का उपयोग कर इस्पात का उत्पादन में भागीदार बन सकते हैं कि हम अपने बाल्को संयत्र मे बने अल्यूमीनियम का उपयोग अपने यहां किसी नई योजना को आकार नहीं कर सकते? 'द ट्राइबल कोऑपरोटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (ट्राईफेड)Ó द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में 4 जुलाई तक की स्थिति में 104 करोड़ 74 लाख रूपए की राशि के 46 हजार 39 मीट्रिक टन लघु वनोपजों का संग्रहण हो चुका है, जो देश के सभी राज्यों में सर्वाधिक है, इनमें 27 जून तक 76 करोड़ रूपए की राशि के 71 हजार 582 मीट्रिक टन लघु वनोपजों का संग्रहण हुआ था और चालू सप्ताह में ही 29 करोड़ रूपए की राशि के 14 हजार 458 मीट्रिक टन लघु वनोपजों का संग्रहण किया गया है. यह तो सिर्फ वनोपज का ट्रेलर है अगर हमारे उत्पादकों पर सरकारी एजेङ्क्षसयां और घ्यान तो संभव है हम लगू वनोपज ही नहीं अन्य उत्पादों में भी विश्व में अपना स्थान बना सकेगेंं. बस्तर के वनों से प्राप्त चिरोंजी जैसी छोटी सी वस्तु आज शहरों में बारह सौ रूपये किलो बिक रही है तो इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि हमारी धरती से पैदा होने वाली अन्य वस्तुओं की कीमत कितनी हो सकती है! सरकार ने अपनी रिपोर्ट में वनोपज के बारे में जो दावा किया है उसके अनुसार राज्य में चालू वर्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत संग्रहित लघु वनोपजों में इमली (बीज सहित), पुवा? (चरोटा), महुआ फूल (सूखा), बहेड़ा, हर्रा, कालमेघ, धवई फूल (सूखा), नागरमोथा, इमली फूल, करंज बीज तथा शहद शामिल हैं। इसके अलावा बेल गुदा, आंवला (बीज रहित), रंगीनी लाख, कुसुमी लाख, फुल झाडु, चिरौंजी गुठली, कुल्लू गोंद, महुआ बीज, कौंच बीज, जामुन बीज (सूखा), बायबडिंग, साल बीज, गिलोय तथा भेलवा लघु वनोपजें भी इसमें शामिल हैं। साथ ही हाल ही में वन तुलसी बीज, वन जीरा बीज, ईमली बीज, बहेड़ा कचरिया, हर्रा कचरिया तथा नीम बीज को भी शामिल किया गया है।