एक लीटर पानी से मंहगा तेल, कर के बोझ तले दबा इंसान
जीएसटी, सीएसटी को विशेषज्ञ चाहे किसी भी तरह से लोगों को समझाये लेकिन आम लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्हें सरकार ने जो एक देश एक टैक्स का वादा किया था वह कहां है? हम पैदा होते हैं तबसे लेकर मरते दम तक एक नहीं तरह तरह के टैक्स के बोझ तले दब रहे हैं और सरकार है कि हमारे हर नित्य कार्य पर जबर्दस्त कर थोपे जा रही हैं. पेट्रोल डीजल, गैस, घासलेट का भाव जब चाहे तब बढा दिया जाता है. वैश्विक मूल्य कम होने के बाद भी उसे कम करने में कई नखरे दिखाये जाते हैं वहीं आम जरूरतो को पूरा करने के लिये अपनी कमाई का एक बडा हिस्सा विकास और अन्य जनोपयोगी काम के नाम पर सरकार अपने थैले में डलवाती है.इसमे इंकम टैक्स भी शामिल है: पूरे देश में एक कर की बात कही गई थी लेकिन केन्द्र और राज्य दोनों के नाम पर जीएसटी लागू कर दो टैक्स के अलावा रोजमर्रा के कामों में कई टैक्स एक साथ वसूला जा रहा है: खास बात यह कि जीएसटी के दोनों टैक्स में कोई अंतर भी नहीं हैं: लोग पूछते हैं जब राज्य केन्द्र से भी अपने उत्पादों का पैसा वसूलता है तो उसका टैक्स कम क्यों नहीं और केन्द् तो राज्यों से इसके अलावा भी अन्य संसाधनों की खरीद पर भी अच्छी रकम कमाता है: एक तरह से देखा जाये तो आम आदमी अपनी कमाई का एक बडा हिस्सा सरकार के खाते में जमा कराकर अपने बच्चो को भूखा रखता है वह उनके स्वास्थ पढाई लिखाई व अपने भविष्य के सपनो की बली चढा रहा है. दूसरा केन्द्र का हर खरीदी पर यह दोनों टैक्स जहां ज्यों का त्यों मौजूद है तो दूसरे कई कार्यो पर भी भारी टैक्स इंसान को बोझ तले दबा रहा है: कोई सामान लो तो जीएसटी सीएसटी, सडक पर चलों तो टोल टैक्स, मकान खरीदों या सुई खरीदों सबपर टैक्स मौजूद है: घर पर सेवा देने वाला सरकारी सेवक भी काम के बाद बक्शीश के नाम पर गरीब से निकलवा ले जाता है फिर अगर आनलाइन खरीदों तो लूटने वालों की भी कमी नहीं.साइबर हमले ने कई लोगो के खाते से पैसा निकालकर लूट को अपना कैरियर बना रखा है. साइबर क्राइम की चपेट में आने वाले लाचार हैं सबकुछ लुटने के बाद कई तो डिप्रेशन में चले गये. उनके सामने घर पर रहो तो पानी का टैक्स, संपत्ति कर बिजली,टेलीफोन, स्कूल फीस, घरेलू गैस, नगर निगम टैक्स के अलावा भी कई टेक्सो का बोझ उन्हे डिप्रेशन की ओर ले जाता है: जब बीमार हो जाये तो अस्पताल तो उसे इतना बोझ में डाल देता है कि वह अपना डेथ प्रमाण पत्र लेकर दुनिया छोडकर चला जाता है: जून 2010 में सरकार ने तय किया था कि अब से पेट्रोल की कीमतें सरकार नहीं, बल्कि तेल कंपनियां ही तय करेंगी, उसके बाद अक्टूबर 2014 में डीजल की कीमतें तय करने का अधिकार भी तेल कंपनियों को ही दे दिया गया: अप्रैल 2017 में ये फैसला लिया गया कि अब से रोज ही पेट्रोल-डीजल के दाम तय होंगे उसके बाद से ही हर दिन पेट्रोल-डीजल के दाम तय होने लगे तर्क दिया कि इससे कच्चे तेल की कीमतें घटने-बढ़ने का फायदा आम आदमी को भी पहुंचेगा और तेल कंपनियां भी फायदे में रहेंगी इससे आम आदमी को तो कुछ खास फायदा नहीं हुआ, लेकिन तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ता चला गया जब इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल के दाम घट रहे थे तो सरकारों ने टैक्स बढ़ाकर अपना खजाना तो भरा ही साथ ही इसका फायदा आम आदमी तक पहुंचने से रोक दिया.अब जब कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं तो न तो सरकारें टैक्स कम कर रही हैं और ना ही तेल कंपनियां अपना मुनाफा कम कर रही हैं, इससे सारा बोझ आम आदमी पर आ रहा है आज के हालात में ईधन ही सब बीमारी का हल है उसे ही अपने हाल पर छोड दिया तो कौन क्या कर सकता है: हालत ये है कि पूरी दुनिया में पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स हमारे देश में लिया जाता है.हम अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदते हैं, ये कच्चा तेल आता है बैरल में. एक बैरल यानी 159 लीटर. इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत अभी मिनरल वाटर जितनी है:पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के मुताबिक, 14 दिसंबर को कच्चे तेल की कीमत थी 3 हजार 705 रुपए अब एक बैरल में हुए 159 लीटर, तो एक लीटर कच्चा तेल पड़ा 23 रुपए 30 पैसे का, जबकि 1 लीटर पानी की बोतल 20 रुपए की होती है.