छत्तीसगढ़ में काजू....है न आश्चर्य की बात!
यह आश्चर्य और खुशी की बात है कि दक्षिण के राज्यों का एकाधिकार बने काजू का उत्पादन अब छत्तीसगढ़ में भी होने लगा है और सबसे खुशी की बात तो यह है कि इसका उत्पादन लक्ष्य से तीन गुना ज्यादा हुआ है. हमें इस बात पर गर्व करना चाहिये कि विश्व में सबसे ज्यादा पसंद करने वाला काजू आगे के समय में विश्व के लिये एक नामचीन वस्तु बन जाये तो आश्चर्य नहीं चूंकि इसके उत्पादन के चंद दिनों में इसने इतना जोर पकड़ लिया है कि आगे आने वाले वर्षो में बस्तर की तरह वातावरण वाले अन्य संभागों में भी इसका उत्पादन शुरू हो जाये तो आश्चर्य नहीं. बस्तर में काफी का उत्पादन भी शुरू हो चुका है वहीं अम्बिकापुर क्षे त्र में चाय की सफल खेती ने यह साबित कर दिया है कि इन उत्पादनो का अधिकार अब देश के किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रह गया है.प्रदेश में खाजू का उत्पादन चालू सीजन के दौरान अब तक के लक्ष्य से तीन गुना ज्यादा अर्थात पांच हजार 870 क्विंटल हो चुका है.अर्थात पांच करोड़ 87 लाख रूपये का काजू छत्तीसगढ़ में पैदा हुआ है. इसका निर्धारित लक्ष्य एक हजार 800 क्विंटल था. काजू का संग्रहण छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना अंतर्गत किया जाता है. इसकी खरीदी राज्य सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही है.यह 31 लघु वनोपजों के अतिरिक्त है.अब तक दूसरे राज्यों के एकाधिकार में रहने वाले काजू जैसे मंहगे ड्राय फ्रूट के उत्पादन की सफलता से सरकार का गदगद होना तो स्वाभाविक है लेकिन यह प्रदेश के कृषकों के लिये भी खुश खबरी है कि अन्य फसलों के साथ ऐसी फ्रूट का उत्पादन कर हम देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.फिलहाल काजू उत्पादन का दायरा सीमित है, यह जगदलपुर से आगे नहीं बढ़ पाया है लेकिन उत्पादन का जो कीर्तिमान स्थापित हुआ है उससे प्रदेश के कुछ अन्य क्षेत्रों में काजू, बादाम,चिरोंजी जैसे मंहगे ड्राय फ्रूट के उत्पादन की संभावना बलवती हुई है.काजू उत्पादन के साथ एक अन्य चौका देने वाला तथ्य है कि प्रदेश मेंं चालू सीजन के दौरान पलाश फूल का उत्पादन भी अब तक लक्ष्य का चार गुना के करीब 7 लाख 74 हजार रूपये की राशि के 860 क्विंटल पलाश फूल के संग्रहण के साथ हुआ है .इसका निर्धारित लक्ष्य 237 क्विंटल था.भारतीय काजू की मांग पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रही है, भारतीय काजू अपनी गुणवत्ता के लिए जाना जाता है, ऐसे में देश में काजू का क्षेत्रफल और उत्पादन बढ़े इसको लेकर काजू विकास निदेशालय काजू की खेती को दक्षिण भारतीय राज्यों से गैर काजू उत्पादक क्षेत्रों में बढ़े इसको लेकर काम कर रहा है. भारत में काजू का मुख्य उत्पादन तटीय प्रदेशों खासकर केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हो रहा है लेकिन अब इसकी खेती पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी शुरू हुई है. किसानों को इसकी खेती के प्रति जागरूक किया जा रहा है लेकिन साथ साथ उन्हें पूरे राज्य और घर घर में इसके उत्पादन के लिये प्रोत्सहित करने की जरूरत है. काजू मूल्यवान वाणिज्यिक फसल है तथा यह भारत के निर्यात क्षेत्र में महत्वतपूर्ण स्थान रखती है और राष्ट्रीय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाती है. ऐसे में इससे जुड़कर किसान लाभ कमा रहे हैं. जहां तक पूरे देश का सवाल है अभी पूरे देश की 78 हजार हेक्टेयर जमीन पर काजू की खेती हो रही है जिसमें सबसे अधिक 26 हजार 959 हेक्टेयर में तमिलनाडु में हो रही है. हाल के दिनों में झारखंड के संताल परगना में भी काजू की खेती की शुरूआत हुई है और काजू की खेती को बढ़ावा देने के लिए झारखंड सरकार का कृषि एवं बागवानी विभाग काम भी कर रहा है. शुरू-शुरू में यह बंजर भूमि या वन क्षेत्रों में ही रोपा जाता था. उच्च क्षमतायुक्त किस्मों और फसल प्रवर्धन प्रौद्योगिकी के अभाव में बीजों को ही बोया जाता था लेकिन इसके बाद इसकी खेती को वैज्ञानिक तरीके से करने के लिए कई अनुसंधान किये गये जिसमें काजू की नर्सरी तैयार की गई. ऐसे में अब नर्सरी विधि से इसका रोपण किया जाता है. काजू एक उष्ण कटिबंधी फसल है. किन्तु इसे प्राय: सभी जगहों पर रोपा जा सकता है.सामान्य रूप से काजू की खेती 700 मीटर से कम ऊंचाई वाली जगहों में ही होती है जहां पर तापमान 20 सेंटीग्रेड से कम नहीं होता. फिर भी, कभी-कभी ये 1200 मीटर तक की ऊचाई पर भी हो सकता है. छत्तीसगढ़ सरकार अगर अन्य फसलों की तरह इसपर भी विशेष ध्यान दे तो हम इस क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ सकते हैं जैसा अन्य वनोपज के मामले में हो रहा है.