व्यवस्था में नम्बर पावर गेम की एंट्री
नम्बर
गेम और पावर गेम के चलते प्राय: देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर अब सवाल उठने
लगे हैं:पढे लिखे च विद्वान ज्ञानी लोगो को किनारे कर अब सिर्फ नम्बर व पावर गेम
पर ध्यान दिया जा रहा है:अगर संवैधानिक व्यवस्था में इसे सुधार किया जाये तो
बहुत हद तक लोकतात्रिक व्यवस्था को बचाया जा सकता है वरना आगे आने वाले सालों
में इस व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंव सकता है तथा जनता जो स्वंय भी बहुत हद तक
इसके लिये जिम्मेदार है वह भी मुसीबतो का
सामना कर सकती है:कई मामले में तो जिनको समाज ने नकारा,जेलों में जघन्यकृत्यों के लिये सजा झेल रहे हैं या सजा भेागने के बाद बाहर आ रहे
हें वे भी लोकतात्रिक व्यवस्था का हिस्सा बनते जा रहे हैं: बिहार जैसे राज्य
में अभी कुछ दिन पहले जहां चुनाव हुए हैं वहां के आंकडे बता रहे हैं कि लोकतात्रिक
व्यवस्था में यह जाल बुरी तरह बुना जा चुका है और देश का चुनाव आयोग जैसी बडी
संस्था भी इसे अपनी आंखों से देखने और समझने के बाद भी अपने आपको शायद नि:सहाय ही
महसूस कर रही है: क्योकि यहां भी नम्बर गेम पर ही सारे संशोधन टिके होते हैं:यह
दिलचस्प तथ्य है कि बिहार में हाल ही हुए चुनाव में जो सरकार बनी उसमें खुद
इंजीनियर मुख्यमंत्री के पास पांच विभाग हैं, जबकि बारहवीं पास डिप्टी सीएम को आई
टी समेत 6 विभाग दिए गए हैं शायद यह सब नम्बर गेम और मजबूरी के कारण हुआ है
क्योंकि यहां मुख्यमंत्री की पार्टी बहुमत में नहीं है और यहां उन्हें अपनी
सरकार चलाने के लिये यह एक मजबूरी है: सामान्य प्रशासन, निगरानी, मंत्रिमंडल सचिवालय
और निर्वाचन विभाग इंजीनियर मुख्यमंत्री के पास हैं लेकिन बारहवीं पास उनके उप मुख्यमंत्री उनसे ज्यादा विभाग देखेंगे, इंजीनियर नीतीश
कुमार प्राय-अपने हर कार्यकाल में इतने ही विभाग को देखते आए हैं:रोचक बात यह भी
है कि महज 12वीं पास पहली बार उप मुख्यमंत्री बना व्यक्ति इससे पहले कभी
मंत्री नहीं रहा और पावर के आगे 6 विभागों का जिम्मेदार बन गया: जबकि उनके
पोर्टफोलियो में वित्त,
वाणिज्य, पर्यावरण, वन एवं जलवायु, सूचना प्रावैधिकी, आपदा प्रबंधन, नगर विकास एवं आवास
विभाग शामिल हैं: इसे एक लोकतात्रिक व्यवस्था में एक प्रयोग ही कहा जा सकता है
जो जनता पर थोपा जा रहा है:अब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि यह प्रयोग कितना सफल
होता है:बिहार में भाजपा और जदयू की सरकार बनी है: यहां भाजपा जदयू से नम्बर गेम
में आगे हैं इस गेम में जिसके पास ज्यादा नम्बर हैं उसका कहना तो कम नम्बर वाले
को मानना ही पडेगा तभी तो यहां पांचवीं पास भी मंत्री बनने में कामयाब हो गई:हमारी
व्यवस्था में खोट का ही नतीजा है कि चाहते हुए भी पढे लिखे और अर्धसंपन्न लोगों
का एक बडा हिस्सा सरकार में भागीदार बनने से वंचित हो रहा है यह इसी से साबित
होता है कि हाल ही बिहार में हुए चुनाव में हर तीसरा माननीय न केवल करोडपति है
बल्कि क्रिमिनल भी है: रोचक बात यह है कि पन्द्रह प्रतिशत इसमें महिलाएं हैं
जिनपर भी क्रिमिनल केस दर्ज है: सन 2020 में हुए चुनाव ने देश को आइना दिखा दिया
है यहां चुनाव लडने की दो क्वालिटी दिखाई दी: यहां चुनाव लडने वाला हर तीसरा उम्मीदवार
दागी होने के साथ साथ करोडपति भी है: तीन हजार सात सौ तैतीस उम्मीदवार मैदान में
थे जिसमें से एक हजार दो सौ एक पर क्रिमिनल चार्ज व एक हजार दो सौ इकतीस अपार
संपत्ति के मालिक अर्थात करोडपति: हमारे देश में डॉक्टर के पास एमबीबीएस की बीएमएस
की डिग्री होती हैं, इंजीनियरिंग का सपना देखने वाले के
पास बी टेक और बीई की डिग्री होती हैं, लेकिन हमारे देश
में नेता बनने के लिए जो दो बड़ी क्वालिटी होती हैं, वो है दागी और करोड़पति होना, ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि बिहार का यह चुनाव और इससे पहले
हुए चुनावों में जो उम्मीदवार उतरे हैं वे यह साबित कर चुके है कि उनका बैकग्राउंड क्या है: पार्टियां अब भी दागियों
व इसकी क्राइम की बदौलत दौलतमंद बने लोगों
को मैदान में उतार रही है :