देश में हर पन्द्रह मिनट में एक लडकी की जिंदगी के
साथ खिलवाड !
देश मे हर 15 मिनट के भीतर एक लडकी का जीवन बर्बाद हो
रहा है: उसके साथ रेप कर कहीं का नहीं रहने दिया जाता: यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि
देशभर में अपराधों को दर्ज़ करने वाली संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
(एनसीआरबी) का दावा है: देश मे हो रही इन घटनाओं में गिनती की कुछ एक घटनाएं ही
निर्भया, कठुआ, हैदराबाद और हाथरस जैसे मामलों की तरह
सुर्खियाँ बन पाती हैं: हाथरस में हुए गैंगरेप से उबल रहे देश के
सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं की स्थिति अब किसी से छिपी नहीं है: यूपी
में हर रोज 11 बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं: इन मामलों में कितनी
संवेदनशील है पुलिस? एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी के 14 मामलों में से 11 मामलों में बलात्कार
की एफआईआर तब दर्ज हुई जब इनके सहयोग के लिए किसी न किसी सामाजिक कार्यकर्ता का
साथ था फिर भी इनकी एफआईआर दर्ज होने में 2 दिन से लेकर 228 दिन तक का समय लगा: हाथरस गैंगरेप मामले
में पुलिस के रवैए पर कई सवाल उठ रहे हैं! देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग प्रदर्शन
करके और सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर करके आक्रोश जता रहे हैं: देश में किसी
लड़की के साथ दरिंदगी का यह कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
उठ रहे हों: ऐसे मामलों में ऐसा कई बार हुआ है जब पुलिस की असंवेदनशीलता देखने को
मिली है: अगर यूपी के हाथरस गैंगरेप मामले की ही बात करें तो पीड़िता के परिजनों के
आरोप के अनुसार घटना के 10 दिन बाद पुलिस तब सक्रिय हुई जब मामले ने तूल
पकड़ा: अगर घटना के पहले दिन से लेकर पीड़िता के शव के दाह संस्कार तक की बात की जाए
तो इस पूरे मामले में पुलिस की कार्रवाई कई सवालों के घेरे में है:जिस दिन हाथरस
की 19 वर्षीय दलित बेटी दम तोड़ती है, तभी यूपी के बलरामपुर जिले में एक 22 वर्षीय दलित लड़की के
साथ दो आरोपी हाथरस जैसी घटना को अंजाम दे देते हैं: इस मामले में भी आरोपियों ने
पीड़िता के साथ बर्बरता की सारे हदें पार कर दीं: इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो
गयी: हाथरस की बेटी की चिता की आग ठंडी भी नहीं हो पायी तब तक इसकी चिता को भी जला
दिया गया। बलरामपुर पुलिस ने ट्वीट कर बताया है कि नामजद दोनों आरोपी गिरफ्तार
किये जा चुके हैं: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2018 के आंकड़ों के अनुसार
देश में महिलाओं से सम्बंधित अपराध के 3,78,277 मामले दर्ज किये गये: जिसमें हर साल 33,356 मामले बलात्कार के
हैं यानि देश में हर रोज 91 रेप की घटनाएं हो रही हैं वहीं उत्तर प्रदेश में
बलात्कार और यौनिक हिंसा के 3946 रेप केस दर्ज हुए जिसका मतलब है प्रदेश में हर
रोज 11 बलात्कार की घटनाएं होती हैं:मध्यप्रदेश भी रेप और अपहरण की घटना
में पीछे नहीं हैं यहां कई मामले सुर्खियों में आ चुके हैं कुछ में सजा भी बहुत त्वरित
गति से दी गई है: यूपी के सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर
पिसावां ब्लॉक के एक गांव में रहने वाली एक 17 वर्षीय दलित मूक-बधिर लड़की के साथ 14 अगस्त 2017 को उनके पड़ोसी
रिश्तेदार ने दुष्कर्म किया था: मूक-बधिर लड़की ने यह घटना अपनी माँ को नहीं बताई
क्योंकि आरोपी ने धमकी दी थी कि अगर वो किसी को बतायेगी तो वो उसे मार डालेगा:
घटना के लगभग पांच महीने बाद जब पीड़िता की माँ को पता चला कि उनकी बेटी गर्भवती है
तब वो 26 जनवरी 2018 को पिसावां थाने में एफआईआर दर्ज कराने गईं:
पीड़िता की माँ ने गाँव कनेक्शन को बताया, "अपनी बेटी की एफआईआर लिखाने हम कितनी बार
थाने गये, इसकी गिनती तो हमें भी याद नहीं है: पर पुलिस ने हर बार हमें
टरका दिया: थक हारकर जब हम सीतापुर एसपी साहब के पास गये तब जाकर पिसावां थाने में
22 फरवरी 2018 को एफआईआर लिखी गयी:" यानि इस मामले की
एफआईआर दर्ज कराने में पीड़िता के परिवार को 28 दिन का वक़्त लगा: ये घटनाक्रम पुलिस की
लापरवाही का एक उदाहरण मात्र है:महिलाओं को कानूनी विधिक सलाह प्रदान करने वाली दो
संस्थाएं एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव (आली) और कॉमनवेल्थ ह्यूमन
राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई)की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के साथ लैंगिक और जातिगत
भेदभाव भी होता है: जाति और जेंडर आधारित भेदभाव की वजह से अपराध की रिपोर्ट दर्ज
कराने में मुश्किलें आती हैं जिससे ये महिलाएं हतोत्साहित हो जाती हैं जब महिलाओं
की शिकायत दर्ज नहीं की जाती तो इसका असर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर
पड़ता है: यूपी, झारखंड और बिहार राज्यों में महिला को नि:शुल्क कानूनी सलाह
प्रदान करने वाली संस्था आली की कार्यकारी निदेशक और वकील रेनू मिश्रा कहती हैं, "पुलिस को अभी इस बात
का डर नहीं है कि अगर वो इस तरह के मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज नहीं करेंगे, चार्जशीट समय से
दर्ज नहीं करेंगे, मामले की सही से जांच नहीं करेंगे तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो
सकती है: जबतक इन सवालों की उनपर जवाबदेही तय नहीं होगी तबतक पुलिस का रवैया नहीं
बदलेगा:" वो आगे कहती हैं, "निर्भया केस के बाद देश में महिलाओं के लिए
कितने कानून बने? सिर्फ कानून बनाना ही उनके लिए काफी नहीं है: आप उन्नाव का
सेंगर केस ही ले लें, पीड़िता के पिता को ही जेल भेज दिया: उन्नाव केस में सीबीआई ने
जांच में एक साल लगा दिया इनसे सवाल क्यों नहीं? देश में दलित
महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन 'दलित वुमेन फाईट' की सदस्य शोभना स्मृति जो 10 वर्षों से दलित महिलाओं
के साथ काम कर रही हैं बताती हैं, "थाने में भी जाति और धर्म के नाम पर भेदभाव
होता है: पुलिस का रवैया बिल्कुल संवेदनशील नहीं रहता: जब दलित महिलाएं थाने में
यौन हिंसा से संबंधित कोई भी मामला दर्ज करवाने जाती हैं तो कई बार पुलिस वाले जो
उनके लिए बोलते हैं वो आप सुन नहीं सकते: कभी कहते पैसों के लिए कपड़े फड़वाकर आ गयी
हो तो कभी कहते चेहरे की शक्ल देखी है अपनी, जो तुम्हारे साथ कोई रेप करेगा: ऐसे न जाने
कितने अपशब्द पीड़िता को सुनने पड़ते हैं।"