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सोसाइटी

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उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग किसी दृश्य की तरह बचे ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की देश सारा बच रहा बाक़ी उसके चले जाने के बाद उसकी शहादत के बाद अपने भीतर खुलती खिडकी में लोगो

हर किसी को नहीं आते बेजान बारूद के कणों में सोई आग के सपने नहीं आते बदी के लिए उठी हुई हथेली को पसीने नहीं आते शेल्फ़ों में पड़े इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते सपनों के लिए लाज़मी है झेलनेव

मैं घास हूँ मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर मेरा क्‍या करोगे मैं तो घास हूँ हर चीज़ प

क्या-क्या नहीं है मेरे पास शाम की रिमझिम नूर में चमकती ज़िंदगी लेकिन मैं हूं घिरा हुआ अपनों से क्या झपट लेगा कोई मुझ से रात में क्या किसी अनजान में अंधकार में क़ैद कर देंगे मसल देंगे क्या जीव

फासीवाद से जकड़े समाज की सबसे बड़ी समस्या है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर राजनेताओं का हस्तक्षेप। पाश के तत्कालीन समाज में उन्होंने भी इस ही समस्या को देखा था, झेला शब्द यद्यपि प्रयोग में लाना गलत होगा क

अवतार सिंगह संधू पाश ने अपनी कविता सबसे खतरनाक में फासीवाद का बढ़ना तथा आम जन का उसपे कोई प्रतिक्रिया न करने पर अपने काव्य के माध्यम से लोगों को क्रांति लाने के लिए प्रेरित किया है। हमारे समाज में बहुत

भगत सिंह ने पहली बार पंजाब को जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से बुद्धिवाद की ओर मोड़ा था जिस दिन फाँसी दी गई उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था पंजाब की जवानी को उसके आख

हम झूठ-मूठ का कुछ भी नहीं चाहते जिस तरह हमारे बाजुओं में मछलियाँ हैं, जिस तरह बैलों की पीठ पर उभरे सोटियों के निशान हैं, जिस तरह कर्ज़ के काग़ज़ों में हमारा सहमा और सिकुड़ा भविष्‍य है हम ज़िन्दग

संविधान यह पुस्‍तक मर चुकी है इसे मत पढ़ो इसके लफ़्ज़ों में मौत की ठण्‍डक है और एक-एक पन्‍ना ज़िन्दगी के अन्तिम पल जैसा भयानक यह पुस्‍तक जब बनी थी तो मैं एक पशु था सोया हुआ पशु और जब मैं जागा

यह कहानी है एक छोटे से परिवार की जो अपने जीवन के फैसले लेने से पहले यह सोचता है की समाज क्या सोचेगा? उन्हें अपनी खुशियों से ज्यादा समाज की विचारधारा का ध्यान रखना ज्यादा जरुरी लगता था | लेकिन जब  एक प

वर्षो की गुलामी से भय मुक्त हुए एक समान बनने को हम तैयार हुए रखकर अपने कदम वैश्विक हर पहलू पर देखो हम लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुए 395 अनुच्छेद 12 अनुसूची और 25 भाग में विभाजित होकर विश्व क

किरदार अपना अपना,जीवन में सभी निभाते हैं।कभी हंसते कभी रोते हैं,कभी सुख दुःख देखते हैं।।किरदार अपना अपना,जीवन मंत्र सार सबका।कभी खुशी कभी रंजोगम,कभी लोक कल्याण सबका।।किरदार अपना अपना,निभाना पड़ता सभी

यह जिंदगी का खेल है,जिंदगी जंग से कम नहीं।इस जंग में कभी हार होती,कभी जीत दर्ज हो जाती।।हार से मिलती है सीख,सबक सिखाने आती है।करो मेहनत सही दिशा में,दिशा निर्देश दिखाती है।।दिशा निर्देश सही प्रशस्त ,म

किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 64-65  वर्ष की रही होंगी | झारखण्ड के एक छोटे से शहर सूरजगढ़ में अमरावती अपने पति राम अमोल पाठक के साथ रहती थी

रंग बिरंगी तितली देखो,उड़ती मस्त पवन में।फूल फूल मंडराती देखो,उड़ती तितली मधुवन में।।तितली बैठे जब फूलों पर,रस फूलों का ले लेती है।मकरंद फूलों का ले लेकर,फूल फूल ऐसे मंडराती है।।इतराती इठलाती तितली,फू

जिज्ञासा एक आशा है,जागरूकता जो जगाती।कुछ जानने को उत्सुक,मन में आस वह जगाती।।उत्सुक और बेचैन मन,पिपासा को वह जगाता।जिज्ञासा है एक आशा,बेचैन मन को शांत करता।।जब तक जान न लेता,तब तक शांत न होता।जिज्ञासा

खबर कितनी सच है?ये जानना है जरूरी।ये वक़्त का तकाजा है,मानना भी है जरूरी।।खबर कितनी सच है?ये कुछ सच कुछ झूठ।फैलाव इसका चहुंओर,मानु इसको सच या झूठ।।खबर कितनी सच है?चोरी, डकैती,लूटपाट।मारामारी और दंगे फ

राष्ट्रीय एकता दिवस पर्व को,हम भारतवासी शान से मनाते हैं।अनेकता में एकता का प्रतीक,हम मिलकर ही सब सिखाते हैं।।राष्ट्रीय एकता दिवस पर्व को,हम आन और शान से मनाते हैं।भाषाएं हो भले अनेक हमारी,राष्ट्रगान

प्रेम का एक अटूट बंधन... पति पत्नी के बीच प्रेम क्या होता है कोई विजेंद्र सिंह राठौड़ से सीखे ! यह कहानी अजमेर के निवासी विजेंद्र सिंह राठौड़ और उनकी धर्मपत्नी लीला की है। 2013 में लीला ने विजेंद्र से आ

हौसलों की उड़ान भरते ही, मंजिल पाने की चाहत होती। नित्य कर्म प्रयत्न शील रहते, कोशिशें ही कामयाब होती।। हौसलों की उड़ान भरते ही, कर्म भूमि से जुड़े रहते हम। आसमां छूने की कोशिश में, सूरज को भी छू लेते

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