26 मार्च 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
शालिनी जी, आपके लेख नियमित रूप से पढ़ता हूँ, 'शब्दनगरी' से जुड़े हुए अनेकानेक पाठकों का ज्ञानवर्धन हो रहा है. आपसे निवेदन करूंगा कि कभी इस विषय पर भी ज़रूर लिखिए कि यदि माननीय सर्वोच्च न्यायलय का फैसला किसी के पक्ष में आ जाये और समय सीमा पूरी हो जाने के बाद भी प्रतिवादी हक़ देने से आनाकानी करे तो कोई क्या करे. धन्यवाद !
2 अप्रैल 2015
जी महोदया बिल्कुल ठीक बेवजह धाराएं शामिल नहीं होनी चाहिएं आम आदमी की आवाज बनने के लिए धन्यवाद।
26 मार्च 2015