6 जुलाई 2015
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कहते हैं ये जीवन अनेकों रंगों से भरा है संसार में सभी की इच्छा होती है इन रंगों को अपने में समेट लेने की मेरी भी रही और मैंने बचपन से आज तक अपने जीवन में अनेकों रंगों का आवागमन देखा और उन्हें महसूस भी किया .सुख दुःख से भरे ये रंग मेरे जीवन में हमेशा ही बहुत महत्वपूर्ण रहे .एक अधिवक्ता बनी और केवल इसलिए कि अन्याय का सामना करूँ और दूसरों की भी मदद करूँ .आज समाज में एक बहस छिड़ी है नारी सशक्तिकरण की और मैं एक नारी हूँ और जानती हूँ कि नारी ने बहुत कुछ सहा है और वो सह भी सकती है क्योंकि उसे भगवान ने बनाया ही सहनशीलता की मूर्ति है किन्तु ऐसा नहीं है कि केवल नारी ही सहनशील होती है मैं जानती हूँ कि बहुत से पुरुष भी सहनशील होते हैं और वे भी बहुत से नारी अत्याचार सहते हैं इसलिए मैं न नारीवादी हूँ और न पुरुषवादी क्योंकि मैंने देखा है कि जहाँ जिसका दांव लग जाता है वह दूसरे को दबा डालता है.D
बिल्कुल सटीक अगर सांप्रदायक सौहार्द न हो तो कोई भी त्यौहार मायने नहीं रखता
7 जुलाई 2015
बहुत ही सुन्दर लिखा है!!
7 जुलाई 2015
बहुत अधिक सहिष्णुता के साथ अथक प्रयास की आवश्यकता है तभी सेवईंयों और खील-गट्टे के चेहरे एक साथ खिलेंगे ..लेख में आपने अत्यंत कम शब्दों में बड़ी बात कह दी...बहुत सुन्दर और सार्थक !
7 जुलाई 2015
bahut sateek likha hai aapne .badhai
7 जुलाई 2015
.ईद की सिवईयाँ हो या दीवाली की मिठाई अपना स्वाद ही खो देती हैं जब उसमे हिन्दू-मुस्लिम के प्रेम की मिठास न मिली हो...अति सुन्दर एवं सार्थक लेख !
7 जुलाई 2015